बच्चों को दब्बू बना सकता है जरूरत से ज्यादा प्यार, Plastic Wrap Parenting के हो सकते हैं कई नुकसान
इन दिनों बच्चों की परवरिश मुश्किल होती जा रही है। बदलते समय और लाइफस्टाइल के साथ ही बच्चों की परवरिश का तरीका भी बदलता जा रहा है। इन दिनों कई पेरेंट्स अपने बच्चों के पालन-पोषण के लिए पेरेंटिंग का अलग-अलग तरीका अपना रहे हैं। Plastic Wrap Parenting इन्हीं में से एक है जो इन दिनों काफी लोकप्रिय हो रहा है। आइए जानते हैं इसके नुकसान।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। बदलते समय के साथ ही बच्चों की परवरिश का तरीका भी काफी बदल चुका है। बच्चों के सही विकास और बेहतर भविष्य के लिए अच्छी परवरिश बेहद जरूरी है। हालांकि, डिजिटल होती लाइफस्टाइल में पेरेंटिंग एक चुनौती बन चुकी है। लाइफस्टाइल में आए बदलाव के साथ ही पेरेंटिंग के तरीकों में भी बदलाव आने लगा है।
प्लास्टिक रैप पेरेंटिंग बदलती परवरिश ऐसा ही एक उदाहरण है, जिसका चलन इन दिनों काफी बढ़ने लगा है। बच्चे को सुरक्षित और उज्जवल भविष्य देना पेरेंटिंग का असली मकसद होता है। साथ ही उन्हें भविष्य की चुनौतियों के लिए मजबूती से तैयार करना भी जरूरी है। हालांकि, प्लास्टिक रैप पेरेंटिंग में बच्चों को चुनौतियों का सामना करने का मौका कम ही मिलता है, जिससे उन्हें भविष्य में कई बार परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
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क्या है प्लास्टिक रैप पेरेंटिंग?
प्लास्टिक रैप पेरेंटिंग बच्चों की परवरिश करने का एक ऐसा तरीका है, जिसमें पेरेंट्स बच्चों को हर मुश्किल से बचाकर ओवरप्रोटेक्ट करने की कोशिश करते हैं। ऐसे में पेरेंट्स बच्चे की हर एक छोटी-बड़ी जरूरत का न सिर्फ ध्यान रखते हैं, बल्कि उन्हें पूरा भी करते हैं। साथ ही उनकी हर समस्याओं का समाधान निकाल कर उन्हें किसी प्रकार की परेशानी से बचाते हैं। इतना ही नहीं वह बच्चे को किसी और के पास छोड़ कर नहीं जा सकते। हालांकि, इस तरह से बच्चे की परवरिश करना कई तरह से नुकसानदेह होती है।
प्लास्टिक रैप पेरेंटिंग के नुकसान
- एक पेरेंट के तौर पर सभी अपने बच्चे का बचाव करना चाहते हैं। लेकिन ओवर प्रोटेक्टिव होना, आपके बच्चे के भविष्य के लिए कई प्रकार की समस्याएं पैदा कर सकता है। इससे निम्न नुकसान हो सकते हैं-
- प्लास्टिक रैप पैरेन्टिंग लगभग हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग की तरह होती है। इसमें बच्चे को दुनिया की हर परेशानी से बचाने के चक्कर में बच्चे का पर्सनेलिटी डेवलेपमेंट नहीं हो पाता है।
- इस तरह की पेरेंटिंग से पले-बढ़े बच्चों के फैसला लेने की क्षमता बहुत कमजोर हो जाती है।
- ऐसे बच्चों को मुसीबतों से लड़ने के कोपिंग मैकेनिज्म से बहुत संघर्ष करना पड़ता है।
- फेल होना इन्हें जल्दी बर्दाश्त नहीं हो पाता है। ये जीवन के हर तरह के फैसले लेने के लिए पूरी तरह से पेरेंट्स पर निर्भर रहते हैं।
- भविष्य में ये अपने पार्टनर के साथ भी यही बर्ताव करते हैं और उनके ऊपर हर काम के लिए निर्भर हो जाते हैं। फिर इसमें सफलता न मिलने पर इन्हें एंग्जायटी होने लगती है।
- प्लास्टिक रैप पैरेन्टिंग के कारण बच्चे बहुत ज्यादा सोशल नहीं हो पाते हैं। इससे इनकी सोशल और इमोशनल स्किल भी डेवलप नहीं हो पाते हैं।
इन बातों का ध्यान रखना जरूरी
पेरेंट्स प्लास्टिक रैप पेरेंटिंग को चुनते हैं, क्योंकि वे जनरेशनल ट्रॉमा से गुजरे होते हैं या फिर उनकी कोई मजबूरी होती है, जिसके कारण वे अपने बच्चे को जरा-भी संघर्ष करते नहीं देख पाते हैं। प्लास्टिक रैप पेरेंटिंग से बचने के लिए बच्चे से खुल कर बातें करें, उन्हें उम्र के अनुसार घर के काम सिखाएं, जिससे उनके मोटर और सेंसरी स्किल्स डेवलप हों। अगर हेल्पलेस लगे तो किसी एक्सपर्ट की मदद लें, लेकिन अपने बच्चे को इस तरह की पेरेंटिंग के दुष्प्रभावों से बचाएं।
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