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    पेरेंट्स का Screen Addiction बच्चों को धकेल रहा है अंधेरे की ओर, बन सकते हैं एडल्ट साइट्स के आदी

    अक्सर मोबाइल ज्यादा इस्तेमाल करने की वजह से बच्चों को डांट लगाई जाती है लेकिन जब पेरेंट्स ऐसा करते हैं तो उन्हें बोलने वाला कोई नहीं होता। हालांकि पेरेंट्स का ज्यादा स्क्रीन टाइम (Parents Screen Addiction Effects) बच्चों पर भी बुरा असर डालता है। हाल ही में सामने आई एक स्टडी में पता चला कि इसकी वजह से बच्चे एडल्ट साइट्स के आदी बन सकते हैं।

    By Jagran News Edited By: Harshita Saxena Updated: Tue, 18 Mar 2025 06:04 PM (IST)
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    पेरेंट्स का ज्यादा स्क्रीन टाइम बच्चों के लिए हानिकारक (Picture Credit- Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। अक्सर ही बच्चे अपने मां-बाप से ज्यादा फोन (Digital Addiction In Kids) देखने के लिए डांट खाते मिल जाते हैं, लेकिन जब पेरेंट्स ही फोन पर ज्यादा वक्त बिताएं तो बच्चे क्या करें? बच्चे देखकर सीखते हैं और यही बात पेरेंट्स के ज्यादा स्मार्टफोन इस्तेमाल करने पर भी लागू होती है। हाल ही में इसे लेकर एक स्टडी में भी सामने आई है। आइए जानते हैं-

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    स्डटी क्या कहती है?

    दरअसल, बीएमसी पीडियाट्रिक्स जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक अगर पेरेंट्स का स्क्रीन टाइम ज्यादा है, तो बच्चों में एडल्ट साइट देखने (Children Adult Site Addiction) या इस तरह के वीडियो गेम खेलने की लत बढ़ जाती है। इस स्टडी में शामिल पेरेंट्स ने बताया कि जब वे अपने बच्चों के साथ होते हैं, तो स्क्रीन बेस्ड डिवाइस का कम से कम इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं। लेकिन ये संख्या उन पेरेंट्स से कम है, जो ऐसा नहीं करते। इस स्डटी में एक दिलचस्प बात सामने आई कि जो पेरेंट्स ज्यादा स्क्रीन (parents Screen Addiction Effects) पर होते हैं, उनके बच्चों में मैच्योर वीडियो गेम्स और एडल्ड-रेटेड फिल्में देखने का आंकड़ा 11% बढ़ गया।

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    कोई नहीं रोकता

    वर्तमान में 12 साल या उससे ज्यादा उम्र के लगभग सभी बच्चों के पास अपना टैबलेट या स्मार्टफोन है। इससे वे बेरोक-टोक ऑनलाइन की दुनिया में कदम रखते हैं और अपना मनचाहा कंटेंट भी देखते हैं। इतना ही नहीं 12 साल से कम उम्र के बच्चे भी दिन में रोजाना कम से कम 2 से 4 घंटे अपने फोन पर बिताते हैं। ऐसे में बड़े होकर इंटरनेट की लत लगना आसान है।

    क्यों बढ़ रही स्क्रीन की आदत?

    • मोबाइल कल्चर- बच्चे चीजों को देखकर सीखते हैं और जब वे अपने माता-पिता को मोबाइल पर ही वक्त बिताते देखते हैं, तो उन्हें लगता है ऐसा करना बुरा नहीं है। उन पर पेरेंट्स के रोक-टोक का भी असर नहीं होता।
    • पेरेंट्स भी इसे सही मानते हैं- कुछ पेरेंट्स बच्चों के मोबाइल देखने को कुछ हद तक जायज भी ठहराते हैं। उन्हें लगता है कि बच्चा व्यस्त है और अपने ही घर में सुरक्षित है। जबकि मोबाइल एक ऐसा सागर है, जो आपको अपने अंदर धीरे-धीरे डुबोता चला जाता है।

    उत्सुकता खोलती है एडल्ट साइट के दरवाजे

    टीएनज में बच्चों में शारीरिक बदलाव होते हैं। चाहे लड़का हो या लड़की दोनों ही इन बदलावों के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहते हैं। इस बारे में वे जगह-जगह सर्च करते हैं

    या फिर अपने दोस्तों से आधी-अधूरी जानकारी के साथ चर्चा करते हैं। सर्चिंग के दौरान उनके सामने कुछ ऐसी साइट्स भी खुल जाती हैं, जो उनके उम्र के अनुसार नहीं होतीं। अलग-अलग कोड वर्ड भी उन्हें ऐसी साइट्स की ओर ले जाते हैं। इस वजह से वे उम्र से पहले ही एडल्ट होने की तरफ बढ़ रहे हैं।

    पेरेंट्स घबरा जाते हैं

    अक्सर ऐसा देखने में आता है जब बच्चा कोई ऐसी साइट देखता हुआ पकड़ा जाता है, तो

    माता-पिता घबरा जाते हैं। उन्हें मारते-पीटते हैं या फिर इस आदत के लिए उसके किसी दोस्त को जिम्मेदार ठहराते हैं। वे इस बात को स्वीकार ही नहीं कर पाते कि उनका बच्चा भी कुछ ऐसा कर सकता है। ऐसे में जरूरी है कि इस सिचुएशन को सही तरीके से संभाले और एक्सपर्ट की मदद लें।

    एक्सपर्ट की सुनें

    मोबाइल के बच्चों पर होने पर निगेटिव इफेक्ट के बारे में तो सभी जानते हैं। ऐसे में इससे उन्हें बचाने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है। हैलो चाइल्ड एंड काउंसलिंग सेंटर, लखनऊ के साइकोलॉजिस्ट एंड करियर काउंसलर राजेश पाण्डेय ने बताया कि इस समस्या से कैसे निपटा जा सकता है।

    • मोबाइल को अपने परिवार का कल्चर न बनाएं। इसे देखने का समय तय करें। साथ ही मोबाइल को कुछ देर तक बंद रखने का भी नियम बनाएं।
    • बच्चों के सर्च इंजन को बार-बार देखें कि वह क्या सर्च कर रहे हैं। उनकी सर्च हिस्ट्री को डिलीट करें और उनकी हिस्ट्री देखकर गुस्सा न हों।
    • प्री-मैच्योर कंटेंट देखने को लेकर बच्चों से बात करें और उन्हें इसके नुकसानों के बारे में समझाने का प्रयास करें।
    • उन्हें खेल-कूद या फिर किसी अन्य एक्टिविटी में शामिल करने की कोशिश करें।
    • उन्हें अपने कल्चर के बारे में बताएं ताकि उनका ध्यान दूसरी चीजों की ओर भी जाए।
    • परिवार के बड़े-बुजुर्गों से मिलाएं और रिश्तों का महत्व उन्हें समझाने की कोशिश करें।

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