घरेलू हिंसा से टीनेजर्स में बढ़ रहा डिप्रेशन और एंग्जायटी का खतरा, स्टडी में हुआ चौंकाने वाला खुलासा
आजकल 12 से 17 साल के किशोरों में डिप्रेशन और एंग्जायटी जैसी मानसिक समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं और इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। हाल ही में भारत में हुई एक स्टडी में इससे जुड़ी कुछ खास बातें निकलकर सामने आई हैं। रिसर्च के मुताबिक जिन घरों में माएं घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं वहां के बच्चों में मानसिक तनाव का खतरा काफी ज्यादा होता है।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। क्या आप जानते हैं कि हमारे घरों की चारदीवारी में पनपने वाला तनाव, हमारे बच्चों को अंदर से कितना खोखला कर रहा है? अक्सर हम सोचते हैं कि बच्चे तो बस खेल-कूद में मस्त रहते हैं, पर हकीकत कुछ और ही है। जी हां, 12 से 17 साल के किशोरों में डिप्रेशन और एंग्जायटी जैसी मानसिक समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं और इसके पीछे का एक बड़ा कारण हमारे घर का वो माहौल है, जहां हिंसा और तनाव पसरा होता है। हाल ही में भारत में हुई एक स्टडी ने इस छिपी हुई सच्चाई को उजागर किया है। आइए विस्तार से जानें इसके बारे में।
घरेलू हिंसा और बच्चों की मेंटल हेल्थ
बेंगलुरु के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज (NIMHANS) और कुछ अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने मिलकर एक अहम शोध किया। इसमें भारत के शहरी और ग्रामीण इलाकों से लगभग 2800 किशोरों और उनकी माताओं से जानकारी जुटाई गई। अध्ययन में यह देखा गया कि 12 से 17 साल के बच्चों की मानसिक स्थिति उनकी माताओं पर होने वाली शारीरिक, मानसिक या यौन हिंसा से कैसे जुड़ी है।
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स्टडी में हुए चौंकाने वाले खुलासे
रिसर्च के नतीजे काफी चौंकाने वाले थे। यह पाया गया कि जिन माताओं को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा था, उनके बच्चों में डिप्रेशन और एंग्जायटी जैसी मानसिक समस्याएं ज्यादा थीं। खासकर, डिप्रेशन का सीधा संबंध शारीरिक, मानसिक और यौन हिंसा से था, जबकि एंग्जायटी मुख्य रूप से शारीरिक और यौन हिंसा से जुड़ी पाई गई।
यह अध्ययन बताता है कि भारत में हर तीन में से एक महिला घरेलू हिंसा का शिकार होती है, जिससे उनमें एंग्जायटी, डिप्रेशन, पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) और यहां तक कि आत्महत्या की प्रवृत्ति भी बढ़ जाती है।
बच्चों के व्यवहार और पढ़ाई पर असर
घरेलू हिंसा के माहौल में पल रहे बच्चों में भावनात्मक, व्यवहारिक और शैक्षणिक समस्याएं ज्यादा देखने को मिलती हैं। किशोरावस्था वह नाजुक दौर होता है जब बच्चों के सोचने-समझने की क्षमता, सामाजिक व्यवहार और व्यक्तित्व का विकास होता है। ऐसे में, घर का तनावपूर्ण माहौल उनके संपूर्ण विकास पर नकारात्मक असर डालता है।
यह जरूरी है कि हम इन बच्चों की मानसिक सेहत पर ध्यान दें और उन्हें एक सुरक्षित माहौल दें ताकि वे इन चुनौतियों से उबर सकें और एक हेल्दी जिंदगी जी सकें।
Source:
- National Institutes of Mental Health: https://pubmed.ncbi.nlm.nih.gov/40434972/
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