'घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा के लिए संरक्षण अधिकारी नियुक्त करें राज्य', SC ने और क्या-क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों को संरक्षण अधिकारी के रूप में नामित करने का निर्देश दिया है। इन अधिकारियों का काम घरेलू हिंसा के पीड़ितों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। न्यायालय ने छह सप्ताह के भीतर नियुक्ति प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया।

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे जिला और तहसील स्तर पर महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों की पहचान करें और उन्हें संरक्षण अधिकारी के रूप में नामित करें। संरक्षण अधिकारी नियुक्त किया गया ऐसा व्यक्ति होता है जिसका कार्य घरेलू हिंसा के पीड़ितों की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करना होता है।
अदालत ने क्या निर्देश दिए?
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों और महिला एवं बाल/समाज कल्याण विभागों के सचिवों को घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत अधिकारियों को संरक्षण अधिकारी के रूप में नामित करने के लिए समन्वय स्थापित करने और संबंधित कार्य सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा, "वे अधिनियम के प्रविधानों के बारे में जागरूकता बढ़ाने, अधिनियम के तहत सेवाओं का प्रभावी समन्वय सुनिश्चित करने और इसके प्रविधानों को लागू करने के लिए कदम उठाएंगे।"
पीठ ने निर्देश दिया कि उन क्षेत्रों में यह कार्य आज से छह सप्ताह के भीतर पूरा किया जाए, जहां सुरक्षा अधिकारी नियुक्त नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को दी ये नसीहत
शीर्ष अदालत ने कहा के राज्यों को संकटग्रस्त महिलाओं के लिए सेवा प्रदाताओं, सहायता समूहों और आश्रय गृहों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। प्रतिवादी राज्यों को भी इस उद्देश्य के लिए आश्रय गृहों की पहचान करनी होगी।
पीठ ने विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम के तहत अधिकारों को रेखांकित करते हुए राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव को आदेश दिया कि वे राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों के सभी सदस्य सचिवों को निर्देश दें कि वे घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मुफ्त कानूनी सहायता और सलाह के अधिकार के बारे में महिलाओं के बीच जागरूकता फैलाएं।
पीठ ने कहा कि उन्हें इन प्रविधानों का पर्याप्त प्रचार भी करना होगा। शीर्ष अदालत का यह निर्देश गैर-सरकारी संगठन 'वी द वूमन आफ इंडिया द्वारा दायर याचिका पर आया।
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