बचपन की सीख जीवन में ला सकती है बड़ा बदलाव, ऐसे सिखाएं बच्चों को पर्यावरण के सबक
खुला नल छोड़ा हुआ भोजन देखने में तो जरा सी बात लगती है मगर यह शिष्टाचार व पर्यावरण दोनों के लिए आपकी लापरवाही है। इन आम सी लगने वाली बातों को जीवन में उतार कर पर्यावरण को काफी हद तक बचाया जा सकता है। ऐसे में World Environment Day के मौके पर जानते हैं छोटी-छोटी गतिविधियों से कैसे बच्चों को सिखा सकते हैं पर्यावरण के सबक।
अंबिका अग्रवाल, नई दिल्ली। नल से टपकता पानी, प्लेट में बचा खाना, चलते पंखे के नीचे खाली कमरा…...ये बातें सुनने में छोटी लग सकती हैं, लेकिन हमारे व्यवहार व सोच का आईना हैं। बच्चों को पर्यावरण और शिष्टाचार सिखाने के लिए हमें किसी बड़े मंच या क्लासरूम की जरूरत नहीं। हमारे छोटे-छोटे उदाहरण ही बन सकते हैं सबक देने के लिए उनकी सबसे बड़ी पाठशाला। विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर जानते हैं कैसे बच्चों को सिखाएं पर्यावरण से जुड़ी अच्छी बातें-
किस उम्र से शुरू करें ये सबक
जब बच्चा बोलना और देखना शुरू करता है, तब से सीखना भी शुरू कर देता है। ऐसे में उनको गोद में लेकर भी अगर आप नियम से कमरे के स्विच या पानी बहने से पहले नल बंद करते हैं, तो वे सीखने लगते हैं। इसी तरह बड़े होते-होते उन्हें समझाया जा सकता है कि बिजली कहां से आती है या खाना खेतों से हमारी प्लेट तक कैसे पहुंचता है। हर उम्र में तरीका थोड़ा बदलता है- छोटे बच्चों के साथ खेल और कहानियों के जरिए तो वहीं बड़े बच्चों के साथ बातचीत और जानकारी देकर जिम्मेदारी का भाव विकसित किया जा सकता है।
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समझाएं पूरी कहानी
सुपरमार्केट से खरीदारी करने वाले बच्चों को उपज के पीछे की मेहनत का पता नहीं होता। ऐसे में उन्हें बताएं कि एक दाना उगाने में कितनी मेहनत लगती है। उन्हें कभी-कभी खेतों में ले जाएं या यूट्यूब पर वीडियो दिखाएं। घर पर टमाटर, धनिया जैसी सब्जियां उगाएंं। घर में ‘नो वेस्टेज’ का नियम हो। अगर बच्चा खाना छोड़ता है, तो प्यार से समझाएं कि क्योंकि उन्होंने खाना ज्यादा लिया तो अगली बार मात्रा नियंत्रित रखें। बाहर खाने जाएं तो बच्चे की भूख पूछें। प्लेट शेयर करने का सुझाव दें। अगर खाना बच जाए तो पैक करवाएं और बताएं कि ये खाना किसी और का पेट भर सकता है!
आप हैं पहले रोल माडल
बच्चे वही सीखते हैं जो वो देखते हैं। अगर हम खुद ही पानी बहाएं, बेवजह बिजली जलाएं या खाना बर्बाद करते हैं-तो हम जो कहेंगे, उसका कोई असर नहीं होगा। अगर आप एक मग में पानी लेकर ब्रश करते हैं, तो बच्चा बिना बोले समझ जाता है। अगर आप प्लेट में उतना ही भोजन लें जितना चाहिए, तो उसे बताने की जरूरत नहीं पड़ती। ट्रैफिक में गाड़ी बंद करने से लेकर कचरा फेंकने और पेड़-पौधों के प्रति लाड़ दिखाकर भी आप उन्हें सही सबक दे सकते हैं।
न दें अपराधबोध
कई बार हम अनजाने में बच्चों को शर्मिंदा कर देते हैं, ‘तुम्हें शर्म नहीं आती,इतना खाना फेंक दिया!’ इससे बच्चा सीखने की जगह डरने लगता है। बदलाव प्रेम से होता है, रोष से नहीं। आप कहें कि ‘खाना बहुत कीमती होता है, अगली बार थोड़ा कम लें तो बेहतर होगा।’ या ‘खाना बहुत मेहनत से बना है, चलो इसे खत्म करें।’
नियम जो जोड़ें पर्यावरण से
कमरे से निकलते समय पंखा और लाइट बंद करना, ब्रश करते समय नल बंद रखना या जरूरत से ज्यादा पानी ना बहाना, पुराने डिब्बों या बोतलों का दोबारा इस्तेमाल करने की आदतें जब घर का ‘नियम’बन जाती हैं, तो बच्चे इन्हें सिर्फ आदत नहीं, जिम्मेदारी समझने लगते हैं। पर्यावरण और शिष्टाचार सिखाना हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन सकता है। बच्चों को यह सीख देना कि ‘छोटे काम, बड़ा असर करते हैं’, यही असली परवरिश है। जब ये बातें आदत बन जाएंगी, तब भावी पीढ़ी संवेदनशील भी होगी।
- बच्चों को घर की जिम्मेदारियों में शामिल करें- जैसे सब्जी धोना, खाना परोसना, घर की लाइट-पंखे और नल की जांच करना।
- सप्ताह में एक दिन ‘ग्रीन डे’ मनाएं- उस दिन हरियाली से जुड़ा कोई एक काम करें।
- बच्चों को खुद तय करने दें कि वो पर्यावरण की मदद कैसे करना चाहते हैं- इससे उनमें जिम्मेदारी का भाव आएगा।
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