क्यों वॉयलेंट होते जा रहे हैं टीनएजर्स...पढ़ाई का दबाव या करियर की चिंता, क्या है असल वजह?
किशोरों में बढ़ती हिंसा और आक्रामकता समाज के लिए चिंता का विषय बन गई है। छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा और हिंसक व्यवहार आम होता जा रहा है। पारिवारिक माहौल सामाजिक दबाव और मीडिया में दिखाई जाने वाली हिंसक सामग्री इस प्रवृत्ति को बढ़ा रहे हैं। आइए जानते हैं बच्चों के हिंसक होने की वजह।

आरती तिवारी, नई दिल्ली। शास्त्रों में कहा गया है कि क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। यह न केवल व्यक्ति को अंदर से खोखला करता है, बल्कि उसके आस-पास के लोगों के लिए भी समस्याएं पैदा करता है। आजकल किशोरों में क्रोध और हिंसा की समस्या तेजी से बढ़ रही है।
छोटी-छोटी बातों पर वे अपना आपा खो देते हैं और कई बार तो ऐसे हिंसक कदम उठा लेते हैं, जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। हाल के दिनों में भारत में ऐसी कई दुखद घटनाएं सामने आई हैं, जहां किशोरों ने गुस्से में आकर सहपाठियों या शिक्षकों तक की जान ले ली। यह एक गंभीर सामाजिक समस्या है जिस पर गहराई से विचार करना जरूरी है।
क्यों बढ़ रहा है गुस्सा?
हाल ही में अहमदाबाद और गाजीपुर जैसे स्कूल परिसरों में विद्यार्थियों द्वारा हिंसक घटनाओं को अंजाम देने की खबरें सामने आई हैं। जहां मामूली झगड़ों में चाकू व अन्य हथियारों का इस्तेमाल हुआ और विद्यार्थी की जान चली गई। इन घटनाओं ने समाज को झकझोर कर रख दिया है और यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर हमारे किशोर इतने हिंसक और आक्रामक क्यों होते जा रहे हैं। किशोरावस्था जीवन का एक नाजुक दौर होता है। इस दौरान शारीरिक और हार्मोनल बदलाव होते हैं, जिसकी वजह से भावनात्मक उथल-पुथल आती है।
पढ़ाई का दबाव, करियर की चिंता, माता-पिता और शिक्षकों की अपेक्षाएं और दोस्तों या सहपाठियों का दबाव- ये सभी चीजें किशोरों पर मानसिक दबाव डालती हैं। जब यह दबाव असहनीय हो जाता है, तो गुस्सा एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया के रूप में सामने आता है। आज की जीवनशैली भी किशोरों में बढ़ते गुस्से के लिए जिम्मेदार है। संयुक्त परिवारों का टूटना और माता-पिता द्वारा अत्यधिक व्यस्त रहने के कारण बच्चों को पर्याप्त समय और ध्यान नहीं दे पाना वह कारक है जिसके चलते बच्चे अकेलापन महसूस करते हैं और अपनी भावनाओं को सही तरीके से व्यक्त नहीं कर पाते, जिससे उनके अंदर गुस्सा और निराशा बढ़ती जाती है।
टीवी और ओटीटी बन रहे उत्प्रेरक
आजकल किशोरों का ज्यादातर समय टीवी और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर बीतता है। इन पर दिखाए जाने वाले कई कार्यक्रम हिंसा और नकारात्मकता से भरे होते हैं। अक्सर किरदारों को गुस्से में तोड़फोड़ करते, अपशब्द बोलते या हिंसक होते हुए दिखाया जाता है। किशोर इन दृश्यों से प्रभावित होते हैं और उन्हें लगता है कि गुस्सा व्यक्त करने का यही एकमात्र सही तरीका है। लगातार हिंसक सामग्री देखने से वे हिंसा के प्रति असंवेदनशील होते जाते हैं। कई शोधों में भी यह बात सामने आई है कि हिंसक वीडियो गेम और फिल्में बच्चों को आक्रामक बनाती हैं।
इसके साथ ही इंटरनेट मीडिया व सामान्य जीवन में होने वाली ट्रोलिंग और बुलिंग का भी किशोरों के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यदि वे इसके पीड़ित होते हैं तो वे इस बारे में किसी से खुलकर बात नहीं कर पाते, ऐसे में उनके भीतर भावनाओं का ज्वार उमड़ता रहता है। इससे भी खतरनाक स्थिति होती है जब किशोर स्वयं किसी को बुली कर रहे होते हैं। क्योंकि यह उन्हें नकारात्मक तौर पर आत्मविश्वास देता है, ऐसे में वे अपनी खुशी के लिए किसी की हत्या करने में भी तरस नहीं खाते। जैसा कि अहमदाबाद में हुई घटना में सामने आया, जब आरोपी किशोर की चैट में खुलासा हुआ कि उसे हत्या करने का कोई पश्चाताप तक नहीं।
ये हैं समाधान
किशोरों में बढ़ती हिंसा की समस्या से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
- परिवार की भूमिका: माता-पिता को बच्चों के साथ गुणवत्तापूर्ण समय बिताना चाहिए। उनसे खुलकर बात करनी चाहिए, उनकी समस्याओं को सुनना और समझना बहुत महत्वपूर्ण है। घर का माहौल शांत और सकारात्मक होना चाहिए। माता-पिता द्वारा बच्चों को समय न देना, उनकी भावनाओं को न समझना और केवल शैक्षणिक सफलता पर जोर देना भी उन्हें भावनात्मक रूप से कमजोर बनाता है। उन्हें सही और गलत के बीच फर्क सिखाने और नैतिक मूल्यों को स्थापित करने में माता-पिता को अहम भूमिका निभानी चाहिए।
- स्कूल की भूमिका: स्कूलों को सिर्फ अकादमिक शिक्षा पर नहीं, बल्कि नैतिक और भावनात्मक विकास पर भी जोर देना चाहिए। छात्रों को भावनाओं को नियंत्रित करने और समस्याओं को शांति से हल करने के तरीके सिखाने चाहिए।
- मीडिया की जिम्मेदारी: टीवी और ओटीटी प्लेटफार्म को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और ऐसी सामग्री को बंद करना चाहिए जो हिंसा को बढ़ाती है। सरकार को भी मीडिया में हिंसक सामग्री के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाने चाहिए।
- सामाजिक जागरूकता: समाज में इस मुद्दे पर खुली चर्चा हो। किशोरों को मानसिक स्वास्थ्य सहायता उपलब्ध कराई जाए और डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना चाहिए।
यह भी पढ़ें- बच्चों की सही परवरिश के लिए जरूरी है हाउस रूल्स, इन नियमों से सिखाएं उन्हें अच्छी आदतें
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।