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    कहानी: हार में मिली जीत

    By Babita KashyapEdited By:
    Updated: Wed, 15 Feb 2017 02:50 PM (IST)

    दौड़ में हमेशा जीत हासिल करने वाले युवा ने एक प्रतियोगी की जरूरत के लिए हारी प्रतियोगिता और हार में तलाशी जीत...

    कहानी: हार में मिली जीत

    आज मां की बात पर यकीन हो गया कि हार में जीत छुपी होती है। अभी तक तो सिर्फ फिल्मों में ही सुनती आ रही थी, मगर आज यह सच सामने था। इससे पहले मैंने राजीव को कभी हारते हुए नहीं देखा था। जीतना तो जैसे उसकी आदत सी बन गई थी। पूरे रामनगर और काशीपुर में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं था, जो राजीव को हरा सके, इसीलिए तो सभी उसे दूसरा बोल्ट कहते थे। अक्सर लोग कहा भी करते थे कि यह लड़का दौड़ प्रतियोगिता जीतने के लिए ही बना है।

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    उस दिन राजीव की हार ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया था। कोई नहीं समझ पा रहा था कि यह कैसे और क्यों हुआ? सभी अपनी-अपनी टिप्पणियां दे रहे थे। उसकी हार एक बड़ी चर्चा का विषय थी। जिन्होंने यह बात सिर्फ सुनी थी, वे तो इसे मानने को ही तैयार नहीं थे कि ऐसा भी हो सकता है। ऐसा होना स्वाभाविक भी था क्योंकि राजीव हमारा बचपन का दोस्त था। हम लोगों के बीच कभी कोई राज छुपा नहीं रहता था। वह मेरी हर छोटी से बड़ी बात जानता था और मैं उसकी, लेकिन इस बार राजीव ने मुझे उस पर शक करने पर मजबूर कर दिया था। उसने हमारी सालों की दोस्ती पर सवाल खड़े कर दिए थे। मेरा विश्वास टूटने लगा था कि आखिर ऐसा क्या है कि राजीव हमें हार की वजह नहीं बता रहा है।

    दो दिन बाद जब राजीव मुझसे मिलने घर पर आया तो मैंने उससे बात करने से इंकार कर दिया। उसने मुझे समझाने के काफी प्रयास किए लेकिन मैं कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी। आखिरकार राजीव को अपनी चुप्पी तोडऩी पड़ी। उसने बताया कि जब वह दौड़ के लिए तैयार हो रहा था तो उसने एक लड़के को अपनी बहन से बात करते हुए सुन लिया था। उसकी बहन कह रही थी कि किसी भी हाल में तुम्हें यह दौड़ जीतनी है। तभी तुम इससे मिलने वाली धनराशि से अम्मी का इलाज करा पाओगे। वह लड़का मां के इलाज के लिए हर हाल में दौड़ जीतना चाहता था।

    इसीलिए मैंने दौड़ के अंत में उस लड़के को अपने समीप आने दिया और फिर मैं रुक गया ताकि वह जीत जाए। मैं चाहता तो खुद यह दौड़ जीत लेता और जीती हुई धनराशि उसे दे देता, मगर इससे उस लड़के के स्वाभिमान को ठेस पहुंचती और शायद वह धनराशि लेने से भी इंकार कर देता। इसीलिए मैं इस प्रतियोगिता में हार गया।

    राजीव की बातें सुनकर मुझे बहुत शर्म आई कि मैंने मित्रता पर ही सवाल खड़ा कर दिया और वह भी एक

    प्रतियोगिता में हार की वजह से। शर्रि्मंदगी के चलते मैंने राजीव से क्षमा मांगी। उसने मुझे समझाया कि

    दोस्ती में कभी-कभी ऐसा भी होता है। राजीव के इस नेक कार्य से मैंने एक बात सीखी कि वाकई में हार कर भी जीत हासिल की जा सकती है और इस जीत की खुशी दोहरी होती है। जानकर भी अगर राजीव यह प्रतियोगिता जीत जाता तो शायद वह लड़का अपनी मां के इलाज के लिए धनराशि नहीं जुटा पाता और उसके सपने अधूरे ही रह जाते। राजीव की हार ने यह भी संदेश दिया कि हम भारतीय धर्म-जाति की बंदिशों से ऊपर उठकर सोचते हैं। तभी तो हमारे देश को अनेकता में एकता वाला देश कहा जाता है।

    बबीता पटवाल, नैनीताल (उत्तराखंड)