Ratlami Sev: देश ही नहीं विदेश में भी मशहूर रतलामी सेव का स्वाद, 200 साल पुराना है इसका दिलचस्प इतिहास
खानपान की बात हो और मालवा का जिक्र न किया जाए ऐसा तो हो ही नहीं सकता है। मध्य प्रदेश का मालवा क्षेत्र अपने अनोखे स्वाद के लिए दुनियाभर में मशहूर है। यहां कई ऐसे व्यंजन मिलते हैं जिन्हें लोग बड़े चाव से खाते हैं। मालवा का रतलामी नमकीन इन्हीं में से एक है जो अपने तीखे स्वाद के लिए काफी पसंद किया जाता है। आइए जानते हैं इसका इतिहास

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Ratlami Sev: दुनिया भर में भारत अपनी संस्कृति और परंपराओं के लिए जाना जाता है। देश की विविधता से आकर्षित होकर आज भी दुनिया भर से लोग यहां आते हैं। संस्कृति और परंपराओं के अलावा यहां के खास व्यंजन भी लोगों को खूब लुभाते हैं। इन व्यंजनों का स्वाद दुनिया भर में लोगों की जुबां पर चढ़ा हुआ है। विविधताओं के देश भारत में सिर्फ भाषाओं और संस्कृतियों में ही विविधता नहीं झलकती, बल्कि यहां के खानपान में भी आपको कई तरह के स्वाद चखने को मिलेंगे। यहां के हर शहर और राज्य की अपनी अलग विशेषता है। खानपान में भी यह विशेषता साफ दिखाई देती है। भारत में अपने खाने के लिए यूं तो कई सारे क्षेत्र मशहूर हैं, लेकिन मध्यप्रदेश के मालवा की बात ही कुछ अलग है।
दुनियाभर में मशहूर मालवा के व्यंजन
दाल-बाटी से लेकर समोसा कचौड़ी तक, जहां हर एक व्यंजन का अपना अलग स्वाद है। इन सबके अलावा यहां मिलने वाले रतलामी सेव दुनियाभर में काफी प्रसिद्ध है। यही वजह है कि सेव का नाम लेते ही, लोगों की जुबां पर सबसे पहले रतलामी सेव का स्वाद आता है। शायद ही कोई ऐसा हो, जिसने आज तक रतलामी सेव का स्वाद न चका हो। अगर आप भी रतलामी सेव के स्वाद के दीवाने हैं, तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं इसके दिलचस्प इतिहास के बारे में। तो चलिए जानते हैं रतलामी सेव से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें-
200 साल पुराना इसका इतिहास
लोगों के खाने का स्वाद बढ़ाने वाला रतलामी सेव खाने में तीखा, लेकिन स्वादिष्ट होता है। यह सेव कई तरह के फ्लेवर में मिलते हैं, जिसमें बेसन, लौंग, काली मिर्च और अन्य मसाले शामिल हैं। लोग इसे अलग-अलग तरीके से खाना पसंद करते हैं। कुछ लोग जहां चाय की चुस्कियां लेते हुए सेव खाना पसंद करते हैं, तो वहीं कुछ लोग पोहे के साथ इसे खाते हैं। कई जगह इन्हें लौंग सेव या इंदौरी सेव के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस रतलामी सेव को आप चटकारे लेकर खाते हैं, उसकी शुरुआत कैसे हुई थी। अगर नहीं तो आज हम आपको बताने वाले हैं रतलामी सेव के 200 साल पुराने इतिहास के बारे में, जिसे शायद ही आपने कभी सुना होगा।
जानें क्या है इसका इतिहास
देश ही नहीं दुनिया भर में मशहूर रतलामी सेव का इतिहास कढ़ीब 200 साल पुराना है। बहुत कम लोग ही है जानते होंगे कि इसकी जड़े आदिवासियों और मुगलों से जुड़ी हुई हैं। बात 19वीं सदी की है, जब कुछ मुगल शाही परिवार के लोग रतलाम आए थे। इस दौरान उन्हें सेवइयां खाने की इच्छा हुई, जो गेहूं से बना करती है। लेकिन उस समय रतलाम ने गेहूं उगाया नहीं जाता था, क्योंकि यह अमीरों का खाना हुआ करता था। ऐसे में गेहूं ना होने की वजह से मुगलों ने वहां रहने वाली भील जाति के आदिवासियों को बेसन से सेवइयां बनाने को कहा और इस तरह रतलामी सेव की शुरुआत हुई।
पहले इस नाम से था मशहूर
भील जाति के द्वारा बनाए जाने की वजह से इसे भीलड़ी सेव भी कहा जाता था। समय के साथ रतलाम के लोगों ने सेव के साथ कई सारे प्रयोग किए और फिर कई तरह के मसालों के साथ इसे बनाना शुरू किया। देखते ही देखते रतलामी सेव का स्वाद पूरे मध्यप्रदेश और फिर देश विदेश में फैल गया। सेव की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए इसे कई फ्लेवर में बनाना शुरू किया गया। मौजूदा समय में मार्केट में रतलामी सेव की कई सारी वैरायटी मिलती हैं, जिसमें लौंग, हींग, लहसुन, काली मिर्च, पाइनएप्पल, टमाटर, पालक, पुदीना, पोहा, मैगी से लेकर चॉकलेट फ्लेवर तक शामिल हैं।
2017 में मिला जीआई टैग
देश-दुनिया में रतलामी सेव लोकप्रियता को देखते हुए साल 2017 में इसे जीआई टैग भी दिया गया। जीआई टैग एक खास तरह का लेबल होता है, जो किसी विशेष क्षेत्र के व्यंजन या उत्पाद को भौगोलिक पहचान के रूप में दी जाती है। रतलामी सेव मालवा में रहने वाले लोगों के खानपान का एक अहम हिस्सा है। यही वजह है कि यहां के लोगों का भोजन सेव के बिना अधूरा रहता है। साथ ही इस व्यंजन की बढ़ती डिमांड की वजह से मौजूदा समय में रतलाम में सेव बनाने और बेचने वाली कढ़ीब 500 छोटी-बड़ी दुकानें मौजूद हैं।
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