Falooda: मुगलों के साथ भारत पहुंचा था ‘फालूदा’, जानें पर्शिया से लेकर भारत तक का इसका सफर
Falooda अपनी संस्कृति और परंपराओं के अलावा भारत अपने खानपान के लिए भी दुनियाभर में काफी मशहूर है। यहां अलग-अलग तरह के कई सारे व्यंजन मिलते हैं। फालूदा इन्हीं व्यंजनों में से एक है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वह भारत की नहींबल्कि विदेश की मिठाई है।

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Falooda: दुनिया भर में भारत हमेशा से ही आकर्षण का केंद्र रहा है। यहां की संस्कृति और विविधता हमेशा से ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती रही है। अपनी संस्कृति और परंपराओं के अलावा यहां का खानपान भी लोगों के बीच काफी मशहूर है। यहां हर राज्य और शहर का अपना अलग स्वाद है। यही वजह है कि यहां अलग-अलग प्रकार के व्यंजनों का स्वाद चखने को मिलता है। देश-विदेश से लोग यहां अपनी पसंद के मुताबिक चीजें खाना पसंद करते हैं। भारत में मिलने वाले कई सारे व्यंजन मूल रूप से भारतीय हैं। वहीं, कुछ ऐसे भी हैं, जो विदेशों से यहां आकर लोकप्रिय हुए हैं।
देशभर में मशहूर फालूदा
फालूदा इन व्यंजनों में से एक है, जो भले ही विदेश से भारत आया हो, लेकिन आज यहां कई लोगों का पसंदीदा व्यंजन बन चुका है। देश के कई शहरों में लोग बड़े चाव से इसके खाते हैं। खासतौर पर गर्मियों में लोग इसे खाना बेहद पसंद करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर जिस फालूदा को आप इतने शौक से खाते हैं, वह असल में भारत आया कैसे। अगर नहीं तो चलिए आज आपको बताते हैं फालूदा के भारत तक पहुंचने का सफर-
कितना पुराना है फालूदा इतिहास
इतिहासकारों की मानें तो फालूदा भारत की मिठाई नहीं है। यह मुख्य रूप से ईरान (पर्शिया) की पारंपरिक मिठाई है, जिसे वहां के लोगों द्वारा त्योहारों और खुशी के मौके को पर खाया जाता है। फालूदा दुनिया की सबसे प्राचीन मिठाइयों में से एक है। यह मिठाई 400 ईसापूर्व से खाई जा रही है। ईरान में इसे फालूदेह के नाम से जाना जाता है। इसे बनाने के लिए वर्मीसेली, नूडल्स, गुलाब जल और चाशनी का इस्तेमाल किया जाता है। इस खास मिठाई को ईरान में एक खास अवसर पर खाया जाता है, जिसे ‘जमशेदी नवरोज’ के नाम से जाना जाता है।
भारत कैसे पहुंचा फालूदा?
फूड हिस्टोरियन का मानना है कि भारत में फालूदा की एंट्री मुगल काल में हुई थी। वर्षों पहले भारत आए मुगल अपने साथ कई चीजें लेकर आए थे। फालूदा भी इन्हीं में से एक था। ऐसा माना जाता है कि मुगल बादशाह अकबर के बेटे जहांगीर के साथ 16वीं से 18वीं शताब्दी के बीच फालूदा भारत पहुंचा था। अलग-अलग व्यंजनों के शौकीन जहांगीर ने जब इस ईरानी मिठाई को खाया, तो वह इसके स्वाद के दीवाने हो गए और फिर उनके साथ यह भारत तक पहुंच गया। हालांकि, कुछ लोगों का यह भी मानना है कि नादिर शाह फालूदा को भारत लेकर आया था।
दुनियाभर में अलग-अलग नामों से मशहूर फालूदा
ईरान (पर्शिया) से ताल्लुक रखने वाली यह मिठाई धीरे-धीरे पूरे भारत में लोकप्रिय हो गई और आज इसे देश के कई शहरों में बड़े चाव से खाया जाता है। भारत के अलावा यह मिठाई अन्य देशों में भी काफी प्रचलित है। इसे अलग-अलग देशों में इसे अलग-अलग नाम से जाना जाता है। मलेशिया और सिंगापुर में फालूदा को कंडोल कहा जाता है। वहीं, मॉरिशस में इसे अलूदा के नाम से जाना जाता है। फिलीपींस में इसे हालो-हालो नाम की स्वीट डिश के साथ खाया जाता है। वहीं, भारत, नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान में फालूदा को आइसक्रीम के साथ खाया जाता है।
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