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    एक झूठ हजार मुसीबत

    By Srishti VermaEdited By:
    Updated: Sat, 18 Feb 2017 04:35 PM (IST)

    झूठ बोलने से हमारी छवि तो खराब होती ही है रिश्ते भी खराब होते हैं। बावजूद इसके क्यों इस बुरी आदत को गले लगा लेते हैं लोग क्या है इसका राज और कैसे बचें ...और पढ़ें

    एक झूठ हजार मुसीबत

    राघव सोशल मीडिया पर काफी लोकप्रिय है। वह जब भी नई किताबों, नई फिल्मों या किसी नई तकनीक अथवा जानकारी से जुड़ी पोस्ट डालता है,तो लाइक-कमेंट्स की झड़ी लग जाती है। पर उसी की कक्षा में पढ़ने वाले श्याम को राघव नहीं सुहाता। वह साफ कहता है कि राघव पर उसे कतई भरोसा नहीं, क्योंकि वह जो दिखाता है,वास्तव में वैसा है नहीं। दोस्तो, प्रमाण होने के बाद भी हम किसी पर पूरा यकीन नहीं कर पाते और कभी किसी पर झट से भरोसा कर लेते हैं। ऐसा क्यों होता है? इस सवाल का जवाब देते हुए मनोवैज्ञानिक आरती आनंद कहती हैं, ‘किसी पर भरोसा उसके शब्दों से नहीं,बल्कि उसके व्यवहार या काम को देखकर होता है। यदि झूठ बोलकर या बातों को घुमाकर कहने की आदत है, तब भरोसा जीतना तो दूर, यह एक आदत हजार मुसीबत साथ ले आती है।’

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    क्यों बनते हैं झूठे ?

    होमवर्क नहीं करने का बहाना,परीक्षा के दिनों में कोर्स की किताबों में कॉमिक्स छुपाकर पढ़ना, किसी गैजेट का दाम बढ़ा-चढ़ाकर बताना, किसी की झूठी तारीफ या सोशल मीडिया में लाइककमेंट्स पाने के लिए कुछ भी पोस्ट कर देना। अंत नहीं है रोजाना बोले जाने वाले झूठ का। पर क्यों बनते हैं हम झूठे? पेंटर,क्यूरेटर और एसोसिएट प्रोफेसर प्रियंका दुआ कहती हैं, ‘कोई झूठा कहे तो बुरा मान जाते हैं हम। पर कोई क्यों झूठा बन जाता है? यह बड़ा रोचक विषय है। दरअसल, हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है लोगों से प्यार और सराहना पाने की इच्छा। इसके लिए लोग बड़े से बड़ा झूठ आसानी से बोल देते हैं। बाद में भले पछतावा हो,पर झूठा होना हमारे स्वभाव में शामिल हो जाता है।’ यह इच्छा ही भारी पड़ती है। हम तनाव में भी आ जाते हैं। आपने भी इस बात पर जरूर ध्यान दिया होगा कि एक झूठ बोलने पर हमें उसके बारे में आगे भी कई झूठ बोलने पड़ते हैं। याद भी रखना पड़ता है कि आखिरी बार क्या कहा था, उस आखिरी झूठ को बचाने के लिए अब कौन-सा झूठ अपनाएं!

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    दिमाग की भूमिका

    मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यट ऑफ टेक्नोलॉजी, अमेरिका में हुए एक शोध के अनुसार, झूठ का अधिक सहारा लेने वाले लोगों का दिमाग भी इसका आदी हो जाता है। इसलिए एक बार इसकी आदत लग जाए तो हम बड़े-बड़े झूठ भी आसानी से बोल देते हैं। शोध से जुड़े वैज्ञानिकों के मुताबिक, जिस समय हम झूठ बोलने की सोच रहे होते हैं, उस वक्त दिमाग के एक खास हिस्से (अमेगडाला) में बदलाव आना शुरू हो जाता है। शरीर में रक्त संचार तेज हो जाता है और धड़कनें बढ़ जाती हैं। हम भयभीत होने लगते हैं। पर झूठ की आदत बन जाए,तो दिमाग का यह हिस्सा स्थिर होने लगता है और ये लक्षण गायब हो जाते हैं। आपने नोटिस किया होगा कि कुछ लोग बड़ी आसानी से झूठ बोल लेते हैं और ऐसा करते समय उनके चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं आती। मन में ग्लानि का भाव भी नहीं होता। वे झूठ को सच ठहराने से भी बाज नहीं आते। ऐसा इसलिए, क्योंकि उनका दिमाग इन बातों का आदी हो चुका होता है। उनका दिमाग झूठ के परिणामों या अच्छे- बुरे के बारे में भी नहीं सोच पाता, बल्कि एक नए झूठ के लिए पहले से तैयार रहता है। हां, अच्छी बात यह है कि हम दिमाग को फिर से रिशेप यानी नया आकार दे सकते हैं। यह तब संभव है जब हम झूठ बोलने के दौरान अपने नकारात्मक भावों को नोटिस करें और वापस सच की तरफ रुख करें।

    खुशी का भुलावा

    12वीं की स्टूडेंट रिया कहती हैं, ‘झूठ अपने फायदे के लिए बोलते हैं लोग। इसलिए यदि यह कहें कि आप केवल सच ही बोलें तो यह अव्यावहारिक होगा। पर ऐसा फायदा किस काम का हो सकता है जिसमें आपके अपने नाराज हो जाएं। उनकी नजर में आप झूठे बन जाएं और अंत में खुद का यकीन भी खो दें।’ वीजे और एक्टर ल्यूक के मुताबिक, झूठ कभी आपको खुशी नहीं दे सकता। यह बस भुलावे में रख सकता है। हां, ऐसे किसी झूठ से किसी का फायदा हो रहा है, तो वहां शांति मिल सकती है। शर्त यह है कि उस झूठ से किसी को नुकसान न हो रहा हो,जैसे-यदि कोई जरूरतमंद है और आपके पास भी पैसे नहीं हैं, फिर भी आप कहते हैं कि आपको दिक्कत नहीं, तो यह झूठ नहीं दिलेरी कहा जाएगा। इस झूठ से आपको सचमुच खुशी भी होगी।

    चुप्पी भी एक हल

    सच बोलना चाहिए, इस बात को भी गहराई से समझने की जरूरत है। मनोवैज्ञानिक आरती आनंद कहती हैं,‘किशोरों की आदत होती है कि वे तपाक से जवाब दे देते हैं। कोई तारीफ के लिए पूछ रहा है, तो इस पर ध्यान देने के बजाय उनके मन में जो तुरंत आता है, वह बोल देते हैं। सच बोलने की आदत अच्छी है, लेकिन ऐसा सच न बोलें, जिसकी वजह से किसी के दिल को चोट पहुंचे।’ दोस्तो, सच कड़वा होता है, पर इसे अपने व्यवहार से जाहिर न करें। शिष्टता का प्रयोग भी जरूरी है। दोस्ताना या आत्मीय रिश्ते में किसी को प्यार से चुड़ैल,मोटी या चश्मिश आदि कह देना अलग बात है, पर आपके लहजे से यह सच अधिक कड़वा लग सकता है। जो सच न बोल पाएं, वहां चुप हो जाना अच्छा हल है। लगता है कि आपकेझूठ से पैरेंट्स, टीचर या दोस्त नाराज हो सकते हैं, तो एक बार सच बोलकर देखें। परिणाम जो भी हो, उसके लिए तैयार रहें। पाएंगे कि इस साहसी पहल से लोग आपको पहले से अधिक प्यार करने लगे होंगे। बहाने कम होते जाएंगे, सीधी-सच्ची बातों से ज्यादा लगाव होने लगेगा।

    जीत लें खुद का भरोसा

    सच और झूठ दो ही चीजों से हमारी पर्सनैलिटी बनती है। जिसका पलड़ा ज्यादा भारी होगा, हम वैसा ही बनेंगे। आजकल लोग मेनिपुलेट करते हैं यानी बातों को ज्यादा घुमाते हैं। लेकिन कितना भी घुमाकर बोलें, सच नहीं बदल सकता। मैंने अब तक के अपने अनुभवों से यही जाना है कि आपके पास कुछ हो न हो, लोग प्यार कम करें न करें, इन सबसे अधिक जरूरी है कि हम अपने बारे में अच्छा महसूस करें। अच्छा तभी महसूस करेंगे, जब खुद को खुशी देने वाला काम करेंगे। रात में सिनेमा देखना अच्छा लग रहा है, तो इसके लिए छुपकर देखने की जरूरत नहीं। अभिभावकों को बता सकते हैं। दोषी या शर्मिंदा होने से बच जाएंगे आप और खुशी होगी सो अलग।

    ल्यूक कैनी,वीजे व एक्टर

    -90 प्रतिशत बच्चे चार साल की उम्र तक झूठ बोलना सीख जाते हैं।

    -’ यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स के मुताबिक तकरीबन 8 प्रतिशत लोग हर दस मिनट में एक बार झूठ जरूर बोलते हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि शेष 40 प्रतिशत झूठे नहीं होते।

    -’ दोस्तों से सबसे अधिक 75 प्रतिशत, भाई- बहनों से 73 प्रतिशत, करीबियों से 69 प्रतिशत लोग झूठ बोलते हैं।

    प्रस्तुति- सीमा झा