जानें, भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त सूरदास से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
जब सूरदास गऊघाट पर गायन करते थे तो उनकी इस रचना का श्रवण आम जनमानस भी करते थे। इनकी एक रचना उस समय काफी प्रसिद्ध हुई थी जिसे सुनने मुगल शासक अकबर खुद गऊघाट आए थे।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। सगुण भक्ति के महान कवि और भगवान श्रीकृष्ण के भक्त सूरदास का जन्म 1478 ई में हुआ था। इनके जन्म स्थान और जन्मांध को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वान मानते हैं कि सूरदास का जन्म दिल्ली के समीप सीही नामक गांव में हुआ था। इसके बाद इनके माता-पिता गऊघाट में जाकर बस गए थे, जो आगरा और मथुरा के मध्य अवस्थित है। कुछ विद्वान कहते हैं कि इनका जन्म रुनकता गांव में हुआ था, जो गऊघाट से बहुत नजदीक है।
श्री वल्लभाचार्य से पुष्टिमार्ग में दीक्षा हासिल की
इसी स्थान पर महान कवि और गायक सूरदास की मुलाकात श्री वल्लभाचार्य से हुई थी। इसके बाद इन्होंने श्री वल्लभाचार्य से पुष्टिमार्ग में दीक्षा हासिल कर उनके शिष्य बन गए। कालांतर में सूरदास को भगवान श्रीकृष्ण के भक्त और सगुण भक्ति में प्रथम स्थान दिया गया। सूरदास बचपन से ही गायन और संगीत में रुचि रखते थे। इन्होंने कई ऐसी काव्य रचनाएं की हैं, जिनमें भगवान श्रीकृष्ण के बाल्यकाल की लीलाओं का वर्णन किया है। इनकी मुख्य रचनाएं साहित्य-लहरी, नल-दमयंती, सूरसारावली, ब्याहलो सूरसागर आदि हैं।
मुगल शासक इनसे मिलने मथुरा घाट आए
जब सूरदास गऊघाट पर गायन करते थे तो उनकी इस रचना का श्रवण आम जनमानस भी करते थे। इनकी एक रचना उस समय काफी प्रसिद्ध हुई थी, जिसे सुनने मुगल शासक अकबर खुद गऊघाट आए थे। इसके बाद अकबर ने सूरदास को दरबारी कवि बनने का आमंत्रण दिया, लेकिन सूरदास ने इसे स्वीकार नहीं किया। इस बारे में सूरदास का कहना था कि वे केवल अपने प्रभु के लिए गाते हैं। इसके बाबजूद अकबर ने राज्य सरकार में जगह दी।
सूरदास के जीवन का महत्व
भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त, सगुण भक्ति के कवि और गायक सूरदास ने अपने जीवन में हजारों दोहे, छंदों की रचना की है, जो आज भी प्रासंगिक हैं। इनकी रचनाओं में भक्ति भावना कूट-कूट कर भरी है, जिसे सुनकर लोग आनंदित-आह्लादित हो उठते हैं। भले ही सूरदास बचपन से जन्मांध रहे हों, लेकिन उनकी ज्ञान के चक्षु हमेशा जागृत रहते थे, जिनसे वे अपने भगवान के दर्शन करते रहते थे। आज भी धार्मिक स्थलों पर सूरदास की जीवनी का बखान और उनकी रचनाओं का गुणगान किया जाता है। सूरदास 1584 ई में ब्रह्मतत्व में विलीन हो गए।
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