जानें, सिख धर्म के संस्थापक और प्रथम गुरु नानक देव के बारे में बेहद रोचक बातें
गुरु नानक देव को बचपन से ही भौतिक जीवन से कोई सरोकार नहीं था। पढ़ाई-लिखाई में उन्हें जरा भी मन नहीं लगता था और इससे बचने के लिए वे नायाब तरीके ढूंढते रहते थे।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। सिख धर्म के संस्थापक और प्रथम गुरु नानक को पूरी दुनिया कवि, दार्शनिक, समाज सुधारक और धर्म सुधारक के रूप में जानती है। इनका जन्म 15 अप्रैल 1469 को वर्तमान में पाकिस्तान के रावी नदी के तट पर बसे तलवंडी गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता देवी था। इन्हें लोग गुरु जी, नानकशाह और बाबा नानक कहकर पुकारते हैं।
गुरु नानक देव जी का बचपन
गुरु नानक देव को बचपन से ही भौतिक जीवन से कोई सरोकार नहीं था। पढ़ाई-लिखाई में उन्हें जरा भी मन नहीं लगता था और इससे बचने के लिए वे नायाब तरीके ढूंढते रहते थे। नानक देव को बाल्यकाल से ही आध्यात्म के प्रति अगाढ़ आस्था थी और सत्य की खोज में वे हमेशा लगे रहते थे। कई अवसरों पर इन्होंने अपनी बुद्धिमता का परिचय देकर और चमत्कारिक उपाय कर लोगों को आश्चर्य चकित कर दिया। उनके इसी चमत्कार को देख लोग उन्हें गुरु मानने लगे।
गुरु नानक देव जी की शादी
जब गुरु नानक देव 16 साल के थे, तभी इनकी शादी माता सुलखनी से हुई। इनके परिवार में दो पुत्र श्रीचंद और लखमीदास थे। दूसरे पुत्र के जन्म के बाद गुरु नानक जी ने 1507 ई में अपने परिवार का दायित्व अपने ससुर को सौंप कर सत्य ज्ञान हासिल करने के लिए तीर्थयात्रा पर निकल पड़े।
गुरु नानाक देव जी की प्रमुख तीर्थ यात्राएं
गुरु जी 1507 से 1521 ई के बीच भारत, अफगानिस्तान, अरब और फारस की तीन बार यात्रा की। गुरु जी की इन यात्रा को "उदासियां" कहा जाता है। अपनी यात्रा के दौरान वे लोगों को उपदेश दिया करते थे।
गुरु जी पंचतत्व में हुए लीन
देश और दुनिया में गुरु नानक देव जी की प्रसिद्धि फ़ैल गई। लोग उन्हें गुरु मानने लगे। ऐसे में गुरु जी के दर्शन और आशीर्वाद लेने हेतु लोगों का उनके घर पर तांता लगने लगा। तत्कालीन समय में उन्होंने करतारपुर नामक एक नगर की स्थापना कर एक धर्मशाला बनवाया और वहीं रहने लगे। इसी धर्मशाला में गुरु नानक देव 22 सितंबर 1539 को पंचतत्व में विलीन हो गए।
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