जानें, मराठा योद्धा छत्रपति संभाजी महाराज से जुड़ें रोचक तथ्य, महादेव के थे अनन्य भक्त
इनके जन्म के कुछ समय पश्चात इनकी माता सईबाई का देहांत हो गया। इसके बाद इनका लालन-पालन दादी ने किया। कालांतर में इन्होंने मराठी और संस्कृत सहित कई अन्य भाषाओं में प्रवीणता हासिल की।
वीर शिवाजी के ज्येष्ठ पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज की आज जयंती है। 14 मई, सन 1657 ई में इनका जन्म हुआ था। ये बचपन से ही अपने पिता शिवाजी के जैसे वीर योद्धा थे। इन्होंने अपना पूरा जीवन देश को समर्पित कर दिया था। आज भी इनकी वीरता की कहानियां पढ़ी और सुनी जाती हैं। संभा जी बचपन से ही राजनीति के ज्ञाता रहे और कई अवसरों पर उन्होंने अपनी कुशलता का परिचय भी दिया।
संभा जी का जीवन परिचय
छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म 14 मई, 1657 को तत्कालीन महाराष्ट्र स्थित पुरन्दर के किले में हुआ था। इनके पिता का नाम छत्रपति शिवाजी महाराज और माता का नाम सईबाई था। इनके दादा शाहजी भोसले और दादी जीजाबाई थे। संभा जी की पत्नी का नाम येसूबाई था। इनके जन्म के कुछ समय पश्चात इनकी माता सईबाई का देहांत हो गया। इसके बाद इनका लालन-पालन दादी ने किया। कालांतर में इन्होंने मराठी और संस्कृत सहित कई अन्य भाषाओं में प्रवीणता हासिल की।
ब्राह्मण कवि कलश उनके सलाहकार बने
ऐसा कहा जाता है कि संभा जी की सौतेली मां अपने बेटे राजाराम को राजा बनाना चाहती थीं। इसलिए वह शिवाजी जी के मन में संभा जी के प्रति घृणा जागृत करती थी। इससे शिवाजी और संभाजी के बीच अविश्वास की स्थिति बनी रहती थी। एक बार शिवाजी ने उन्हें किसी कारणवश कारावास में डलवा दिया था। जहां से वह भाग निकलने में कामयाब हुए थे। इसके बाद वह मुगलों से जा मिले, लेकिन मुगलों का हिन्दुओं के प्रति क्रूर स्वभाव को देखकर वह पुनः अपने राज लौट आए। जब वह औरंगजेब के कारावास से भाग रहे थे तो उस समय उनकी मुलाकात ब्राह्मण कवि कलश से हुई, जो आगे चलकर उनके सलाहकार बने।
बुधाचरित्र की रचना की
साहित्य के प्रति भी इनका रुझान था। इन्होंने कई साहित्यिक रचनाएं कीं, जो आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने अपने पिता के सम्मान में संस्कृत भाषा में बुधाचरित्र की रचना की।
संभा जी की मृत्यु
सन 1665 में मुगलों और मराठों के बीच पुरन्दर की संधि हुई। इसके बाद 3 अप्रैल 1680 को शिवाजी की मृत्यु हो गई। उस समय संभा जी राजा बने और उन्होंने अपने पिता के सहयोगियों को पद से बर्खास्त कर नए मंत्रिमंडल का गठन किया। इन्होंने कवि कलश को अपना सलाहकार नियुक्त किया, जो कि मथुरा के रहने वाले थे। इन्हें मराठी भाषा का जरा भी ज्ञान नहीं था। इसे शिवाजी के सहयोगियों ने अपमान मान संभा जी के खिलाफ आंतरिक विद्रोह का बिगुल फूंक दी। इसी विद्रोह के चलते संभाजी मुगलों से लड़ाई में हारे। इसके बाद उन्हें बंदी बना लिया गया और गंभीर मानसिक और शारीरिक यातनाएं दी गईं, लेकिन महादेव के भक्त संभाजी ने मरते दम तक हार नहीं मानी और 11 मार्च, 1689 को उन्हें वीरगति प्राप्त हुई।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।