अल्पआयु में ही हिंदी साहित्य को हर प्रकार से समृद्ध कर गए चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी'
गुलेजी जी की खगोल विज्ञान और शोध के क्षेत्र में विशेष रुचि थी। हिंदी को हर प्रकार से समृद्ध करने वाले गुलेरी जी ने 11 सितंबर 1922 को 39 वर्ष की अल्पआयु में ही शरीर त्याग दिया। सही मायने में गुलेरी जी भावप्रधान रचनाकार थे।

मलय बाजपेयी। निर्विकार पे्रम, त्याग और देशभक्ति से भरी उनकी कहानी 'उसने कहा था' पाठक के मर्मस्थल को छू जाती है। इसे हिंदी साहित्य में बेहतरीन कहानियों में गिना जाता है तो 'सुखमय जीवन' कहानी एक ऐसे व्यक्ति की रोचक कथा है जिसने स्वयं ही गृहस्थ जीवन के अनुभव पर केंद्रित पोथी लिखी और उसी के इर्दगिर्द अपने जीवन को दर्शाया।
इसके अलावा 'धर्मपरायण रीछ', 'बुद्धू का कांटा', 'घंटाघर' और 'हीरे का हीरा' उनकी प्रमुख कहानियां हैं। गुलेरी जी के निबंध 'मारेसि मोहिं कुठांउ', 'पुरानी हिंदी', 'देवकुल', 'आंख' और 'कछुआ धर्म' आदि साहित्य की संपदा हैं। गुलेरी जी के लेखन में विनोद के साथ ही मार्मिकता का भाव निरंतर प्रवाहित हुआ है। कठिन मुहावरों, सौम्य भाषा प्रवाह से युक्त किस्साबयान उनकी करती रचनाएं पाठकों को आज भी गुदगुदाती है।
राजपंडित के घर में जन्म लेने के कारण बचपन से उन्हें धार्मिक कर्मकांड का वातावरण मिला और उन्होंने वेद, पुराण, उपनिषद, रामायण, महाभारत का विपुल ज्ञान अर्जित कर लिया जिसकी झलक उनकी रचनाओं विशेषकर निबंधों और शोध लेखों में मिल जाती है।
गुलेरी जी का जन्म हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के गुलेर गांव में हुआ था। इस कारण उनके नाम के साथ गुलेरी लिखा जाता है। वह कई भाषाओं में सिद्धहस्त थे और अपने अध्ययन काल के दौरान ही मासिक पत्र 'समालोचक' का उन्होंने संपादन किया और काशी नागरी प्रचारिणी सभा से भी जुड़े रहे। गुलेरी जी के लेखन का एक बड़ा हिस्सा अकादमिक और शोधपरक है। गुलेजी जी की खगोल विज्ञान और शोध के क्षेत्र में विशेष रुचि थी। हिंदी को हर प्रकार से समृद्ध करने वाले गुलेरी जी ने 11 सितंबर 1922 को 39 वर्ष की अल्पआयु में ही शरीर त्याग दिया। सही मायने में गुलेरी जी भावप्रधान रचनाकार थे।
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