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    शिशु की परवरिश को लेकर भ्रम और हकीकत

    By Srishti VermaEdited By:
    Updated: Sat, 18 Feb 2017 04:33 PM (IST)

    किसी ने सही कहा है कि बच्चों की परवरिश बच्चों का खेल नहीं है। साथ ही हमारे देश में शिशुओं की परवरिश को लेकर ढेर सारे भ्रम भी बने हुए हैं। आइए जानते हैं क्या है इनकी हकीकत...

    शिशु की परवरिश को लेकर भ्रम और हकीकत

    चाइल्ड केयर स्पेशलिस्ट- डॉ सी. एस. गांधी
    भ्रम

    शिशुओं की मालिश करने का समय सुबह ही है। शाम को मालिश नहीं करनी चाहिए।

    हकीकत

    यह सोच गलत है। प्रतिदिन दो बार मालिश से शिशु के शरीर में अधिक स्फूर्ति व ताकत रहेगी। साथ ही उसका वजन भी बेहतर बढ़ेगा। शाम की मालिश से उसे रात की नींद अच्छी आएगी। शाम की सर्दी के समय भी तेल की परत शिशु के शरीर की गर्मी बनाए रखने में उपयोगी होगी।

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    भ्रम

    शिशु को पर्याप्त मात्रा में फ्रूट जूस देना चाहिए। इससे उसे खूब पोषण मिलेगा।

    हकीकत

    शिशु को छह माह उम्र के उपरांत ही स्तनपान के अलावा ऊपरी आहार शुरू करना चाहिए। ऐसे में उसकी खुराक का अधिक हिस्सा ठोस आहार द्वारा प्रोटीन व कैलोरी प्रदान करने के लिए होना चाहिए। मिनरल्स की आपूर्ति के लिए समूचा फल काटकर या पीसकर देना बेहतर विकल्प है, जिससे फाइबर भी मिल सके। साथ ही ताजा फ्रूट जूस भी कुछ मात्रा में दिया जा सकता है, पर बाजार में मिलने वाले फ्रूट ड्रिंक नहीं।

    भ्रम

    बच्चे की लैट्रीन हरे रंग की होना संक्रमण का संकेत है, जिसके लिए एंटीबॉयटिक दवाएं तुरंत देनी चाहिए।

    हकीकत

    लैट्रीन में हरा रंग लीवर में बनने वाले बाइल की वजह से होता है, जो कि पाचन में मदद करता है। इस पाचन क्रिया में किसी भी अनियमितता के कारण या मामूली संक्रमण या कभी दवाओं के असर से यह बाइल अति शीघ्र आंतों में पहुंचता है व लैट्रीन को हरा रंग प्रदान करता है। ऐसे में एंटीबॉयटिक दवाएं देने से कोई लाभ नहीं होता। इनके प्रयोग से बचें।

    भ्रम

    बच्चों को रोटी/चावल खिलाने से उनका पेट निकल आता है। अत: उन्हें अधिकतर दूधाहार पर ही रखना चाहिए।

    हकीकत

    बढ़ती उम्र के साथ बच्चों की शारीरिक जरूरतें भी बदलती हैं, जो कि दूधाहार से पूरी नहीं हो पातीं। प्रोटीन, विटामिन, फैट आदि प्रदान करने के लिए बैलेंस्ड डाइट आवश्यक है और पर्याप्त मात्रा में अन्न इस डाइट का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इनके सेवन से पेट नहीं निकलता, बल्कि तंदुरुस्ती बढ़ती है।

    भ्रम

    शिशु यदि अत्यधिक रोता रहता है तो उसे हर एक-एक घंटे में दूध पिलाना पड़ता है। ताकि उसकी भूख शांत रहे।

    हकीकत

    शिशु के रोने को सदैव भूख का संकेत न समझें। उसके लिए निप्पल को मुंह में रखना ही सुखदाई होता है, न कि सदैव दूध की इच्छा। इसके अतिरिक्त बच्चे के रोने के और भी कई कारण हो सकते हैं। बेवजह अत्यधिक स्तनपान मां के लिए थकान भरा होता है व बच्चे को भी गैस की समस्या करता है।
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    भ्रम

    दांत आने की वजह से बुखार आना एक सामान्य प्रतिक्रिया है।

    हकीकत

    यह धारण गलत है। दांत निकलना एक प्राकृतिक प्रतिक्रिया है, जिससे बुखार नहीं आ सकता। हां, इस समय मसूड़े में अड़चन व चिड़चिड़ेपन के कारण बच्चे गंदी वस्तुएं मुंह में डालकर चबाते हैं। इनसे होने वाला संक्रमण ही बुखार को जन्म देता है। आवश्यक सफाई का ध्यान रखकर इस संक्रमण से बच्चे को बचाया जा सकता है।

    भ्रम

    नहाते समय पानी कान में चले जाने के कारण बच्चों में कान का इन्फेक्शन हो जाता है।

    हकीकत

    कान के भीतरी भाग का इन्फेक्शन नाक/गले से होकर यूस्टेशियन ट्यूब से होकर कान तक पहुंचता है, न कि कान के बाहर से अंदर की ओर। पानी द्वारा कान का संक्रमण प्रदूषित जल में तैरने के समय ही हो सकता है। बच्चों में प्राय: यह इन्फेक्शन बोतल द्वारा दूध पिलाने या लेटकर स्तनपान कराने से होता है।

    भ्रम

    शिशु को सर्दी से बचाने के लिए उसे अल्कोहल, मुनक्का, बादाम आदि गरम तासीर की वस्तुएं देते रहना चाहिए।

    हकीकत

    शिशु को ऐसे पदार्थ देने से परहेज करें। सर्दी या संक्रमण से बचाने का प्रमुख कवच है स्तनपान, विशेष तौर पर जन्म के बाद तीन दिनों तक आने वाला पहला पीला गाढ़ा दूध। मां के दूध में शिशु के जीवनरक्षक अनेक पदार्थ मौजूद होते हैं। मां का खानपान अच्छा रखें। बच्चे का संपूर्ण टीकाकरण कराएं व साफ-सफाई पर ध्यान दें। छह माह की उम्र के उपरांत सही ठोस आहार द्वारा उसे पर्याप्त पोषण प्रदान करें।
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