यहां अग्नि नहीं, बल्कि पानी को साक्षी मानकर फेरे लेते हैं दूल्हा-दुल्हन; सालों पुरानी है परंपरा
कौन कहता है कि शादी के लिए सिर्फ अग्नि ही साक्षी बन सकती है? जाहिर तौर पर यह सवाल आपको काफी अजीब लग रहा होगा लेकिन भारत में ही एक ऐसी अनोखी जगह है जहां शादियां अग्नि के बजाय पानी को साक्षी मानकर पूरी की जाती हैं। आइए जानते हैं कि यह अनोखी परंपरा (Unique Wedding Tradition) कहां निभाई जाती है और इसके पीछे क्या कारण हैं।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Unique Wedding Tradition: छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में रहने वाले धुरवा आदिवासी समाज (Bastar Tribe) की शादी की रस्म भारत में सबसे अनोखी मानी जाती है। बता दें, इस समाज में शादी को पवित्र बंधन मानते हुए अग्नि के बजाय जल को साक्षी मानकर विवाह संपन्न किया जाता है। खास बात है कि यह परंपरा (Seven Vows Around Water) सदियों से चली आ रही है।
धुरवा समाज के लोगों के लिए जल का खास महत्व है। वे जल को जीवन का स्रोत मानते हैं और इसे देवता का दर्जा देते हैं। शादी के दौरान, बस्तर में बहने वाली कांकेरी नदी का पवित्र जल इस्तेमाल किया जाता है। यह परंपरा न सिर्फ धुरवा समाज की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है बल्कि प्रकृति के प्रति उनके गहरे सम्मान को भी दर्शाती है। आइए इस आर्टिकल में आपको इससे जुड़ी कुछ खात बातों (Chhattisgarh Marriage Tradition) के बारे में बताते हैं।
पानी को साक्षी मानकर होते हैं फेरे
छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में घने जंगलों और बहती नदियों के बीच बसे आदिवासी समाज की शादी की रस्म प्रकृति के साथ एक गहरा नाता दर्शाती है। इनके लिए पानी सिर्फ एक तत्व नहीं, बल्कि जीवन का स्रोत और पूजा का मुद्दा है। वे पानी को साक्षी मानकर शादी करते हैं, मानो प्रकृति की गोद में एक नया जीवन शुरू हो रहा हो। यह परंपरा न सिर्फ उनकी सादगी को बयां करती है, बल्कि सदियों से चली आ रही उनकी संस्कृति का भी प्रतीक है।
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क्या है इस परंपरा की वजह?
धुरवा आदिवासी समाज में पानी को एक पवित्र देवता के समान माना जाता है। वे अपनी शादियों में पानी को साक्षी मानकर इसे एक खास दर्जा देते हैं। इस समाज के लोग मानते हैं कि पानी ही जीवन का स्रोत है। अपनी शादियों में वे बस्तर की कांकेरी नदी के पवित्र जल का इस्तेमाल करते हैं। कांकेरी नदी को धुरवा समाज में बेहद पवित्र माना जाता है और उनके लिए कोई भी शुभ कार्य इस नदी के जल के बिना अधूरा माना जाता है।
दूल्हा-दुल्हन के साथ पूरा गांव लेता है फेरे
आपने देखा होगा कि ज्यादातर शादियों में दूल्हा और दुल्हन ही फेरे लेते हैं, लेकिन इस गांव में एक अनोखी परंपरा है। यहां पूरी पंचायत या गांव वाले दूल्हा-दुल्हन के साथ फेरे लेते हैं। यानी, शादी में सिर्फ दूल्हा-दुल्हन ही शामिल नहीं होते, बल्कि पूरा गांव भी इस पवित्र बंधन में शामिल होता है।
इसके अलावा, इस गांव में दहेज लेने-देने की प्रथा बिल्कुल नहीं है। दहेज को यहां पूरी तरह से बैन किया गया है। अगर कोई इस परंपरा को तोड़ने की कोशिश करता है तो गांव के बुजुर्ग और पंचायत मिलकर उस व्यक्ति पर जुर्माना लगा देते हैं। इस तरह यह गांव दहेज प्रथा के खिलाफ एक मजबूत रुख रखता है।
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