लियो टॉलस्टॉय की कहानी: रूसी लेखक जिसकी कलम ने महात्मा गांधी को दिखाई अहिंसा की राह
लियो टॉलस्टॉय रूसी साहित्य के एक महान लेखक थे जिनकी रचनाओं ने दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित किया। उनका जीवन और विचार इतने प्रभावशाली थे कि महात्मा गांधी जैसे दूरदर्शी नेता भी उनसे प्रेरित हुए और अहिंसा के मार्ग को अपनाया। आइए इस आर्टिकल में जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। दुनिया के महानतम लेखकों में शुमार लियो टॉलस्टॉय का जीवन किसी उपन्यास से कम नहीं था। उनके लिखे शब्दों ने न सिर्फ साहित्य को नई दिशा दी, बल्कि महात्मा गांधी जैसे नेताओं के विचारों को भी गहराई से प्रभावित किया। टॉलस्टॉय के संघर्ष, अनुभव और लेखन ने यह साबित किया कि सच्ची ताकत तलवार या बंदूक से नहीं, बल्कि प्रेम और सत्य से आती है।
बचपन और अधूरी पढ़ाई
लियो टॉलस्टॉय का जन्म 9 सितंबर 1828 को रूस के तुला प्रांत में हुआ। वे यास्नाया पोल्याना नामक जागीरदार परिवार से थे। मात्र दो साल की उम्र में मां और नौ साल की उम्र में पिता को खो देने के बाद उनका पालन-पोषण रिश्तेदारों ने किया। 16 वर्ष की आयु में उन्होंने कजान विश्वविद्यालय में कानून और भाषाओं की पढ़ाई शुरू की, लेकिन पढ़ाई में मन न लगने के कारण उसे अधूरा छोड़ दिया। इसके बाद वे परिवार की संपत्ति और सुख-सुविधाओं में डूब गए।
कर्ज और सेना में भर्ती
युवा टॉलस्टॉय जुए की लत में बुरी तरह फंस गए और भारी कर्ज में डूब गए। कर्ज चुकाने के लिए उन्होंने सेना में भर्ती होने का फैसला किया। 1853 से 1856 तक चले क्रीमियन युद्ध में उन्होंने रूसी सेना में तोपखाने के अधिकारी के तौर पर हिस्सा लिया। सेवास्तोपोल की लंबी घेराबंदी में उन्होंने मौत और तबाही को करीब से देखा। उन्हें लेफ्टिनेंट की पदवी मिली, लेकिन युद्ध के भयावह अनुभवों ने उनका मन सैनिक जीवन से हमेशा के लिए हटा दिया।
पेरिस की घटना और सोच में बदलाव
सेना छोड़ने के बाद टॉलस्टॉय ने यूरोप की यात्रा की। पेरिस में एक सार्वजनिक फांसी का दृश्य देखकर वे गहराई से विचलित हुए। यहीं से उनके मन में सरकार और हिंसा के प्रति घृणा पैदा हुई। इस दौरान वे प्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखक विक्टर ह्यूगो से भी मिले और उनका उपन्यास लेस मिजरेबल्स पढ़कर बेहद प्रभावित हुए। रूस लौटकर उन्होंने किसानों के बच्चों के लिए स्कूल खोले और साहित्य की ओर पूरी तरह रुख किया। इसी दौर में उनकी कालजयी रचनाएं वॉर एंड पीस और अन्ना कैरेनिना सामने आईं।
'अ लेटर टू अ हिंदू' और गांधी पर प्रभाव
1908 में टॉलस्टॉय ने 'फ्री हिंदुस्तान' पत्रिका में अ लेटर टू अ हिंदू शीर्षक से लेख लिखा। इसमें उन्होंने कहा कि प्रेम ही वह शक्ति है जो भारत को गुलामी से मुक्त करा सकती है। महात्मा गांधी इस विचार से गहराई से प्रभावित हुए। दरअसल, गांधी पहले ही टॉलस्टॉय की किताब द किंगडम ऑफ गॉड इज विदिन यू पढ़ चुके थे, जिसने उनके जीवन में अहिंसा के बीज बो दिए थे। बाद में गांधी ने स्वीकार किया कि इस पुस्तक ने ही उनके भीतर अहिंसा पर अविश्वास को खत्म किया।
टॉलस्टॉय और गांधी का पत्राचार
गांधी ने 1 अक्टूबर 1909 को टॉलस्टॉय को पहला पत्र लिखा। यह संवाद लंबे समय तक चला और गांधी की विचारधारा के निर्माण में अहम साबित हुआ। गांधी ने 1928 में टॉलस्टॉय की स्मृति में कहा था- “मैं उस समय आजादी के हिंसक प्रतिरोध का समर्थक था, लेकिन उनकी किताब पढ़कर अहिंसा पर मेरा विश्वास पक्का हो गया।”
अंतिम समय
लियो टॉलस्टॉय को खेलों और शारीरिक गतिविधियों का शौक था। वे टेनिस, घुड़सवारी, साइकिलिंग और शतरंज खेलना पसंद करते थे। लेकिन लंबे समय तक बीमार रहने के बाद 21 नवंबर 1910 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।
लियो टॉलस्टॉय ने अपने लेखन और जीवन के अनुभवों से यह संदेश दिया कि सच्ची शक्ति हथियारों से नहीं, बल्कि प्रेम, सत्य और नैतिकता से आती है। यही संदेश महात्मा गांधी के माध्यम से पूरी दुनिया तक पहुंचा। इस तरह टॉलस्टॉय न सिर्फ रूसी साहित्य के नायक रहे, बल्कि वे भारत की स्वतंत्रता आंदोलन की विचारधारा के भी मौन प्रेरणास्रोत बने।
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