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    तमिलनाडु में है देश का पहला डुगोंग कन्जर्वेशन रिजर्व, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मिल चुकी है मान्यता

    Updated: Sun, 05 Oct 2025 02:35 PM (IST)

    तमिलनाडु में भारत का पहला डुगोंग कन्जर्वेशन रिजर्व है जिसे अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता मिल चुकी है। यह समुद्री ईको सिस्टम को बनाए रखने में एक बेहद जरूरी कदम साबित हो सकता है। डुगोंग एक शाकाहारी समुद्री जीव है जो समुद्री घास खाकर जिंदा रहता है। आइए जानें इस बारे में।

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    तमिलनाडु में है डुगोंग संरक्षण रिजर्व (Picture Courtesy: Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। भारत के समुद्री जीवन संरक्षण के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया है। तमिलनाडु की पाक खाड़ी में स्थित देश का पहला डुगोंग संरक्षण रिजर्व अब वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त कर चुका है।

    अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की विश्व संरक्षण कांग्रेस 2025 में इसे समुद्री जैव विविधता संरक्षण का आइडियल मॉडल घोषित किया गया। यह उपलब्धि न केवल भारत के लिए गर्व का विषय है, बल्कि यह दक्षिण एशिया में समुद्री ईको सिस्टम के संरक्षण की दिशा में एक जरूरी कदम भी है।

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    वैश्विक समर्थन से बढ़ी पहचान

    ओमकार फाउंडेशन द्वारा प्रस्तावित इस रिजर्व को 98% देशों और सरकारी एजेंसियों के साथ-साथ 94.8% एनजीओ का समर्थन मिला। यह दिखाता है कि भारत की यह कोशिश ग्लोबल लेवल भी सराही जा रही है। तमिलनाडु सरकार ने सितंबर 2022 में 448.34 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में इस रिजर्व की स्थापना की थी। इसमें 12,250 हेक्टेयर से ज्यादा समुद्री घास के मैदान हैं, जो डुगोंग समेत कई दूसरे समुद्री जीवों के लिए खाने और रहने का स्रोत हैं।

    समुद्री ईको सिस्टम का केंद्र

    पाक खाड़ी का यह क्षेत्र अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए पहले से ही मशहूर रहा है। यहां पाए जाने वाले समुद्री घास के मैदान न केवल डुगोंग बल्कि कछुए, समुद्री घोड़े, मछलियों और माइक्रो-ऑर्गेनिज्म्स के लिए भी काफी जरूरी हैं। इस रिजर्व के जरिए लोगों को समुद्री जीवन के महत्व, पर्यावरण संरक्षण और टिकाऊ ईको सिस्टम के लिए जागरूक किया जा रहा है।

    डुगोंग हैं क्या?

    डुगोंग को ‘सी काउ’ भी कहा जाता है, क्योंकि यह पूरी तरह शाकाहारी समुद्री जीव है जो समुद्री घास पर निर्भर रहता है। इसका स्वभाव बेहद शांत होता है और यह समुद्री ईको सिस्टम में बैलेंस बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है। लेकिन ज्यादा मछली पकड़ने, समुद्री प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण डुगोंग की संख्या लगातार घट रही है। अनुमान है कि भारत में इनकी संख्या अब केवल कुछ सौ तक सीमित रह गई है।

    संरक्षण के नए उपाय

    IUCN द्वारा मिली अंतरराष्ट्रीय मान्यता के बाद तमिलनाडु सरकार ने रिजर्व क्षेत्र में स्मार्ट मॉनिटरिंग सिस्टम, क्लीन-सी प्रोग्राम, और समुद्री घास रेस्टोरेशन प्रोजेक्ट शुरू करने की योजना बनाई है। साथ ही, स्थानीय मछुआरों को ट्रेनिंग देकर उन्हें कनजर्वेशन मिशन में भागीदार बनाया जा रहा है। यह मॉडल “लोगों के साथ, प्रकृति के लिए” की अवधारणा पर आधारित है।

    भारत के लिए मील का पत्थर

    भारत का यह पहला डुगोंग संरक्षण रिजर्व न केवल देश बल्कि पूरे दक्षिण एशिया का पहला आधिकारिक डुगोंग रिजर्व है। इसकी सफलता यह साबित करती है कि पर्यावरण संरक्षण और विकास एक साथ चल सकते हैं। यह पहल आने वाले समय में अन्य समुद्री प्रजातियों जैसे डॉल्फिन, कछुए और व्हेल के संरक्षण के लिए भी प्रेरणा बनेगी।

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