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    रेस्टोरेंट में अकेले बैठकर खाने से क्यों होती है झिझक... क्यों लगता है जैसे हमें ही देख रहे हैं सब?

    Updated: Sat, 20 Dec 2025 07:42 AM (IST)

    क्या कभी आपके साथ ऐसा हुआ है कि आपको बहुत भूख लगी हो, सामने आपका पसंदीदा रेस्टोरेंट हो, लेकिन आप सिर्फ इसलिए अंदर नहीं गए क्योंकि आप अकेले थे? जी हां, ...और पढ़ें

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    रेस्टोरेंट में अकेले बैठकर खाना क्यों लगता है मुश्किल? (Image Source: AI-Generated) 

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। सोचिए, आप एक शानदार रेस्टोरेंट के बाहर खड़े हैं। अंदर से लजीज खाने की खुशबू आ रही है, हल्का म्यूजिक बज रहा है और माहौल एकदम परफेक्ट है। आपकी भूख चरम पर है, लेकिन आप अंदर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे। आप कांच के दरवाजे से अंदर झांकते हैं और फिर अपना फोन निकालकर ऐसे देखने लगते हैं जैसे कोई बहुत जरूरी काम आ गया हो।

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    असल में, आप बस डरे हुए हैं। डर इस बात का कि जैसे ही आप अकेले टेबल पर बैठेंगे, रेस्टोरेंट में मौजूद हर शख्स अपना खाना छोड़कर सिर्फ आपको ही घूरने लगेगा। क्या यह सिर्फ आपके दिमाग का वहम है या इसके पीछे कोई गहरा राज है? आइए, विस्तार से समझते हैं।

    solo dining

    (Image Source: AI-Generated) 

    क्या है इसके पीछे का मनोविज्ञान?

    मनोवैज्ञानिक इसे 'स्पॉटलाइट इफेक्ट' कहते हैं। यह एक ऐसी मानसिक स्थिति है जहां हमें लगता है कि हम एक मंच पर खड़े हैं और दुनिया की सारी लाइटें हम पर ही जल रही हैं। हमें लगता है कि हमारी हर हरकत, हमारा अकेले बैठना और हमारा खाना खाने का तरीका, सब लोग नोटिस कर रहे हैं। जबकि असलियत यह है कि बाकी लोग अपने खाने और अपने गप्पों में इतने मशगूल होते हैं कि उन्हें आपके अकेले होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।

    समाज का दबाव और हमारी सोच

    बचपन से ही हमें सिखाया जाता है कि खाना एक 'सोशल एक्टिविटी' है। त्योहार हो या पार्टी, हम हमेशा अपनों के बीच खाते हैं। इसलिए, जब हम किसी को अकेले खाते देखते हैं, तो हमारा दिमाग इसे 'अकेलेपन' या 'उदासी' से जोड़ देता है। यही डर हमें भी सताता है कि कहीं दूसरे लोग हमें उदास इंसान न समझ लें। हम दूसरों की राय को अपनी खुशी से ज्यादा महत्व देने लगते हैं।

    eating alone at resturant

    (Image Source: Freepik)

    अकेले खाना असल में 'सुपरपावर' है

    जरा सोचिए, अकेले खाने का अपना ही मजा है। न किसी से बात करने की मजबूरी, न खाना शेयर करने का झंझट और न ही यह चिंता कि दूसरा इंसान कब तक खाएगा। इसे 'सोलो डेट' की तरह देखें। यह खुद के साथ वक्त बिताने, अपने विचारों को समझने और बिना किसी शोर-शराबे के खाने के असली स्वाद का आनंद लेने का सबसे अच्छा तरीका है। यह आत्मविश्वास की निशानी है, कमजोरी की नहीं।

    कैसे दूर करें झिझक?

    अगर आपको शुरुआत में डर लगता है, तो आप हाथ में एक किताब रख सकते हैं या हेडफोन लगाकर अपना पसंदीदा म्यूजिक सुन सकते हैं। धीरे-धीरे आप पाएंगे कि वह 'काल्पनिक भीड़' जो आपको जज कर रही थी, असल में थी ही नहीं। जिस दिन आप अकेले बैठकर अपनी मील एन्जॉय करना सीख जाएंगे, उस दिन आप सही मायनों में आजाद हो जाएंगे।

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