बचपन के 'टॉपर' नहीं, 'औसत' बच्चे बनते हैं असली चैंपियन; नई स्टडी का चौंकाने वाला खुलासा
एक नई स्टडी के अनुसार, बचपन में पढ़ाई या खेल में अव्वल रहने वाले बच्चे ही हमेशा सफल नहीं होते। रिसर्च बताती है कि वयस्क होने पर अपने क्षेत्र में टॉप प ...और पढ़ें

कम उम्र में दबाव और 'स्पेशलाइजेशन' है नुकसानदायक (Picture Courtesy: Freepik)
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लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। अक्सर यह माना जाता है कि जो बच्चे बचपन में पढ़ाई, खेल या संगीत में अव्वल होते हैं, वही आगे चलकर बड़ी सफलता हासिल करते हैं। लेकिन हाल ही में आई एक नई स्टडी इस आम धारणा को चुनौती देती है। रिसर्च के मुताबिक, बचपन में टॉप परफॉर्म करने वाले बच्चों में से केवल 10% ही बड़े होकर अपने-अपने क्षेत्र में वर्ल्ड क्लास परफॉर्मर बन पाते हैं।
जी हां, यानी शुरुआती सफलता भविष्य की गारंटी नहीं होती। इस स्टडी में और भी कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं, जिनके बारे में आपको जरूर जानना चाहिए। आइए जानते हैं।
औसम प्रदर्शन करने वाली बने टॉपर
इस स्टडी के लिए रिसर्चर्स ने करीब 35 हजार लोगों का डाटा एनालाइज किया। इनमें ओलिंपिक एथलीट्स, मशहूर म्यूजिशियन, नोबेल पुरस्कार विजेता और चेस ग्रैंडमास्टर्स जैसे हाई अचीवर्स शामिल थे। नतीजे चौंकाने वाले थे। स्टडी में पाया गया कि जो लोग वयस्क होने पर अपने फील्ड में टॉप पर पहुंचे, उनमें से ज्यादातर बचपन में औसत या सामान्य प्रदर्शन करने वाले थे। बहुत कम ऐसे थे जो बचपन से ही लगातार टॉप पर बने रहे।
बचपन में टॉपर होना सफलता की गारंटी नहीं
स्टडी के सह-लेखक और जर्मनी की आरपीटीयू यूनिवर्सिटी में स्पोर्ट्स साइंस के प्रोफेसर अर्ने गुल्लिच का कहना है कि कुछ बच्चे वाकई असाधारण प्रतिभा वाले होते हैं और वे आगे चलकर भी टॉप परफॉर्मर बनते हैं, लेकिन ऐसे मामले अपवाद हैं, नियम नहीं। इससे यह साफ होता है कि बचपन में नंबर वन होना ही सफलता का एकमात्र रास्ता नहीं है।
स्पेशलाइजेशन से ज्यादा जरूरी है विविधता
रिसर्च में यह भी सामने आया कि लंबे समय तक सफल रहने वाले लोगों ने बचपन में केवल एक ही क्षेत्र पर फोकस नहीं किया था। उन्होंने खेल, संगीत, पढ़ाई या अन्य गतिविधियों में संतुलन बनाए रखा और अलग-अलग अनुभव हासिल किए। उन्होंने अपने मुख्य फील्ड में कम समय दिया, लेकिन दूसरी रुचियों को भी गंभीरता से एक्सप्लोर किया।
इस स्टडी के मुताबिक, बच्चों को बहुत कम उम्र में ही किसी एक फील्ड में स्पेशलाइज करने के बजाय विविध अनुभव देना ज्यादा फायदेमंद होता है। अगर कोई बच्चा अपने मुख्य क्षेत्र के साथ-साथ दो अन्य गतिविधियों में भी एक्टिव रहता है, तो यह मानसिक और शारीरिक विकास के लिए सबसे बेहतर संतुलन माना जाता है।
10 हजार घंटे की थ्योरी पर सवाल
यह स्टडी उस पॉपुलर “10 हजार घंटे की प्रैक्टिस” थ्योरी को भी चुनौती देती है, जिसके अनुसार किसी भी फील्ड में एक्सपर्ट बनने के लिए लंबी और लगातार प्रैक्टिस जरूरी होती है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि कई माता-पिता इसी सोच के आधार पर बच्चों पर जल्दी शुरुआत और ज्यादा प्रैक्टिस का दबाव डालते हैं। हालांकि, रिसर्च बताती है कि जल्दी शुरू करना ही सफलता की गारंटी नहीं है।
कम उम्र में ज्यादा दबाव बन सकता है नुकसानदायक
स्टडी के अनुसार, बचपन में एक ही चीज पर जरूरत से ज्यादा फोकस करने से बच्चों में मानसिक तनाव और दबाव बढ़ सकता है। खासकर जूनियर एथलीट्स शुरुआत में तो अच्छा परफॉर्म करते हैं, लेकिन बाद में उनकी प्रगति रुक जाती है या वे जल्दी थकान और बर्नआउट का शिकार हो जाते हैं। लंबे समय तक सफलता के लिए विविधता, संतुलन और बच्चों की रुचि का सम्मान बेहद जरूरी है।

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