लुई पाश्चर: वो शख्स जिसने दुनिया को सिखाया 'पाश्चराइजेशन' और खोजी रेबीज जैसी लाइलाज बीमारी की वैक्सीन
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि एक समय ऐसा भी था जब पागल कुत्ते का काटना मतलब 'निश्चित मौत' था? दुनिया को इस खौफ से आजादी दिलाने वाले और चिकित्सा विज्ञा ...और पढ़ें

कैसे लुई पाश्चर ने बदल दी मेडिकल साइंस की दुनिया? (Image Source: X)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। लुई पाश्चर चिकित्सा विज्ञान के इतिहास में एक ऐसा नाम हैं, जिन्होंने इंसान की जान बचाने के लिए विज्ञान की दिशा ही बदल दी। फ्रांस के इस महान रसायनज्ञ और सूक्ष्मजीव विज्ञानी ने न सिर्फ 'जर्म थ्योरी' की स्थापना की, बल्कि रेबीज और एंथ्रेक्स जैसी जानलेवा बीमारियों के लिए वैक्सीन भी बनाई।
उनका जन्म 27 दिसंबर 1822 को हुआ था और उन्होंने 28 सितंबर 1895 को दुनिया को अलविदा कहा। आइए, इस आर्टिकल में जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में, जिन्होंने मानव कल्याण को नई उम्मीद दी।

पिता की सीख और मेहनत का रंग
लुई पाश्चर का जन्म फ्रांस के 'डोल' नामक शहर में हुआ था। उनके पिता चमड़े का काम करते थे और उन्होंने ही बालक लुई को मेहनत, ईमानदारी और देश प्रेम का पाठ पढ़ाया।
बचपन में पाश्चर पढ़ाई में कोई बहुत तेज छात्र नहीं माने जाते थे, लेकिन उनमें एक खास गुण था- वे बहुत मेहनती थे। वे किसी भी चीज को सिर्फ पढ़ते नहीं थे, बल्कि उसे गहराई से समझने की कोशिश करते थे। इसी जिज्ञासा ने उन्हें आगे चलकर महान वैज्ञानिक बनाया।
शिक्षा और विज्ञान में शुरुआती कदम
लुई पाश्चर ने पेरिस के 'एकोल नॉर्माल सुपीरियर' से विज्ञान में अपनी शिक्षा पूरी की और डॉक्टरेट हासिल की। शुरुआत में उनका काम 'क्रिस्टलोग्राफी' पर था, लेकिन जल्द ही उनकी रुचि फर्मेंटेशन और सूक्ष्मजीवों की ओर मुड़ गई।
उन्होंने विज्ञान की दुनिया में एक बड़ा धमाका तब किया जब उन्होंने 'स्वान-नेक फ्लास्क' प्रयोगों के जरिए यह साबित कर दिया कि जीवन स्वतः उत्पन्न नहीं होता। इस प्रयोग ने 'जर्म थ्योरी' की नींव रखी और बाद में उन्होंने रसायन विज्ञान में भी डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
उद्योग और समाज के लिए पाश्चर का योगदान
पाश्चर का विज्ञान केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित नहीं था, उन्होंने इसे आम लोगों के फायदे से जोड़ा:
- पाश्चराइजेशन: उन्होंने सिद्ध किया कि कई बीमारियां सूक्ष्मजीवों के कारण होती हैं। इसी आधार पर उन्होंने दूध और अन्य तरल पदार्थों को सुरक्षित बनाने के लिए 'पाश्चराइजेशन' की प्रसिद्ध विधि विकसित की।
- रेशम उद्योग को बचाना: 19वीं सदी के मध्य में फ्रांस का रेशम उद्योग बर्बाद होने की कगार पर था क्योंकि सिल्कवर्म्स (रेशम के कीड़े) मर रहे थे। पाश्चर ने खोज निकाला कि यह एक सूक्ष्मजीवों से होने वाली बीमारी है। उन्होंने सुझाव दिया कि केवल स्वस्थ कीड़ों के अंडों का उपयोग किया जाए, जिससे पूरा उद्योग बच गया।

1885 का वह ऐतिहासिक दिन, जब रेबीज को हराया गया
पाश्चर के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि 1885 में सामने आई। फ्रांस में एक 9 साल के लड़के को पागल कुत्ते ने बुरी तरह काट लिया था। उस समय रेबीज का मतलब निश्चित मृत्यु थी।
पाश्चर ने मानवता के लिए एक बड़ा जोखिम उठाने का फैसला किया। उन्होंने डरते हुए उस बच्चे को अपने द्वारा विकसित रेबीज का टीका लगाया। परिणाम चमत्कारिक रहा- बच्चा पूरी तरह ठीक हो गया। यह इतिहास में पहली बार था जब रेबीज के टीके से किसी इंसान की जान बचाई गई थी। इस घटना ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया और पाश्चर को अमर बना दिया।
पाश्चर संस्थान की स्थापना
लुई पाश्चर के सम्मान में 1888 में पेरिस में 'पाश्चर संस्थान' की स्थापना की गई। आज यह संस्थान दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इसका मुख्य उद्देश्य संक्रामक रोगों जैसे रेबीज, टीबी, डिप्थीरिया और पोलियो पर शोध करना और उनके इलाज खोजना है।
पाश्चर के जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव
उनके वैज्ञानिक सफर को इन प्रमुख तारीखों से समझा जा सकता है:
- 1843: पेरिस के इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस एजुकेशन में प्रवेश लिया।
- 1847: रसायन विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
- 1857: किण्वन (फर्मेंटेशन) पर शोध प्रकाशित कर सूक्ष्मजीवों की भूमिका सिद्ध की।
- 1861: प्रयोगों द्वारा 'स्तः उत्पत्ति' के सिद्धांत को गलत साबित किया।
- 1867: पाश्चराइजेशन विधि को वैज्ञानिक रूप से स्थापित किया।
- 1881: एन्थ्रेक्स रोग के लिए सफल टीके का प्रदर्शन किया।
लुई पाश्चर का जीवन हमें सिखाता है कि विज्ञान का असली उद्देश्य मानव कल्याण ही होना चाहिए।

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