पादरी बनने से इनकार कर विज्ञान की दुनिया में अमर हो गए Isaac Newton, दिलचस्प है इस जीनियस की कहानी
आज ही के दिन 4 जनवरी 1643 को इंग्लैंड के लिंकनशायर के एक छोटे से गांव वूल थॉर्प में एक ऐसा बच्चा पैदा हुआ जिसने दुनिया को बदलकर रख दिया। उसका नाम था आइजैक न्यूटन (Isaac Newton)। न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत दिया और विज्ञान के क्षेत्र में कई अहम खोजें कीं। आइए आपको बताते हैं उनके जीवन से जुड़े कुछ खास किस्सों (Isaac Newtons Life Journey) के बारे में।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Isaac Newton's Life Story: आज हम आइजैक न्यूटन के जन्मदिन को मना रहे हैं। 4 जनवरी 1643 को इंग्लैंड के लिंकनशायर में जन्मे न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के नियम की खोज कर दुनिया को हैरान कर दिया था। जी हां, यह एक ऐसा नाम है जिसने विज्ञान की दुनिया में क्रांति ला दी (Newton's Contributions To Science)।
17वीं सदी में इंग्लैंड में उच्च शिक्षा के प्रमुख केंद्र सिर्फ दो ही थे- ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज। उस समय इन विश्वविद्यालयों में मुख्य रूप से धर्मशास्त्र पढ़ाया जाता था और ज्यादातर छात्रों का मकसद पादरी बनना होता था। न्यूटन भी कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में फेलो थे, लेकिन उनका मन धार्मिक सेवा में नहीं लगता था।
उस जमाने में कैम्ब्रिज के फेलो को सात साल के भीतर पादरी बनना अनिवार्य था। न्यूटन को भी यह शपथ लेनी पड़ी थी, लेकिन अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर, उन्होंने इस नियम का विरोध (Newton's Decision Against Priesthood) किया। 1675 में, उन्होंने इस मुद्दे को लेकर किंग चार्ल्स द्वितीय से भी संपर्क किया।
झूठ नहीं बोल सके आइजैक न्यूटन
आइजैक न्यूटन, विज्ञान के महानतम दिमागों में से एक, हमेशा सवाल पूछने के लिए जाने जाते थे। उनका प्रसिद्ध वाक्य था, "नलियस इन वेरबा," जिसका मतलब है, "किसी के शब्दों पर सिर्फ इसलिए विश्वास मत करो।" न्यूटन ने प्रकृति को समझने के लिए जिस तरह गहनता से अध्ययन किया, उसी तरह उन्होंने बाइबल का भी अध्ययन किया।
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न्यूटन ने बाइबल को गहराई से पढ़ते हुए पाया कि वे पवित्र ट्रिनिटी के सिद्धांत से सहमत नहीं थे। यह सिद्धांत ईसाई धर्म का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है, लेकिन न्यूटन के तर्कशील दिमाग को यह स्वीकार नहीं था।
उस समय, कैंब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए पवित्र ट्रिनिटी में विश्वास करना अनिवार्य था। अगर न्यूटन इस सिद्धांत को स्वीकार नहीं करते तो उन्हें विश्वविद्यालय से निकाल दिया जाता, लेकिन न्यूटन एक ईमानदार व्यक्ति थे और वे झूठ नहीं बोल सकते थे। उन्होंने अपने दिल की आवाज को सुना और सच बोलने का फैसला किया।
जब न्यूटन ने किंग चार्ल्स मना लिया
1675 में, उन्होंने इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय से मदद मांगने का फैसला किया। चर्च के प्रमुख होने के नाते, न्यूटन को लगा कि राजा उनकी समस्या सुलझा सकते हैं। लेकिन, राजा को पूरा सच बताने से न्यूटन डरते थे। शायद राजा नाराज हो जाते। इसलिए, उन्होंने राजा को बस इतना बताया कि वे यूनिवर्सिटी में सिर्फ एक सदस्य नहीं हैं, बल्कि गणित के प्रोफेसर भी हैं। यानी, उन्हें पादरी बनने की ज़रूरत नहीं थी। यह तर्क बहुत मजबूत नहीं था, लेकिन किंग चार्ल्स ने न्यूटन की बात मान ली। इस तरह, न्यूटन ने विज्ञान की दुनिया के लिए एक बड़ी जीत हासिल की।
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