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    1986 में Indian Railways ने शुरू किया कंप्यूटर आधारित टिकट रिजर्वेशन, जिससे बनी लोगों की यात्रा आसान

    Updated: Wed, 19 Feb 2025 07:24 AM (IST)

    19 फरवरी 1986 को भारतीय रेलवे ने नई दिल्ली स्टेशन पर पहली बार कंप्यूटराइज्ड टिकट रिजर्वेशन सिस्टम शुरू किया (Indian Railways Ticketing History)। इससे पहले टिकट बुकिंग पूरी तरह मैन्युअल थी जो समय लेने वाली और मुश्किल प्रक्रिया थी। कंप्यूटर से टिकट बुक करने के सिस्टम ने इसे काफी आसान कर दिया है। जानें इस बारे में कि कैसे इसकी शुरुआत हुई और इससे पहले कैसे टिकट बुक होती थी।

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    कैसे शुरू हुई कंप्यूटर बेस्ड टिकट रिजर्वेशन सिस्टम? (Picture Courtesy: Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय रेलवे (Indian Railways), जो दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्क में से एक है, ने 19 फरवरी 1986 को एक ऐतिहासिक कदम उठाया। इस दिन नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहली बार कंप्यूटर आधारित टिकट रिजर्वेशन प्रणाली (Computerized Reservation System) की शुरुआत की गया था। 

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    यह इनोवेशन भारतीय रेलवे के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ, क्योंकि इससे पहले टिकट रिजर्वेशन (Indian Railways Ticketing system) की प्रक्रिया पूरी तरह से मैन्युअल थी और इसमें काफी समय और मेहनत लगती थी।

    मैन्युअल सिस्टम की चुनौतियां

    कंप्यूटराइज्ड सिस्टम से पहले, रेलवे टिकट रिजर्वेशन (Indian Railways ticket booking) एक मुश्किल और समय लेने वाली प्रक्रिया थी। यात्रियों को एक फॉर्म भरना पड़ता था, जिसमें यात्रा की तारीख, डेस्टिनेशन और अन्य जानकारियां दर्ज करनी होती थीं। यदि किसी खास तारीख पर सीट उपलब्ध नहीं होती थी, तो यात्रियों को अगली संभावित तारीख के लिए आवेदन करना पड़ता था।

    इस पूरी प्रक्रिया को संचालित करने के लिए रेलवे कर्मचारियों को कई रजिस्टर मेंटेन करने पड़ते थे। जब यात्री का नंबर आता था, तो क्लर्क रजिस्टर में देखकर यह पुष्टि करता था कि ट्रेन में सीट उपलब्ध है या नहीं। यदि सीट उपलब्ध होती, तो यात्री को एक कार्डबोर्ड का टिकट दिया जाता था, जिस पर उनका बर्थ नंबर दर्ज होता था (Railway Ticket History)।

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    कंप्यूटराइज्ड सिस्टम की शुरुआत

    19 फरवरी 1986 को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर कंप्यूटर आधारित टिकट रिजर्वेशन प्रणाली की शुरुआत ने इस प्रक्रिया को पूरी तरह से बदल दिया। इस नई प्रणाली ने न केवल आरक्षण प्रक्रिया को तेज और सुविधाजनक बनाया, बल्कि गलतियों की संभावना को भी काफी हद तक कम कर दिया। अब यात्री अपने टिकट कुछ ही मिनटों में बुक कर सकते थे, और उन्हें लंबी लाइन में खड़े होने की जरूरत नहीं थी।

    टेलीग्राम और डाक सेवा का इस्तेमाल

    कंप्यूटराइज्ड सिस्टम के आने से पहले, अगर यात्री का टिकट बुकिंग स्टेशन और ट्रेन में चढ़ने का स्टेशन अलग-अलग होता था, तो रेलवे टेलीग्राम के माध्यम से बुकिंग स्टेशन से यात्रा वाले स्टेशन तक जानकारी भेजता था। इसके अलावा, टिकट डाक के माध्यम से यात्रियों के घर भेजी जाती थी, जिसमें कुछ दिनों का समय लगता था।

    इंटरनेट टिकटिंग का युग

    रेलवे ने अगस्त 2002 में इंटरनेट टिकटिंग सेवा शुरू की, जिसने यात्रियों के लिए टिकट बुक करना और भी आसान बना दिया। यात्री अब वेबसाइट के माध्यम से टिकट बुक कर सकते थे, और बाद में टिकट डाक से उनके घर भेजी जाती थी। 12 अगस्त 2005 को ई-टिकटिंग सेवा शुरू की गई, जिसमें यात्री इंटरनेट से ही टिकट डाउनलोड कर सकते थे। यह सारी प्रक्रिया आईआरसीटीसी (भारतीय रेलवे खानपान और पर्यटन निगम) के तहत होती है, जिसे 1999 में शुरू किया गया था।

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