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    Akshaya Tritiya 2025: सोना सिर्फ धातु नहीं... धर्म, परंपरा और पारस्परिक प्रेम को परिभाषित करने वाला तत्व; संस्कृति से है जुड़ाव

    सोने का भाव आकाश छू रहा है लेकिन फिर भी भारतीयों में कम नहीं हुआ है इसका आकर्षण। इसका कारण छुपा है भारतीय संस्कृति में जहां यह केवल एक बहुमूल्य धातु नहीं बल्कि धर्म परंपरा और पारस्परिक प्रेम को परिभाषित करने वाला तत्व है अक्षय तृतीया से पूर्व मालिनी अवस्थी का आलेख...

    By Jagran News Edited By: Nitesh Srivastava Updated: Mon, 28 Apr 2025 05:15 PM (IST)
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    Akshaya Tritiya 2025: भारत की स्वर्ण संस्कृति

    मालिनी अवस्थी, नई दिल्ली। अरे बिटिया, का बतावें हमरे बियाह के समय सोने का भाव साठ रुपया तोला था। अब सोच ल्यों, मायका ससुराल सब मिलाए कै बिटिया-बहुरिया लोगन के पास अच्छा खासा सोना हुई जात रहे। अरे मुंह दिखाई में न जाने कितनी चेन बुंदा अंगूठी मिल जात रहे। अबकी तो ना पूछो। सुना अब सोना तीस हजार रूपया हुई गवा! सच है बिटिया?

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    बीस वर्ष पूर्व ताई जी की कही यह बात याद कर आज मैं ठंडी सांस भर सोचती हूं, आज ताई जी होतीं तो एक लाख रुपये को फलांगता हुआ दस ग्राम सोने का भाव सुन शायद वे बेसुध हो जातीं!

    स्त्री का अक्षय धन

    अक्षय तृतीया आने वाली है और स्वर्ण खरीदने के लिए यह दिन बहुत शुभ माना जाता है। हमारी संस्कृति में स्वर्ण के प्रति पूज्य भाव ऐसा है कि स्वर्ण देवता और स्वर्ण आभूषण से सुसज्जित स्त्री लक्ष्मी का स्वरूप मानी जाती है।

    दरअसल, हमारे यहां स्त्री का स्वर्ण उसका अपना ‘स्त्री धन’ माना जाता है। इस समय विवाह की सहालग चल रही है। कैसी भी हैसियत हो, राजा हो या किसान, ऐसा कोई पिता नहीं जो अपनी बिटिया के विवाह में सोने के गहनों को आशीर्वाद-स्वरूप न दे। मायका ही नहीं, ससुराल में भी नववधु का स्वागत स्वर्ण आभूषणों से किया जाता है!

    पवित्रता का प्रतीक

    भारतीय संस्कृति में सोना पूज्य है, शुद्ध है, पवित्र है और स्थायित्व का प्रतीक भी है। अथर्ववेद में कहा गया है, ‘कंचन स्वर्णमयं दीनं, नास्त्यस्यापरम प्रियम्’। अर्थात स्वर्ण (कंचन) धन प्रदान करता है, इससे बढ़कर कोई प्रिय वस्तु नहीं है। स्वर्ण को सबसे शुद्ध धातु होने के कारण पवित्रता और दिव्यता का प्रतीक माना गया है।

    स्वर्ण का उपयोग यज्ञों में भी किया जाता था। इसी तरह शिवपुराण में, शिवलिंग निर्माण में सोने का उपयोग करने का उल्लेख मिलता है। वेदों और पुराणों से हमारी धर्म और संस्कृति ही नहीं, भारतीय समाज की जीवनशैली, आर्थिकी का संपूर्ण विवरण मिलता है। उनमें स्पष्ट दिखता है कि भारत सदा से समृद्ध और धनी देश रहा। यहां स्त्रियां और पुरुष दोनों सोने और चांदी के आभूषण पहनते थे।

    लोकमानस में मंगल उपस्थिति

    सोना कोई आम धातु नहीं, भारतीय लोकमानस के अंतर्मन में इसकी मंगल उपस्थिति है। इसीलिए इसका दान और संग्रहण, दोनों ही एक आम भारतीय परिवार की जीवनशैली और विचार में व्याप्त है। इसकी पवित्रता और शुद्धता का ही महत्व है कि हमारे इष्ट प्रभु के विग्रह स्वरूप में हम उन्हें स्वर्ण मुकुट, स्वर्ण आभूषण-अलंकरण से सुसज्जित देखते हैं।

    वेदों में स्वर्ण, जिसे संस्कृत में ‘हिरण्य’ के रूप में भी जाना जाता है, का उल्लेख कई संदर्भों में किया गया है, जो इसे धन, समृद्धि और दिव्यता से जोड़ता है।

    ऋग्वेद में स्वर्ण को विशेष रूप से देवताओं के वस्त्र, कवच और आभूषणों के रूप में वर्णित किया गया है। सनातन संस्कृति में सोने की पूजा की जाती है। मंदिरों में भेंट चढ़ाया जाता है।

    विवाह में पंडित को दान दिया जाता है और श्रद्धा का भाव ऐसा है कि कमर के नीचे धारण नहीं किया जाता है। कतिपय रजवाड़ों में भले ही सोने की पायल पहनी जाती हो, लेकिन लोक मन सोने को साक्षात् लक्ष्मी मानता है अतः इसे पैरों में धारण नहीं किए जाने की परंपरा है।

    लोकगीतों में सुनहरी खनक

    लोकगीतों में सोने का जिक्र जिस तरह अत्यंत सुंदरता से आता है, वह देखने योग्य है। कहीं राजा दशरथ राम के जन्म पर सोने के मुहर दान में दे रहे हैं, कहीं राम जन्म पर नाउन नेग में सोने का हार मांग रही है और कहीं कौशल्या उस कागा की चोंच को सोने में मढ़वाने की बात कह रही हैं जो राम लखन के अयोध्या लौटने का शुभ समाचार ले कर आए।

    ‘दूध भात की दोनी सजैंहो /सोने चोंच मढ़ैयो /कब अईहें मोर बाल कुसल घर /कहहू काग फुर बाता’। यह तो हुई राजमहलों की बात, किंतु अधिकतर गीत ऐसे हैं जिनमें एक आम भारतीय घर-परिवार में सोने की चाह गीत बन साकार हो उठती है।

    ‘सोने का कंगना लाए मोरे बलमा/रतन जड़ी कंगना झमकदार कंगना/सोने का कंगना लाए मोरे बलमा’। लोकगीतों में स्वर्ण का सिंदूरपात्र बनवाने, सोने चांदी के ताने-बाने का वस्त्र बुनने, लाठी के सिरे में सोना गढ़ने का जिक्र खूब मिलता है, यथा ‘सोने के सिंहोरवा मैया धना के बियहबों’।

    एक लोकगीत में चंचल ननद द्वारा सोने के हार की फरमाइश किए जाने पर भाभी (नायिका) की व्यथा का रोचक वर्णन है, ‘छमक छल्लों ननदिया मांगे सोने का हार/सोने का हार सुनकर मैं तो होइहै बीमार’। आपने कई बार सुना होगा, ‘सोने की थारी में ज्योना परोसा...’ लोकगीतों में ऐसी पंक्तियों का प्रायः प्रयुक्त होना इस बात का संकेत करता है कि कभी हम भारतीय कितने समृद्ध रहे होंगे!

    लालच में आए आक्रांता

    हजारों सालों से इस चमकदार पीली धातु को धन, शक्ति और प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता रहा है। जिसके पास जितना सोना उसकी उतनी ताकत ! इतिहास साक्षी है कि किस प्रकार विभिन्न देशों और साम्राज्यों ने इसे प्राप्त करने के लिए युद्ध लड़े हैं। भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। देश में अकूत संपदा थी, अथाह सोना था। इस स्वर्ण का आकर्षण ही था जिसके कारण विदेशी आक्रांताओं ने कितनी बार भारत पर आक्रमण कर लूटपाट की।

    गजनी से अब्दाली, नादिरशाह तक भारत के मंदिरों को ध्वस्त कर सोना लूट कर ले जाने की गाथा इतिहास में दर्ज है। रही-सही कसर ब्रिटिश हुकूमत ने लूट-खसोट कर पूर्ण कर दी। आर्थिक इतिहासकार एंगस मैडिसन के अनुसार, भारत की आर्थिकी पहली शताब्दी से दसवीं शताब्दी तक दुनिया में सबसे बड़ी थी।

    पहली शताब्दी में भारत का सकल घरेलू उत्पाद शेष विश्व का 32.9% था। ग्यारहवीं शताब्दी में यह 28.9% था और सत्रहवीं शताब्दी में 24.4%, लेकिन ब्रिटिश काल में भारत का जमकर शोषण व दोहन हुआ, जिसके फलस्वरूप हमारी आर्थिकी अपने सुनहरे इतिहास का खंडहर मात्र रह गई। परंतु कड़ी मेहनत से भारत ने अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत की है। आज घर-घर में उपस्थित भारत का अदृश्य स्वर्ण भंडार इस का मजबूत पक्ष है।

    सदैव लाभप्रद है निवेश

    सोना भारत की संस्कृति ही नहीं, आर्थिकी का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। आज इतनी महंगाई के बावजूद इसमें निवेश बेहतर विकल्प माना जा रहा है क्योंकि इसका मूल्य बढ़ता ही है, घटता नहीं। भारतीयों के लिए सोना सिर्फ एक धातु से कहीं ज्यादा है; यह हमारी मान्यताओं और परंपराओं का हिस्सा है।

    सोने को लेकर स्त्रियों के मन में बैठी सबसे सशक्त मान्यता है कि सोने को कभी त्यागा नहीं जाता, पुराना सोना संग्रह के लिए है बेचने के लिए नहीं, सोने की खरीदारी करती स्त्रियों और स्वर्णकार के बीच संवाद को कभी देखिए, आनंद आ जाएगा।

    यह सत्य है कि विश्व में आर्थिकी कितनी भी डगमगाए, कैसी भी मंदी आए, सोने के संग्रहण की प्रवृत्ति भारत का सबसे सशक्त मेरुदंड है, जिसे बहुत परिश्रम और बचत कर एक आम भारतीय परिवार ने अपने पास सहेज रखा है। आज ताई जी होतीं तो मैं उनसे जरूर कहती, ‘ताई! तुम्हारा जमाना बढ़िया था। अब लाख रुपया तोला हो गया सोना! आज सोना वाकई सपना बन गया है!’

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