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    अनजाने में बिजनेस वुमन बनी थीं सिमोन टाटा, डिनर टेबल पर पूछे एक सवाल ने बनाया था 'लक्मे' की मालकिन

    Updated: Sat, 06 Dec 2025 04:49 PM (IST)

    भारत के औद्योगिक इतिहास में कुछ नाम ऐसे हैं, जिन्होंने चुपचाप रहते हुए भी बड़े बदलाव किए। सिमोन दुनोयर टाटा उन्हीं में से एक थीं। जी हां, रतन टाटा की ...और पढ़ें

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    सिमोन टाटा की वो कहानी जो हर बिजनेस लीडर को जाननी चाहिए (Image Source: X)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। टाटा परिवार की एक बहुत ही सम्मानित और प्रभावशाली सदस्य, सिमोन टाटा ने 95 वर्ष की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। 05 दिसंबर को मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उनका निधन हो गया। बता दें, सिमोन टाटा सिर्फ एक बिजनेसवुमन नहीं थीं, बल्कि उन्होंने भारतीय महिलाओं की सोच को बदलने में एक अहम भूमिका भी निभाई थी।

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    वह टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन नोएल टाटा की मां और टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा की सौतेली मां थीं। आइए, विस्तार से जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें।

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    स्विट्जरलैंड से भारत तक का सफर

    सिमोन टाटा का जन्म 1930 में स्विट्जरलैंड के जिनेवा में हुआ था और उनका बचपन एक अमीर फ्रांसीसी-स्विस परिवार में बीता। 1950 के दशक की शुरुआत में, एक युवा ग्रेजुएट के रूप में वह पहली बार भारत आई थीं।

    उनकी जिंदगी ने एक नया मोड़ तब लिया जब 1953 में जिनेवा में उनकी मुलाकात नवल टाटा से हुई। नवल टाटा वहां इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन की एक बैठक के लिए गए थे। उस समय सिमोन का एयर इंडिया के साथ एक छोटा सा कार्यकाल चल रहा था। दोनों की यह मुलाकात प्यार में बदल गई और साल 1955 में दोनों शादी के बंधन में बंध गए।

    अनजाने में बनीं बिजनेस लीडर

    सिमोन को बिजनेस का कोई अनुभव नहीं था, पर उनके एक साधारण सवाल ने उन्हें भारतीय कॉस्मेटिक उद्योग की सबसे अहम शख्सियत बना दिया। एक बार टाटा परिवार डिनर पर बैठा था। सिमोन ने सहजता से पूछा- “हमारे पास इतने प्रोडक्ट्स हैं, पर अच्छी कोल्ड क्रीम क्यों नहीं?” तीन दिन बाद ही लक्मे बोर्ड से जुड़ने का प्रस्ताव उनके सामने था। उन्होंने मजाक में सोचा, पर यही फैसला उनकी जिंदगी बदल गया। बैलेंस शीट पढ़ना तक सीखना पड़ा, पर सीखते-सीखते वे 1982 में लक्मे की चेयरपर्सन बन गईं।

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    विफलता से सीख, सफलता की उड़ान

    1960 के दशक में लक्मे ने पहली लिपस्टिक रेंज लॉन्च की। लेकिन भारतीय महिलाओं ने इसे 'बहुत चमकीला' कहकर ठुकरा दिया। सिमोन को एहसास हुआ कि यूरोपीय स्टाइल भारत में नहीं चलेगा। उन्होंने रिसर्च टीम बनाई, घर-घर जाकर सर्वे करवाए और सीखा कि “ब्रांड हमेशा लोकल होना चाहिए, थोपा हुआ नहीं।” यही सोच आगे चलकर लक्मे को भारत का पहला सफल कॉस्मेटिक और वैश्विक ब्रांड बनाने में आधार बनी।

    मेकअप को लेकर तोड़ी महिलाओं की झिझक

    जब 1962 में सिमोन टाटा लक्मे के बोर्ड में शामिल हुईं, तब यह टाटा ऑयल मिल्स की एक बहुत छोटी यूनिट थी। उस समय भारतीय मिडिल क्लास की महिलाएं मेकअप करने में झिझकती थीं और इसे अच्छा नहीं माना जाता था।

    सिमोन टाटा ने इस सोच को बदलने का बीड़ा उठाया। उनका मानना था कि "सुंदरता कोई लग्जरी नहीं, बल्कि हर महिला का अधिकार है।" 1970 और 80 के दशक में उन्होंने भारतीय महिलाओं की पसंद और उनकी जेब को ध्यान में रखकर प्रोडक्ट्स बनवाए। उनकी मेहनत का ही नतीजा था कि लक्मे भारत का सबसे बड़ा कॉस्मेटिक ब्रांड बन गया।

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    फैशन की दुनिया में नई क्रांति

    1990 के दशक में जब भारत की अर्थव्यवस्था बदल रही थी, तब सिमोन टाटा ने एक बड़ा और साहसिक फैसला लिया। उन्होंने लक्मे ब्रांड को 45 मिलियन डॉलर में हिंदुस्तान यूनिलीवर (HUL) को बेच दिया।

    इस पैसे से उन्होंने रिटेल सेक्टर में कदम रखा और ट्रेंट (Trent) की स्थापना की। इसी के तहत आज हम वेस्टसाइड (Westside) और जूडियो (Zudio) जैसे मशहूर स्टोर देखते हैं। उन्होंने न सिर्फ महिलाओं को मेकअप करना सिखाया, बल्कि उन्हें फैशनेबल कपड़े पहनने का नया और आधुनिक तरीका भी दिया।

    भले ही उन्होंने 2000 के दशक में पद छोड़ दिया था, लेकिन आज भी टाटा ग्रुप के रिटेल बिजनेस में उनकी दूरदर्शिता, अनुशासन और 'किफायती फैशन' का मॉडल साफ झलकता है।

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