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    सिर्फ खेल नहीं, आत्मरक्षा का विज्ञान है 'गतका'; आज दुनियाभर में कायम है इस प्राचीन मार्शल आर्ट की धमक

    Updated: Sun, 21 Dec 2025 04:59 PM (IST)

    अविभाजित पंजाब की एक प्राचीन आत्मरक्षा कला गतका आज केवल आधुनिक पंजाब अथवा भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि अफगानिस्तान और त्रिनिदाद में भी प्रचलित है। भार ...और पढ़ें

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    अविभाजित पंजाब से अफगानिस्तान तक: वह मार्शल आर्ट जिसने दुनिया को अपना मुरीद बनाया (Image Source: map-academy.io) 

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। ‘गतका’ अविभाजित पंजाब में विकसित हुई आत्मरक्षा की एक विधा है। यह एक शास्त्र आधारित मार्शल आर्ट है, जिसमें मूल रूप से लकड़ी की लाठी का प्रयोग किया जाता है। ‘गतका’ संस्कृत भाषा के शब्द ‘गत्यस्’ अर्थात गति से आया है, परंतु पंजाबी भाषा में इस शब्द का प्रयोग लकड़ी की छोटी सी लाठी के लिए होता है। इसे युद्ध एवं अभ्यास में उपयोग किया जाता है, इस कारणवश इस मार्शल आर्ट को ‘गतकाबाजी’ भी कहते हैं। प्रायः गतका का प्रदर्शन, लाठियों को सजाकर, बैसाखी एवं गुरुपरब जैसे त्योहारों पर किया जाता है।

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    gatka image

    परंपरा के अनुसार इसका अभ्यास अखाड़ों में होता था, किंतु इसकी शिक्षा गुरुद्वारों में भी दी जाती थी। विद्वानों के अनुसार गतका की नींव छठे सिख गुरु श्री हरगोबिंद साहिब जी ने रखी थी तथा उन्होंने आत्मरक्षा के लिए कृपाण का उपयोग प्रारंभ कराया। ब्रिटिश शासनकाल में इसकी लोकप्रियता घट गयी, क्योंकि अंग्रेजों ने विद्रोह के डर से कृपाण एवं भाला जैसे शस्त्रों पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसी कारण से गतका का अभ्यास गुप्त रूप से केवल गांव के अखाड़ों के भीतर किया जाता था।

    gatka in india

    प्रशिक्षण का प्रारंभ पैर की चाल से होता जिसे ‘पैंतरा’ कहते थे। पैंतरा शब्द युद्ध की रणनीति में भी उपयोग होता आया है। पैंतरे के पश्चात अन्य शस्त्रों का अभ्यास भी होता है। सर्वप्रथम ‘बहु युद्ध’ में उपयोग होने वाली ‘मरहटी’ (बांस की लाठी) का अभ्यास किया जाता है। इसके अलावा गतका में कई तरह के शस्त्रों का भी इस्तेमाल किया जाता है, जिनमें चक्र, सोटी, तेगा (लंबी एवं चौड़ी तलवार), तबर (कुल्हाड़ी), गुर्ज (गदा), बरछा (भाला) और खंडा (दो धार वाली तलवार) शामिल हैं। इसमें गतका और फर्री (ढाल) का संयोजन सबसे सामान्य है, इसके अलावा कृपाण और ढाल का उपयोग भी किया जाता है।

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    सिख धर्म के ‘दसम ग्रंथ’ में गतका के हथियारों का उल्लेख मिलता है। इन शस्त्रों को दो खंडों में विभाजित किया गया है, मुकता एवं अमुकता। मुकता में हाथ से चलाए एवं छोड़े जाने वाले शस्त्र जैसे गुलेल या धनुष तथा अमुकता में हाथ में पकड़ने जाने वाले हथियार शामिल हैं। इन हथियारों को प्रायः कमरकसा/कमरबंद या पगड़ी/दस्तार में रखा जाता है।

    gatka

    गतका के हथियारों को युद्ध से पहले ‘शस्त्र पूजा’ के अंतर्गत पूजित किया जाता है। पूजन कार्य में हथियार विशेष आकृतियों में सजाए जाते हैं, जिनमें सबसे लोकप्रिय कमल के फूल जैसी आकृति है। इसके बाद ‘शस्त्र नमस्कार’ करके उनकी वंदना की जाती है। सिखों के दसम ग्रंथ में प्रशिक्षण और प्रदर्शन के दौरान उच्चारित किए जाने वाले श्लोक भी बताए गए हैं। ये ढोल या नगाड़ों के साथ गाए जाते हैं।

    पंजाब के अलावा गतका का अभ्यास अफगानिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा के हजारा क्षेत्र में तथा त्रिनिदाद के भारतीय मूल के लोगों द्वारा भी किया जाता है। गतका को ‘गतका फेडरेशन आफ इंडिया’ (जीएफआइ) और ‘नेशनल गतका एसोसिएशन आफ इंडिया’ (एनजीएआइ) जैसे संगठनों द्वारा पुनर्जीवित किया गया और इसे राष्ट्रीय स्तर पर खेल के रूप में भी मान्यता मिली। साथ ही, 2013 में पंजाब सरकार ने पंजाब यूनिवर्सिटी, पटियाला में गतका का डिप्लोमा कोर्स शुरू किया।

    सौजन्य: map-academy.io

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