मानसून का जल्दी आना सचमुच राहत है या प्रकृति दे रही है बड़े बदलावों का संकेत?
प्रकृति से हमने इतना खिलवाड़ किया है कि अब हर बूंद कहर बनकर बरसती है। जी हां मानसून में सड़कें दरिया बन जाती हैं खेत डूब जाते हैं और जिंदगियां बिखर जाती हैं। डॉ. अनिल प्रकाश जोशी का यह आर्टिकल हमें चेतावनी दे रहा है कि इस बार के संकेत कुछ और भी कह रहे हैं...

डॉ. अनिल प्रकाश जोशी, नई दिल्ली। इस बार मानसून के ठीक-ठाक रहने की आशा तो थी पर गर्मी नहीं पड़ेगी, ऐसा नहीं सोचा था। पूरे देश में इस बार की गर्मी ने पूरी नरमी बरती। जो भी झेला, वो गर्मी से ज्यादा उमस थी। इस बार हमने गर्मी की लू को नहीं झेला,क्योंकि बीच-बीच में बारिश ने गर्मी को तो थाम दिया, पर उमस ज्यादा भर दी। अब मानसून समय से पहले आकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है। इससे पहले ही हमने देश के विभिन्न हिस्सों में स्थानीय बारिश देखी, जिसे इस रूप में परिभाषित किया जा सकता है कि पूरा सिस्टम- प्रकृति का और मौसम के व्यवहार का- कहीं न कहीं लड़खड़ा गया है।
हमारे लिए यह एक बड़ी अच्छी खबर होगी कि मानसून ने समय से पहले दस्तक दी, और साथ में यह भी कि हमने वह चुभती गर्मी नहीं झेली, ना ही उतनी तेजी से। एसी और कूलर ने इस बार वैसा शोर नहीं मचाया। मगर इस बार भले ही भारत में गर्मी कम रही हो, पर दुनिया भर में मई की गर्मी ने वही भयावह हालात पैदा किए थे। हमने 2025 में पृथ्वी के सतह तापमान को 1850 और 1990 के औद्योगीकरण की तुलना में 1.4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा दिया है। और वैसे भी, यदि हम अपने देश के परिप्रेक्ष्य में देखें, तो हमें गर्मी से राहत इसलिए भी मिली क्योंकि बारिश की बूंदें बार-बार तापमान को नियंत्रित कर रही थीं। इस बदलाव को कतई हल्के में नहीं लिया जा सकता, क्योंकि इसके पीछे बार-बार सक्रिय होता पश्चिमी विक्षोभ और ला नीना जैसी वैश्विक घटनाएं हैं। पश्चिमी हिमालय में पूरे महीने के दौरान इन विक्षोभों ने तापमान को नियंत्रण में रखा और दैवीय कृपा यह भी रही कि जंगल की आग को लेकर ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी।
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इस बदलाव को लेकर हमारे चेहरों पर भले ही चमक हो कि मानसून समय से पहले आया और राहत दी, लेकिन इसमें किसी भी तरह से सुख के संकेत नहीं हैं। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण यही है कि लगातार तपता हुआ समुद्र अब मौसम को गहराई से प्रभावित कर रहा है। पश्चिमी विक्षोभ या समय से पहले मानसून की दस्तक देने के पीछे समुद्र की गर्माहट प्रमुख भूमिका निभा रही है। हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी का सबसे बड़ा हिस्सा समुद्र है और अगर पृथ्वी का तापमान किसी भी कारण से बढ़ रहा हो, तो उसकी पहली और सबसे बड़ी चोट समुद्र पर ही पड़ती है। विशाल समुद्र का क्षेत्रफल पृथ्वी की भूमि से तीन गुना बड़ा है। अगर तापमान लगातार बढ़ता रहे, तो यह पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को विचलित कर सकता है। जैसे इस बार गर्मी वैसी नहीं लगी और आने वाले समय में यदि यही हालात बने रहे, तो शीतकाल भी नहीं दिखेगा और वसंत भी अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाएगा।
कम गर्मी दे रही चेतावनी
देश में गर्मी का कम पड़ना मात्र एक सीमित घटना नहीं है, बल्कि इसका गहरा प्रभाव खेती-बाड़ी, फल पट्टी और खेतों में होने वाले सभी प्रकार के उत्पादन पर पड़ेगा। आने वाले समय में लीची, आम, सेब, बेर, नाशपाती और संतरा—इन सभी में बदलाव दिखाई देंगे। यह सब प्रकृति के संकेत हैं, जो हमें चेतावनी दे रहे हैं। प्रकृति कभी भी, किसी भी मौके पर हमें ध्वस्त कर सकती है। यदि हम इतिहास को खंगालें तो पता चलेगा कि इससे पहले भी दो बार दुनिया समाप्त हो चुकी है। तब भी प्रकृति ने ही यह किया था। लेकिन अब इस बार प्रक्रिया को मनुष्य ने तीव्र गति दे दी है।
मौसम के दो नियंत्रक
पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करने में दो प्रमुख कारक होते हैः पहाड़ और समुद्र। इन्हें ‘क्लाइमेटिक गवर्नर’ के रूप में देखा जा सकता है। इन्हीं से तय होता है कि मानसून कब और कैसे आएगा तथा हमारे अन्य मौसम किस प्रकार रहेंगे। हमारे देश में मानसून का बड़ा कारक अंटार्कटिका भी है, जिसके व्यवहार से मानसून की दिशा और गहराई बनती है। अब यदि अंटार्कटिका और समुद्र दोनों किसी न किसी रूप में असंतुलित हो रहे हैं, तो इससे जुड़े मौसम के व्यवहार भी उसी तरह से बदल जाएंगे!
(लेखक पद्मविभूषण से अलंकृत पर्यावरण कार्यकर्ता हैं)
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