Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बिना सिंहोरा अधूरी है बिहार की शादियां, लाह से दिया जाता है सुहाग का लाल रंग

    Updated: Thu, 09 Jan 2025 04:07 PM (IST)

    शादी-विवाह को लेकर हमारे देश में कई रीति-रिवाज देखने को मिलते हैं जो जगह-जगह पर बदलते रहते हैं। ऐसे ही बिहार की शादियां सिंहोरा (Singhora) के बिना पूरी नहीं मानी जाती। सिंहोरा लकड़ी का एक पात्र होता है जिसमें सिंदूर रखा जाता है। आइए जानते हैं सिंहोरा का महत्व क्या है (Singhora history) और इसे किस तरह से बनाया जाता है।

    Hero Image
    शादी में खास महत्व रखता है सिंहोरा (Picture Courtesy: Jagran File)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली।Singhora Cultural Significance: बात अगर बिहार की शादियों की हो और सिंहोरा का जिक्र न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। बिहार की शादियां (Bihar wedding traditions) बिना सिंहोरा के अधूरी मानी जाती है।

    सिंहोरा सिर्फ एक लकड़ी का पात्र नहीं है, बल्कि शादी के पवित्र बंधन का भी प्रतीक है। इसलिए यहां हम आपको बताएंगे कि सिंहोरा होता क्या है, इसका महत्व (Singhora historical roots) क्या है और वक्त के साथ इसकी बनावट में कैसे बदलाव हुए हैं। आइए जानें।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    सिंहोरा क्या है?

    सिंहोरा एक लकड़ी का पात्र होता है, जिसमें सिंदूर रखा जाता है। विवाह के दौरान दूल्हा दुल्हन की मांग में सिंदूर भरता है। इसी सिंदूर को सिंहोरा में रखा जाता है। यह सिर्फ एक पात्र नहीं है, बल्कि सुहागिन महिलाओं के लिए सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। शादी के दौरान दूल्हा सिंहोरा लाता है और दुल्हन की मांग में इसी पात्र में रखा गया सिंदूर लगाया जाता है। सिंहोरा सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है।

    यह भी पढ़ें: लाल रंग में कैसे रंगा जाता है सुहागिनों का सौभाग्य 'सिंहोरा', किस लकड़ी से बनता है, यहां पढ़ें- पूरी जानकारी

    सिंहोरा खरीदने के भी हैं नियम

    आपको बता दें कि दूसरी चीजों की तरह सिंहोरा नहीं खरीदा जाता है। इसे खरीदने का एक खास नियम है। सिंहोरा बनाने वाली दुकान पर सभी डिजाइन और आकार के सिंहोरे रख दिए जाते हैं, जिनमें से दूल्हा सिंहोरा पसंद करता है, लेकिन नियम यह होता है कि इन्हें हाथ में नहीं ले सकते। जिस सिंहोरे को एक बार छू लिया जाता है, उसे ही शादी में सिंदूरदान के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

    ऐसा होता है कि सिंहोरा महिला के साथ-साथ तब तक रहता है, जब तक वह सुहागिन रहती है। यानी पति की मृत्यु के साथ सिंहोरा भी चला जाता है और अगर किसी सुहागिन स्त्री की मृत्यु होती है, तो उस सिंहोरे को संभालकर पूजा घर में रखा जाता है।

    सिंहोरा का महत्व क्या है?

    • पवित्रता का प्रतीक- सिंहोरा को विवाह के पवित्र बंधन का प्रतीक माना जाता है।
    • सुहाग का प्रतीक- सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना जाता है और सिंहोरा में रखा गया सिंदूर सुहागिन महिलाओं के लिए सौभाग्य लाता है।
    • सांस्कृतिक महत्व- सिंहोरा बिहार और झारखंड की संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है।
    • कला का नमूना- सिंहोरा को अक्सर कलात्मक रूप से सजाया जाता है, जो इसे एक कला का नमूना बनाता है।

    सिंहोरा कैसे बनाया जाता है?

    सिंहोरा को आम तौर पर आम की लकड़ी से बनाया जाता है और इसे रंगने के लिए नेचुरल रंगों का इस्तेमाल किया जाता है।

    • लकड़ी का चयन- सबसे पहले एक अच्छी गुणवत्ता वाली आम की लकड़ी का चयन किया जाता है।
    • लकड़ी को काटना- फिर लकड़ी को सिंहोरा के आकार में काटा जाता है।
    • खोखला करना- काटी हुई लकड़ी को अंदर से खोखला किया जाता है, ताकि उसमें सिंदूर रखा जा सके।
    • सजावट- खोखले किए हुए भाग को कलात्मक रूप से सजाया जाता है। इसमें नक्काशी, पेंटिंग आदि शामिल हो सकते हैं।
    • पॉलिश- अंत में सिंहोरा को पॉलिश किया जाता है ताकि यह चमकदार और आकर्षक दिखे।

    वक्त के साथ सिंहोरा में क्या बदलाव आए?

    पहले सिंहोरा सिर्फ लाल रंग का लकड़ी का एक पात्र होता था, जिसे लाह से रंगा जाता था। इसे चमकाने के लिए केवड़े के पत्ते पर सरसों के तेल का इस्तेमाल किया जाता था। धीरे-धीरे लोगों की पसंद में बदलाव आने लगा और सिंहोरा को अलग-अलग डिजाइन और आकार में बनाया जाने लगा। इसके बाद रंगों से उस पर डिजाइन बनाने की शुरुआत हुई। समय और बदला और आज का सिंहोरा, तरह-तरह के मोती और लेस आदि से सजा हुआ नजर आता है।

    सिंहोरा के अलग-अलग प्रकार

    सिंहोरा के अलग-अलग प्रकार होते हैं, जो आकार, डिजाइन और सजावट में काफी अनोखे होते हैं। कुछ सिंहोरा सादे होते हैं, जबकि कुछ बेहद जटिल और कलात्मक होते हैं।

    सिंहोरा का महत्व कायम है

    वक्त के साथ हमारी कई परंपराओं में बदलाव आया है, लेकिन सिंहोरा की परंपरा वैसे की वैसे कायम है। आज भी बिहार में बिना सिंहोरा के शादियां नहीं होती हैं।

    यह भी पढ़ें: यूपी ही नहीं महाराष्ट्र, दिल्ली तक प्रसिद्ध है गोरखपुर का सिंहोरा