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    लाल रंग में कैसे रंगा जाता है सुहागिनों का सौभाग्य 'सिंहोरा', किस लकड़ी से बनता है, यहां पढ़ें- पूरी जानकारी

    By Pragati ChandEdited By: Pragati Chand
    Updated: Sat, 06 May 2023 05:33 PM (IST)

    शादी का सीजन चल रहा और बाजारों में रंग-बिरंगे कपड़ों व गहनों के साथ ही सुहागिनों का सौभाग्य सिंहोरा भी दुकानों पर सजा है। हिंदू धर्म में सिंहोरा का काफी महत्व होता है। तो आइए आज हम इसके बारे में कुछ खास बातें जान लेते हैं।

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    आम की लकड़ी से ही बनता है सिंहोरा। (फाइल फोटो)

    गोरखपुर, प्रगति चंद। कम ही लोग जानते हैं कि सुहागिनों का सौभाग्य सिंहोरा हमेशा आम की लकड़ी से ही बनाया जाता है क्योंकि इस लकड़ी की आस्थापरक मान्यता है। कारीगर सलाउद्दीन ने बताया कि गोरखपुर में सिंहोरा के बनाना शुरू किए जाने की वजह आम की लकड़ी की सहज उपलब्धता रही। हालांकि पेड़ों के कट जाने से वह वजह अब लगभग समाप्त सी हो गई है। अब अपने काम को जारी रखने के लिए कारीगरों को आम की लकड़ी मंहगे दाम पर खरीदनी पड़ती है। बावजूद इसके कोई समझता नहीं किया जाता।

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    केवड़े के पत्ते के जरिये लाह से देते हैं सिंहोरा को रंग

    सिंहोरे का लाल रंग सामान्य रंग नहीं होता। शायद ही किसी को पता होगा कि इसे रंगने के लिए पेंट का इस्तेमाल नहीं होता। इसे लाह से रंगा जाता है। इसमें ब्रश का काम केवड़े का पत्ता करता है। कारीगर लाह और केवड़े की पत्ते को मांगलिक कार्य के लिए शुभ बताते हैं। हालांकि इसकी उपलब्धता को लेकर अपनी दिक्कत साझा करने भी वह नहीं चूकते। कारीगर गजेंद्र सिंह बताते हैं कि पहले केवड़े का पत्ता गोरखपुर में ही मिल जाता था, अब उसे मध्य प्रदेश से मंगाना पड़ता है। लाह भी मध्यप्रदेश से ही आता है। इसकी वजह से सिंहारा तैयार करने की लागत बढ़ जाती है।

    देश भर में है गोरखपुर के इस बाजार की अहमियत

    गोरखपुर के पांडेयहाता की बात हो और सिंहोरा की चर्चा न आए, ऐसा हो ही नहीं सकता। ऐसा हो भी क्यों न, बाजार से सिंहोरा का नाम अनिवार्य रूप से दो-चार वर्षों से नहीं बल्कि सौ से अधिक वर्षों से जुड़ा है। सिंहोरा गढ़ते और सजाते कारीगर और उससे सजी दुकानों को पांडेयहाता का प्रतीक कहा जाए तो गलत नहीं होगा। सुहाग के प्रतीक के प्रति कारीगरों और दुकानदारों की प्रतिबद्धता ने गोरखपुर के इस बाजार की अहमियत को देश भर में बनाए रखा है।