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    घर के दरवाजे पर बैठकर ली शिक्षा, पति के बाद संभाली सत्ता की बागडोर, पढ़ें कैसा था अहिल्या बाई का जीवन

    Updated: Sat, 31 May 2025 12:34 PM (IST)

    रानी अहिल्याबाई होल्कर (Rani Ahilyabai Holkar) भारत की महान शासकों में से एक हैं। 31 मई 1725 को जन्मीं रानी अहिल्याबाई ने मालवा और मराठा साम्राज्य को समृद्धि की नई ऊंचाई दिलाई। उनका जीवन कई उतार-चढ़ावों से भरा रहा लेकिन अपने जजबे और समर्पण से इन्होंने इतिहास के पन्नों में अपनी जगह बना ली।

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    31 मई 2025 को है रानी अहिल्या बाई होल्कर की 300वीं जयंती (Picture Courtesy: Instagram)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। भारत में ऐसी बहुत कम महिला शासक रही हैं, जिनका लोहा दुनियाभर में माना गया है। इन महिलाओं में रानी अहिल्या बाई का नाम सबसे ऊपर आता है। इन्होंने अपने शासनकाल में ऐसे कई काम किए, जिनकी कल्पना भी उस समय में करना मुश्किल था। मालवा और मराठा साम्राज्य पर शासन करते हुए रानी अहिल्याबाई होलकर (Rani Ahilyabai Holkar) ने उन्हें समृद्धि के उस शिखर तक पहुंचाया, जहां तक पहुंचना हर किसी के बस की बात नहीं थी।

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    पशुपालक के घर हुआ था जन्म

    अहिल्या बाई का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के चौंडी गांव में हुआ था, यानी आज 31 मई 2025 को इनकी 300वीं जयंती (Rani Ahilyabai Holkar Birth Anniversary) है। आज यह गांव अहमदनगर जिले में आता है। यह वह दौर था, जब महिलाओं की दुनिया घर के अंदर ही सिमट कर रह जाती थी। अपने घर-परिवार को संभालने के अलावा उनसे और किसी भी तरह की जिम्मेदारी की उम्मीद नहीं की जाती थी।

    लेकिन उस समय में एक ऐसी लड़की भी थी, जिसने न सिर्फ शिक्षा हासिल की, बल्कि आगे चलकर इतिहास में अपना नाम भी दर्ज करवाया। यह बालिका और कोई नहीं, बल्कि रानी अहिल्या बाई ही थीं। हालांकि, इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्हें कई उतार-चढ़ाव का सामना भी करना पड़ा।

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    घर की चौखट पर बैठकर ली शिक्षा

    अहिल्या बाई का जन्म एक पशुपालक मानकोजी शिंदे के घर हुआ था। उस जमाने में लड़कियों को पढ़ाने की प्रथा नहीं थी, लेकिन फिर भी मानकोजी शिंदे ने अपनी बेटी को पढ़ाने की पैरवी की। हालांकि, यह इतना आसान थी। अहिल्या बाई को स्कूल जाने की इजाजत नहीं थी, क्योंकि वे एक महिला थीं।

    इसलिए उन्होंने अपने घर की चौखट पर बैठकर ही संस्कृत, धर्म और नीतिशास्त्र की शिक्षा ली। उस समय में शादी भी काफी जल्दी हो जाती थी। इसलिए जब अहिल्या बाई 10 साल की हुईं, तो उनका विवाह इंदौर राज्य के संस्थापक मल्हार राव होल्कर के बेटे खंडेराव होल्कर से हुआ और इस तरह वे बनीं अहिल्या बाई होलकर। विवाह के समय मल्हार राव की उम्र भी मात्र 12 साल थी।

    सती नहीं, सत्ता को चुना 

    साल बाद 1754 में कुंभेर किले की घेराबंदी के दौरान अहिल्या बाई के पति मल्हार राव वीरगति को प्राप्त हो गए। यह ऐसा दौर था, जब भारत में सती प्रथा का खूब प्रचलन था। इस प्रथा के मुताबिक पति की मृत्यु के बाद पत्नी भी उसकी चिंता के साथ खुद को जिंदा जला लेती थीं। लेकिन अहिल्या बाई को आम महिला नहीं थीं।

    उन्होंने सती होने के बजाय अपने पति की जगह शासन की बागडोर संभाली और उनका न्याय इतना मजबूत था कि जल्दी ही सभी ने उनका लोहा मान लिया। अहिल्या बाई न्याय की इतनी पक्की थीं कि उन्होंने अपने बेटे को भी न्याय के लिए मृत्युदंड की सजा सुना दी थी। हुआ यूं था कि उनके बेटे मालेराव ने एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या कर दी थी, जिसके बाद न्याय के लिए अहिल्या बाई ने उसे मौत की सजा सुना दी थी।

    सेना में महिलाओं को भी किया शामिल

    सिर्फ न्याय व्यवस्था ही नहीं, रानी अहिल्या बाई ने अपने साम्राज्य की समृद्धि और विकास के लिए भी खूब काम किया। उन्होंने 50 से भी ज्यादा मंदिरों और मस्जिदों का जीर्णोद्धार करवाया। रानी अहिल्या बाई के बारे में एक कहानी काफी प्रचिलित है। एक बार एक फकीर ने उनकी प्रशंसा में फारसी कविका लिखी थी। उन्हें यह कविता बहुत पसंद आई और खुश होकर उन्होंने उस फकीर को ‘इनाम-ए-आजीवन’ के रूप में एक गांव ईनाम के रूप में दे दिया था।

    इतना ही नहीं, 1782 के अकाल से भी राहत के लिए उस जमाने में भी दो लाख से ज्यादा खर्च किए थे। रानी महिला सशक्तिकरण के महत्व को समझती थीं। इसलिए उन्होंने अपनी सेना में भी महिलाओं के लिए एक खास टुकड़ी बनाई थी, जिसका नाम था ‘दुर्गा दल’। अपने साम्राज्य को नई ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए अहिल्या बाई ने और भी कई काम किए।

    अंग्रेजों के सामने भी नहीं टेके घुटने

    अहिल्या बाई राजनीति में भी अव्वल थीं। उस समय अंग्रेज भारत पर अपनी सत्ता जमाने में लगे हुए थे, तब अहिल्या बाई ने बड़ी ही कुटिलता से उनपर रणनीतिक जीत हासिल की थी। दरअसल, ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1784 में अहिल्या बाई से सैन्य मदद और मालवा क्षेत्र में राजस्व अधिकार मांगे थे। लेकिन रानी अहिल्या बाई को अंग्रेजों के सामने घुटने टेकना स्वीकार नहीं था। उन्होंने अंग्रेजों के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और उनके साथ एक समझौता भी किया, जिसमें सालाना सिर्फ एक लाख रुपए देने की बात मानी। उन्होंने मालवा की एक इंच जमीन देने से भी मना कर दिया और न ही सेना पर अंग्रेजी हुकूमत की सत्ता स्वीकारी।

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