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    Chhatrapati Shivaji Maharaj के एक ही वार से धराशायी हो गया था अफजल खान, दिलचस्प है 'वाघ नख' की पूरी कहानी

    Updated: Mon, 19 Aug 2024 02:10 PM (IST)

    मुगलों से आंख मिलाकर लड़ने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) अपनी वीरता के साथ-साथ चतुराई के लिए भी याद किए जाते हैं। इतिहासकारों की मानें तो शिवाजी महाराज युद्ध में कई किस्म के हथियारों का इस्तेमाल किया करते थे लेकिन इन सब में वाघ नख (Wagh Nakh) बेहद खास रहा है। आइए आपको बताते हैं कि कैसे इसके एक वार से क्रूर अफजल खान धराशायी हो गया था।

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    बेहद दिलचस्प है Chhatrapati Shivaji Maharaj के 'वाघ नख' की कहानी (Image Source: Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Chhatrapati Shivaji Maharaj: 'वाघ नख' बाघ के पंजों की तरह दिखने वाला एक खास हथियार है, जिसकी धार दुश्मन को एक ही झटके में चीर देने की क्षमता रखती है। इतिहासकारों की मानें, तो साल 1659 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने बीजापुर सल्तनत के सेनापति अफजल खान को इसी धारदार हथियार से धराशायी कर दिया था।

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    यह उस दौर की बात है, जब बीजापुर सल्तनत के प्रमुख आदिल शाह और शिवाजी के बीच युद्ध चल रहा था। ऐसे में, छल के रास्ते से अफजल खान ने शिवाजी को मारने की योजना बनाई थी और इसी सिलसिले में उन्हें मुलाकात के लिए बुलाया था। शिवाजी ने यह आमंत्रण स्वीकार किया और शामियाने में अफजल खान से मिलने भी पहुंचे, लेकिन असल बात को कुछ और ही थी।

    दरअसल, अफजल शिवाजी की पीठ में खंजर भोंकने का नापाक मंसूबा पाले बैठा था और उसने इसका प्रयास भी किया, लेकिन इससे पहले वो इस करतूत में सफल होता कि महान योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज ने एक ही वार में अफजल का पेट चीर दिया था।

    क्या है वाघ नख?

    अफजल को मारने के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज ने जिस हथियार का इस्तेमाल किया था, उसे ही वाघ नख कहा जाता है। जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट हो रहा है कि इसे बाघ के पंजे के आकार में डिजाइन किया जाता है, जिससे ये इंसान की मुट्ठी में आसानी से फिट हो जाता है। स्टील से तैयार यह वाघ नख असल में बाघ के पंजे से भी कई गुना घातक होता है। इसमें चार नुकीली छड़ें होती हैं, जो दुश्मन को एक ही झटके में चीर देने के लिए काफी है। हाथ की पहली और चौथी उंगली में इसके रिंग को फिट किया जाता है और बस फिर इस घातक हथियार से किसी को भी मौत के घाट उतारा जा सकता है।

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    पहली बार शिवाजी महाराज ने किया इस्तेमाल

    बाघ के पंजों की तरह दिखने वाला यह वाघ नख पहली बार वीर योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज ने इस्तेमाल किया था। शिवाजी महाराज का बाघ नख मराठा साम्राज्य की राजधानी सतारा में था, लेकिन अंग्रेजों के भारत आने के बाद मराठा पेशवा के प्रधानमंत्री ने 1818 में इसे ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी जेम्स ग्रांट डफ को भेंट कर दिया था। बताया जाता है कि 1824 में डफ जब वापस इंग्लैंड गए तो वह बाघ नख को भी ले गए और बाद में यह लंदन की विक्टोरिया और अल्बर्ट म्यूजियम को दान कर दिया गया।

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