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    तालिबान के खिलाफ सुरों की लड़ाई, संगीत की शक्ति से सत्ता को चुनौती देतीं अफगान महिलाएं

    Updated: Sat, 31 Aug 2024 03:43 PM (IST)

    अफगानिस्तान में जब से तालिबान सत्ता में आया है उसने महिलाओं के सभी अधिकारों को कुचलकर रख दिया है। अब वहां महिलाओं को सार्वजनिक जगहों पर न तो चेहरा दिखाने की आजादी है न बोलने की और न गाने की। इस कानून के खिलाफ विरोध (Afghans Protest Against Taliban) करने के लिए महिलाओं ने अब सोशल मीडिया पर संगीत को हथियार बनाया है।

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    संगीत के जरिए तालिबान को चुनौती देती महिलाएं (Picture Courtesy: Jagran Files)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। "अगर मैं नहीं हूं, तो तुम कौन हो?" यह सवाल अफगानिस्तान की एक महिला का है, जो तालिबान के दमनकारी शासन के खिलाफ संगीत के जरिए अपना विरोध (Afghan Women's Protest Against Taliban) जता रही है। तालिबान के सत्ता में आने के बाद से, अफगान महिलाओं के जीवन पर अंधेरा छा गया है। उन्हें सार्वजनिक जीवन से लगभग पूरी तरह से बाहर कर दिया गया है। लेकिन इन सबके बावजूद, ये महिलाएं हार नहीं मान रही हैं।

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    संगीत की ताकत

    संगीत, जो प्रेम की भाषा है, आज विद्रोह का प्रतीक बन गया है। संगीत अब अफगान महिलाओं के लिए आवाज उठाने का एक माध्यम बन गया है। अगर आप नहीं जानते, तो आपको बता दें कि अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद महिलाओं के लगभग सारे अधिकार छीन लिए गए हैं। तालिबान ने महिलाओं को सार्वजनिक जगहों पर बोलने, गाने और चेहरा दिखाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। इसी कानून के खिलाफ विरोध जताने के लिए संगीत का सहारा लिया जा रहा है।

    महिलाएं अपने गीतों के माध्यम से तालिबान के अन्याय के खिलाफ खड़ी हो रही हैं और दुनिया को अपनी पीड़ा दिखा रही हैं। सोशल मीडिया पर, अफगान महिलाएं गाने गाते गुए अपना वीडियो शेयर कर रही हैं, जिनमें वे तालिबान के खिलाफ बोल रही हैं और अपनी आजादी की मांग कर रही हैं। विडियो शेयर करके एक महिला तालिबान से पूछ रही है कि “तुम्हारे बीच सच्चे पुरुष कहां हैं?”

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    महिलाओं का तालिबान के खिलाफ विद्रोह

    महिलाएं धार्मिक ग्रंथों और इस्लामी शिक्षा का हवाला देते हुए कह रही हैं कि तालिबान को सही शिक्षा की जरूरत है। अफगान महिलाओं का यह संगीतिक विरोध सिर्फ अफगानिस्तान तक ही सीमित नहीं है। अपनी आजादी के लिए आवाज उठाती इन महिलाओं की ये मुहीम अब अफगानिस्तान की सरहद को पार करके दक्षिण एशिया और यूरोप के अन्य हिस्सों तक पहुंच चुका है। दुनिया भर में महिलाएं उनके साथ एकजुटता दिखा रही हैं। वे भी अपने गीतों के माध्यम से अफगान महिलाओं को समर्थन दे रही हैं।

    डॉ. जहरा, जो पहले अफगानिस्तान में एक डेंटिस्ट थीं, अब जर्मनी में रहती हैं। उन्होंने भी इस अभियान में भाग लिया है। अपने गीत के माध्यम से वे कहती हैं, "यदि मैं नहीं हूं, तो तुम नहीं।" वे यह संदेश देना चाहती हैं कि समाज के निर्माण में महिलाओं का कितना महत्वपूर्ण योगदान होता है। डॉ. जहरा खुद भी तालिबान का जुल्म सह चुकी हैं। तालिबान के सत्ता में आने के बाद उनकी नौकरी चली गई, जिसके खिलाफ उन्होंने महिलाओं को इकट्ठा करके सड़क पर आंदोलन किया, लेकिन उन्हें जेल में डाल दिया गया था। इसके बाद उन्होंने देश छोड़ दिया और जर्मनी में रहने लगीं।

    सत्ता को चुनौती

    अब महिलाएं सिर्फ संगीत के जरिए ही नहीं, बल्कि फिर से सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन करने के लिए आगे आ रही हैं। वेस्ट र्हेरात यूनिवर्सिटी की एक पूर्व लेक्चरर कहती हैं कि हम समाज का आधा हिस्सा हैं। तालिबान इस तरह हमारी आवाज नहीं दबा सकता। उन्हें हमारी शक्ति का अहसास नहीं है। वे हेरात में प्रदर्शन रैली आयोजित करने जा रही हैं, जिसमें महिलाएं भी शामिल होंगी।

    यह संगीतिक विरोध सिर्फ एक विरोध प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह एक आंदोलन है। यह आंदोलन हमें याद दिलाता है कि आवाज उठाने से ताकत मिलती है। यह आंदोलन हमें यह भी याद दिलाता है कि जब महिलाएं एक साथ आती हैं, तो वे किसी भी चुनौती का सामना करने में सक्षम होती हैं।

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