World Sleep Day 2025: सेहतमंद रहने के लिए जरूरी है अच्छी नींद, इन टिप्स से सुधारे अपनी स्लीप साइकिल
अच्छी नींद अच्छी सेहत का बहुत बड़ा संकेत है। अगर नींद अच्छी क्वालिटी की न आए तो जरूरी है कि हम अपने डेली रूटीन पर ध्यान दें और अपनी गलतियों पर वर्क करें जिससे नींद की क्वालिटी को सुधारा जा सके। अच्छी नींद कई बीमारियों से बचाव करती है। इसलिए हर मायने में एक अच्छी स्लीप रूटीन फॉलो करना बेहद जरूरी है।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। आजकल की जीवनशैली में सबसे बड़ी चुनौती है एक अनुशासित जीवन का पालन करना। सुबह देर से उठना, रात में घंटों फोन चलाना और दुनिया भर की तमाम चिंताओं से हर समय घिरे रहना, ये सभी बातें एक आम जीवन का हिस्सा बन चुकी हैं जो कि सीधे तौर पर हमारी नींद की क्वालिटी से समझौता करती हैं।
फिर जब नींद की क्वालिटी खराब होती है तो पूरा दिन बेकार सा जाता है। इसलिए ज़रूरी है कि एक सख्त स्लीप रूटीन का पालन किया जाए जिससे नींद की क्वालिटी में सुधार लाया जा सके। इसलिए अपनी स्लीप रूटीन को बेहतर बनाने के लिए अपनाएं ये टिप्स-
सुबह की रोशनी से दिन की शुरुआत करें
सुबह की धूप मेंटल क्लैरिटी लाती है, मूड को बेहतर बनाती है, फील गुड न्यूरोट्रांसमिटर सेरोटोनिन की मात्रा बढ़ाती है। ये सीजनल मूड चेंज को भी ठीक करने में मदद करती है। अच्छा मूड नींद की क्वालिटी को भी बेहतर बनाता है।
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सोने के 8 से 10 घंटे पहले तक कैफीन का सेवन न करें
कैफीन का सेवन करने के बाद साफ होने से पहले ये सिस्टम और ब्लडस्ट्रीम में घंटों तक प्रवाहित होता है। कैफीन लेने के लगभग 6 घंटे बाद तक भी ये शरीर में मौजूद रहता है। इसलिए सोने के 6 से 8 घंटे पहले कैफीन का सेवन करने से सोने के समय तक दिमाग सक्रिय रहता है और शरीर थका हुआ होता है। इससे इन्सोम्निया की समस्या शुरू हो सकती है।
अपने स्ट्रेस लोड को कम करने के तरीके अपनाएं
नींद की खराब क्वालिटी का सबसे बड़ा कारण स्ट्रेस है। जब हम स्ट्रेस में होते हैं तो हमारी शरीर की हर सेल भी स्ट्रेस में आ जाती है। इससे स्ट्रेस रिस्पॉन्स सक्रिय हो जाता है और ये नींद की क्वालिटी के साथ पूरे शरीर को प्रभावित करता है। इसलिए किसी भी प्रकार के स्ट्रेस से डील करने के लिए शरीर की सभी सेल मिल कर एनर्जी की डिमांड को पूरा करने में लग जाती हैं। इससे नींद प्रभावित होती है और सामान्य स्लीप वेक साइकिल फॉलो करने में समस्या आती है। इसलिए स्ट्रेस लोड को कम करने की कोशिश करें। मेडिटेट करें या फिर काउंसलर की मदद लें।
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