सिर्फ सांस की बीमारी नहीं है अस्थमा, डॉक्टर से जानें कैसे हार्ट और डाइजेशन पर भी डालता है गहरा असर
जब भी हम Asthma का नाम सुनते हैं दिमाग में सबसे पहले सांस लेने की दिक्कत जैसी तस्वीरें बनती हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि अस्थमा सिर्फ फेफड़ों की तकलीफ तक ही सीमित नहीं है? ये बीमारी धीरे-धीरे शरीर के दूसरे जरूरी अंगों जैसे हार्ट और डाइजेस्टिव सिस्टम पर भी बुरा असर डाल सकती है। आइए World Asthma Day 2025 के मौके पर डॉक्टर से जानें इसके बारे में।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। मई महीने के पहले मंगलवार को हर साल विश्व अस्थमा दिवस (World Asthma Day 2025) मनाया जाता है। साल 2025 में यह दिन 6 मई को पड़ रहा है। इस खास दिन का मकसद है लोगों को अस्थमा के बारे में जागरूक करना, इसके लक्षण, कारण और इसके प्रभावों को समझाना ताकि समय रहते इलाज हो सके और जिंदगी आसान बन सके। आइए, आज इस आर्टिकल में आपको बताते हैं कि कैसे अस्थमा शरीर के अलग-अलग हिस्सों को प्रभावित करता है, जिनमें हार्ट और पाचन तंत्र भी शामिल है (How Asthma Affects Your Heart and Digestion)।
अस्थमा की सूजन केवल फेफड़ों तक सीमित नहीं
मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, द्वारका के एसोसिएट डायरेक्टर और यूनिट हेड, पल्मोनोलॉजी, क्रिटिकल केयर और स्लीप मेडिसिन, डॉ. मनीष गर्ग ने बताया, कि हाल के अध्ययनों में यह पाया गया है कि अस्थमा के कारण जो सूजन (Inflammation) होती है, वह सिर्फ फेफड़ों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि यह सूजन पूरे शरीर में फैल सकती है, जिसे 'सिस्टेमिक इंफ्लेमेशन' कहा जाता है। यही सूजन धीरे-धीरे दिल की बीमारियों को जन्म दे सकती है।
डॉक्टर ने जोर देकर कहा कि अस्थमा से जूझ रहे लोगों में C-reactive protein (CRP) जैसे सूजन से जुड़े तत्वों का स्तर बढ़ा हुआ पाया गया है। बता दें, ये तत्व दिल की धमनियों को संकीर्ण बना सकते हैं, जिससे हाई ब्लड प्रेशर, एथेरोस्क्लेरोसिस (धमनियों का कठोर हो जाना) और यहां तक कि दिल का दौरा (Heart Attack) होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
इतना ही नहीं, अस्थमा के इलाज में इस्तेमाल होने वाली कॉर्टिकोस्टेरॉयड दवाएं, हालांकि सांस की तकलीफ को कम करने में मदद करती हैं, लेकिन ये दवाएं ब्लड प्रेशर बढ़ा सकती हैं और कोलेस्ट्रॉल पर भी असर डालती हैं, जिससे दिल पर जरूरत से ज्यादा बोझ पड़ता है।
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अस्थमा और पेट की बीमारियों का गहरा राज
अब बात करते हैं एक और चौंकाने वाले रिश्ते की- जो है पेट और फेफड़ों के बीच का कनेक्शन, इसे वैज्ञानिक भाषा में गट-लंग एक्सिस कहा जाता है। हमारे पेट और फेफड़ों के बीच एक अनोखा कनेक्शन होता है। जब पेट में मौजूद गट माइक्रोबायोम (फायदेमंद बैक्टीरिया) का संतुलन बिगड़ता है, तो इसका सीधा असर सांस की नली और अस्थमा की गंभीरता पर पड़ता है।
यही कारण है कि अस्थमा से पीड़ित लोगों को अक्सर पेट फूलना, एसिडिटी और अपच जैसी समस्याएं भी परेशान करती हैं। कुछ मामलों में तो IBS (इरिटेबल बाउल सिंड्रोम) और GERD (गैस्ट्रोइसोफेजियल रिफ्लक्स डिजीज) जैसी पाचन संबंधी बीमारियां भी सामने आती हैं।
इन तरीकों से करें अस्थमा को मैनेज
अस्थमा को केवल दवाओं से नहीं, बल्कि सही लाइफस्टाइल और खान-पान से भी काफी हद तक मैनेज किया जा सकता है।
- फाइबर से भरपूर डाइट (जैसे फल, सब्जियां, साबुत अनाज) शरीर में सूजन को कम करता है।
- रेगुलर एक्सरसाइज न सिर्फ फेफड़ों की क्षमता बढ़ाता है, बल्कि दिल और पाचन तंत्र को भी मजबूत बनाता है।
- स्ट्रेस मैनेजमेंट से भी अस्थमा के लक्षणों में राहत मिल सकती है, क्योंकि तनाव सीधे हमारे शरीर की सूजन को बढ़ाता है।
- प्रोबायोटिक्स (जैसे दही, छाछ) और ओमेगा-3 फैटी एसिड्स (जैसे अलसी, अखरोट, मछली) का सेवन फेफड़ों और पाचन तंत्र दोनों के लिए फायदेमंद साबित हुआ है।
डॉ. मनीष गर्ग कहते हैं कि अब समय आ गया है कि हम अस्थमा को केवल एक "सांस की बीमारी" मानने की सोच से आगे बढ़ें। यह एक ओवरऑल हेल्थ प्रॉब्लम है, जो दिल, पेट और पूरे शरीर को प्रभावित कर सकती है। इसलिए इलाज भी सिर्फ इनहेलर तक सीमित नहीं होना चाहिए।
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