किसी भयानक या जानलेवा घटना के कारण हो सकता है PTSD, ऐसे लक्षण दिखने पर लें डॉक्टर की मदद
अगर व्यक्ति किसी भीषण या जानलेवा घटना से गुजरा हो, तो उसके बाद PTSD यानी Post Traumatic Stress Disorder का खतरा काफी बढ़ जाता है। ऐसे में व्यक्ति का पूरा जीवन प्रभावित होने लगता है। इसलिए इससे उबरने के लिए प्रोफेशनल मदद लेना बेहद जरूरी है। आइए जानें PTSD के लक्षण कैसे होते हैं?

PTSD होने पर डॉक्टर से मदद लेना है जरूरी (Picture Courtesy: Freepik)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। प्राकृतिक आपदा, दुर्घटना, युद्ध, हिंसा या कोई अन्य डरावना अनुभव, कई बार जीवन में ऐसी घटनाएं घटित होती हैं जिनके जख्म बहुत गहरे होते हैं। ये चोट शरीर पर नहीं, बल्कि मन पर लगते हैं। पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) ऐसी ही एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्या है, जो किसी भीषण या जानलेवा घटना का अनुभव करने, उसे देखने या उसके बारे में सुनने के बाद विकसित हो सकती है।
यह केवल 'डर जाना' नहीं, बल्कि एक ऐसी कंडीशन है, जहां दिमाग उस घटना से उबर नहीं पाता और व्यक्ति उसी डर और स्ट्रेस में फंसा रह जाता है। ऐसी स्थिति में प्रोफेशनल मदद लेना बेहद जरूरी है, क्योंकि यह व्यक्ति के जीवन को काफी हद तक प्रभावित कर सकता है। कुछ लक्षणों (Symptoms of PTSD) की मदद से PTSD का पता लगाया जा सकता है, जिससे वक्त पर इलाज करवाने में मदद मिल सकती है।
12 जून को हुए अहमदाबाद में हुए प्लेन क्रैश के एकलौते सर्वाइवर विश्वास कुमार रमेश भी PTSD से डायग्नोस हुए हैं। उस प्लेन हादसें में विश्वास कुमार रमेश के अलावा सभी यात्रियों की मौत हो गई थी, जिसमें इनके भाई भी शामिल थे। इस भीषण हादसे में उनकी जान तो बच गई, लेकिन इसके बाद उन्हें काफी फिजिकल और मेंटल परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। आइए जानें कैसे PTSD व्यक्ति को प्रभावित करता है।
बार-बार अनचाही यादें आना
इसमें ट्रॉमा की यादें बार-बार और अनचाहे ढंग से व्यक्ति के दिमाग में घूमती रहती हैं। यह सिर्फ एक याद नहीं होती, बल्कि एक ऐसे बुरे सपने जैसा होता है जो जागते हुए भी टला नहीं करता। इसमें व्यक्ति को उस घटना के सपने आते हैं, उसकी 'फ्लैशबैक्स' आती हैं जहां उसे ऐसा लगता है मानो वह दर्दनाक घटना फिर से घट रही हो। ये फ्लैशबैक्स इतनी असल लगती हैं कि व्यक्ति उन्हें वर्तमान में हो रहा महसूस करने लगता है।

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यादों से भागना
इस दर्द से बचने के लिए, व्यक्ति हर उस चीज, स्थान, एक्टिविटी या यहां तक कि व्यक्ति से भी दूरी बनाने लगता है जो उसे उस ट्रॉमा की याद दिला सकती है। वह उस घटना के बारे में बात करने, उसे याद करने या उससे जुड़ी भावनाओं को महसूस करने से भी कतराता है। यह एक डिफेंस मकेनिज्म की तरह होता है, जो दरअसल उसे और ज्यादा अलग-थलग कर देता है।
मनोदशा में नकारात्मक बदलाव
ट्रॉमा व्यक्ति की अपने और दुनिया के बारे में सोच को बुनियादी तौर पर बदल देता है। इसमें ऐसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं-
- डर, गुस्सा या गिल्ट जैसी भावनाएं।
 - ट्रॉमा की घटना के अहम हिस्सों को भूल जाना।
 - अपने या दूसरों के बारे में लगातार नकारात्मक विचार आना।
 - घटना के कारणों या नतीजों के बारे में तिरछी सोच, जिससे व्यक्ति खुद को या दूसरों को गलत ठहराने लगता है।
 - दूसरों से कटा-कटा महसूस करना।
 - पहले जिन एक्टिविटीज में मजा आता था, उनमें रुचि खो देना।
 - पॉजिटिव अहसास न कर पाना।
 
रिएक्शन में बदलाव
इसमें व्यक्ति हमेंशा फ्लाइट या फाइट मोड में रहता है। शरीर और दिमाग हमेशा आस-पास के खतरे को भांपते रहते हैं, चाहे भले ही सच में कोई खतरा मौजूद न हो। इसके लक्षण हैं-
- चिड़चिड़ापन और अचानक तेज गुस्सा।
 - लापरवाह या सेल्फ डिस्ट्रक्टिव बिहेवियर।
 - आस-पास की हर चीज पर नजर रखना।
 - आसानी से डर जाना।
 - फोकस करने या सोने में परेशानी।
 
PTSD एक बेहद गंभीर और मुश्किलों से भरी स्थिति है, जो न सिर्फ प्रभावित व्यक्ति, बल्कि उसके पूरे परिवार को प्रभावित कर सकती है। इसलिए इसके लक्षणों के बारे में जानकारी और सही मदद लेना बेहद जरूरी है। प्रोफेश्नल मदद लेकर इस कंडीशन से उबरा जा सकता है।

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