World Hemophilia Day 2024: लगातार ब्लीडिंग हो सकता है हीमोफीलिया का लक्षण, इन जांचों से पता लगाएं इस बीमारी का
हीमोफीलिया बीमारी के बारे में जागरूकता बढ़ाने के मकसद से हर साल 17 अप्रैल को World Hemophilia Day मनाया जाता है। हीमोफीलिया एक दुर्लभ जेनेटिक डिसऑर्डर है जो ब्लड के ठीक से जमने की क्षमता को प्रभावित करता है जिसके चलते चोट लगने पर सामान्य से अधिक रक्तस्त्राव हो सकता है। कैसे पता लगा सकते हैं इस बीमारी का जानेंगे इस बारे में।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। World Hemophilia Day 2024: हर साल 17 अप्रैल का दिन दुनियाभर में वर्ल्ड हीमोफीलिया डे के रूप में मनाया जाता है। जो एक जेनेटिक डिसऑर्डर है। यह रोग, बहुत कम लोगों में पाया जाता है। जिन लोगों को हीमोफीलिया होता है, उनके शरीर से बह रहा खून जल्दी रूकता नहीं है। इस वजह से व्यक्ति के शरीर में खून की कमी हो जाती है। हीमोफीलिया से पीड़ित व्यक्ति में रक्त के थक्के जमने की प्रक्रिया सही से काम नहीं करती है। महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों को इस बीमारी का खतरा ज्यादा होता है।
हीमोफीलिया के मरीजों की संख्या के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है। यहां इसके लगभग 1.3 लाख मरीज हैं। डॉ. मीत कुमार, मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल, गुरुग्राम के हेमेटोलॉजी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट के क्लिनिकल डायरेक्टर से हमने इस बारे में बातचीत की। उन्होंने हीमोफीलिया के प्रकार और इस बीमारी का पता लगाने के लिए कुछ जरूरी जांचों के बारे में बताया।
हीमोफीलिया के प्रकार
हीमोफीलिया A: क्लॉटिंग फैक्टर VIII की कमी के कारण होता है।
हीमोफीलिया B: क्लॉटिंग फैक्टर IX की कमी के कारण होता है।
हीमोफीलिया C: क्लॉटिंग फैक्टर XI की कमी के कारण होता है (कम सामान्य और आमतौर पर ए और बी की तुलना में हल्का)। हीमोफीलिया के लक्षण स्थिति की गंभीरता के आधार पर भिन्न हो सकते हैं।
कैसे पता लगाएं इस बीमारी का?
हीमोफीलिया का इलाज करने के लिए पहले जांच जरूरी है। डॉक्टर पहले मरीज की मेडिकल हिस्ट्री के बारे में जानते हैं। हीमोफीलिया का इलाज करने के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट किया जाता है। यह एक तरह का ब्लड टेस्ट होता है। ब्लड टेस्ट की मदद से यह पता लगाया जाता है कि खून के थक्के जमने का प्रॉसेस सामान्य रूप से काम कर पा रहा है या नहीं।
कंप्लीट ब्लड टेस्ट (CBC)
कंप्लीट ब्लड काउंट टेस्ट की मदद से हीमोग्लोबिन की जांच की जाती है। हीमोग्लोबिन में रेड ब्लड सेल्स होते हैं। इन सेल्स में ऑक्सीजन, व्हाइट ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स पाए जाते हैं। जिन लोगों को हीमोफीलिया होता है उनका हीमोग्लोबिन भी नॉर्मल ही रहता है। जिन लोगों में हीमोफीलिया के कारण हैवी ब्लीडिंग होती है, उनमें रेड ब्लड सेल्स का काउंट कम हो सकता है।
क्लॉटिंग फैक्टर टेस्ट
ब्लीडिंग डिसऑर्डर जैसी हीमोफीलिया की जांच करने के लिए, क्लॉटिंग फैक्टर टेस्ट किया जाता है। ब्लड टेस्ट के जरिए, हीमोफीलिया और उसकी गंभीरता का पता लगाया जाता है।
फाइब्रिनोजन टेस्ट
फाइब्रिनोजन टेस्ट की मदद से, ब्लड क्लॉट का पता लगाया जाता है। इसके अलावा प्रोथ्रोम्बिन टाइम टेस्ट भी किया जाता है। इसके अलावा एक्टिवेटेड पार्शियल थ्रोम्बोप्लास्टिन टेस्ट भी किया जाता है। इस टेस्ट के जरिए यह पता लगाते हैं कि ब्लड क्लॉट बनने में कितना समय लगता है।
डॉ. वरुण बाफना, हेमेटोलॉजिस्ट और हेमाटो-ऑन्कोलॉजिस्ट, बोन मैरो और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट फिजिशियन, स्टार सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल, कोल्हापुर, महाराष्ट्र, का कहना है कि "हीमोफीलिया देखभाल में एपिसोडिक से रोगनिरोधी उपचार में परिवर्तन एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जो रोगियों को पुरानी संयुक्त बीमारियों से मुक्त सक्रिय जीवनशैली बनाए रखने की संभावना प्रदान करता है। भारत में स्वास्थ्य सेवा प्रदाता तेजी से इस बदलाव की वकालत कर रहे हैं और मरीजों की भलाई बढ़ाने में इसके दीर्घकालिक लाभों को पहचान रहे हैं। रोगनिरोधी उपचार में क्लॉटिंग कारकों का नियमित प्रशासन शामिल होता है, जो रक्तस्राव की आवृत्ति और गंभीरता को काफी कम कर देता है। सक्रिय प्रबंधन के माध्यम से, रोगियों को अपने दैनिक जीवन में कम रुकावटों का अनुभव होता है और वे पुराने दर्द और गतिहीनता द्वारा लगाए गए बाधाओं के बिना गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए सशक्त होते हैं।
डॉ. ज्ञानेश्वर प्रह्लादराव उपासे, वरिष्ठ सलाहकार हेमेटोलॉजिस्ट, इम्यूनोलॉजिस्ट और हेमाटो-ऑन्कोलॉजिस्ट ने बताया कि, “रोगनिरोधी उपचार को अपनाने से भारत में हीमोफीलिया प्रबंधन में एक नए युग की शुरुआत हुई है, जिससे स्वास्थ्य परिणामों में सुधार और रोगियों के लिए जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि का वादा किया गया है। हालांकि, इसकी अप्रयुक्त क्षमता को उजागर करने के लिए जागरूकता बढ़ाने, पहुंच बढ़ाने और वित्तीय बाधाओं को कम करने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है, जिससे देश भर में हीमोफिलिया से पीड़ित व्यक्तियों के लिए एक उज्जवल भविष्य का मार्ग प्रशस्त हो सके। इसके अलावा, स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने, पेशेवरों को प्रशिक्षित करने और विशेष हीमोफीलिया देखभाल केंद्र स्थापित करने के प्रयास मरीजों तक पहुंच में सुधार और अनुरूप सेवाएं प्रदान करने के लिए आवश्यक है।"
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