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    Dystonia: क्या है डिस्टोनिया, एक्सपर्ट से जानें इस बीमारी के प्रकार के साथ लक्षणों व उपचार के बारे में

    By Priyanka SinghEdited By: Priyanka Singh
    Updated: Tue, 29 Aug 2023 09:24 AM (IST)

    Dystonia डिस्टोनिया एक ऐसी प्रॉब्लम है जिसमें मसल्स में बहुत अधिक खिंचाव और सिकुड़न होने लगती है। इसकी वजह से प्रभावित अंग की बनावट में भी फर्क आने लगता है। डिस्टोनिया शरीर की एक नस या फिर बहुत सारी मांसपेशियों पर भी एक साथ अटैक कर सकती है तो क्यों होती है ये समस्या क्या है इसके लक्षण आइए जानते हैं इस बारे में।

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    Dystonia: क्या होता है डिस्टोनिया, इसके प्रकार व लक्षण

    नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Dystonia: डिस्टोनिया एक न्यूरोलॉजिकल मूवमेंट डिसऑर्डर है, जिसमें मांसपेशियों में बहुत ज्यादा खिंचाव होता है और वो सिकुड़ने लगती हैं। शरीर के जिन अंगों में खिंचाव और सिकुड़न होता है उनकी बनावट बदलने लगती है। डिस्टोनिया शरीर के किसी भी हिस्से में, हल्का या गंभीर रूप से हो सकता है। यह आमतौर पर शरीर के एक हिस्से में शुरू होता है और धीरे-धीरे बाकी हिस्सों में फैलने लगता है। महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा इसके होने की ज्यादा संभावना होती है।

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    डिस्टोनिया के प्रकार

    तथ्यों के आधार पर डिस्टोनिया को अलग-अलग भागों में बांटा गया है। जिनमें शरीर का प्रभावित अंग, शुरुआत की उम्र और इसका प्राइमरी (इडियोपैथिक) या सेकंडरी (मौजूदा स्थिति के कारण होने वाला) स्वरूप आदि शामिल किए जा सकते हैं। जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-

    1. फोकल डिस्टोनिया

    यह कुछ खास अंगों पर ही असर डालता है, जैसे - गर्दन (सर्वाइकल डिस्टोनिया या टोर्टिकोलिस), मुंह (ब्लेफैरोस्पास्म), वोकल कॉर्ड्स (स्पास्मोडिक डिस्टोनिया) या हाथ (राइटर्स क्रैंप)।

    2. सेगमेंटल डिस्टोनिया

    यह एकदम आसपास के अंगों को प्रभावित करता है।

    3. जनरलाइज्ड डिस्टोनिया

    यह कई अंगों पर असर डालता है, जिसमें अक्सर बांहें और धड़ शामिल होते हैं।

    4. हेमीडिस्टोनिया

    यह शरीर के एक तरफ के हिस्से को प्रभावित करता है।

    5. मल्टीफोकल डिस्टोनिया

    इसमें दो या ज्यादा ऐसे अंग प्रभावित होते हैं, जो आसपास स्थित नहीं हों।

    6. डिस्टोनिया-प्लस सिंड्रोम

    अन्य न्यूरोलॉजिकल समस्याओं के साथ होने वाला डिस्टोनिया, डिस्टोनिया-प्लस सिंड्रोम कहलाता है। इन अन्य समस्याओं में पार्किंसन या मायोक्लोनस जैसी बीमारियां शामिल हो सकती हैं।

    डिस्टोनिया के लक्षण

    डिस्टोनिया के लक्षण बहुत हद तक इस बीमारी के प्रकार और गंभीरता पर निर्भर करते हैं। इसके आम लक्षण कुछ इस तरह हो सकते हैं :

    - गले में खिंचाव

    - बोलने में परेशानी

    - बहुत ज्यादा पलकें झपकना

    - पैर में मोच आना

    - कंपकंपी

    डिस्टोनिया का इलाज 

    डिस्टोनिया के इलाज में लक्षणों को दूर करने पर ध्यान दिया जाता है। इसके अलावा, कार्य करने की क्षमता सुधारने और मरीज की लाइफ क्वॉलिटी बेहतर करने की कोशिश भी की जाती है। डिस्टोनिया के प्रकार और गंभीरता के अनुसार इलाज की योजना बनाई जाती है। 

    1. दवाइयां: मांसपेशियों को आराम देने वाली दवाइयां, बोटूलिनम टॉक्सिन इंजेक्शन (बोटोक्स) और एंटीकोलिनेरजिक दवाइयां मांसपेशियों में ऐंठन कम करने में मदद कर सकती है, जिससे मांसपेशियों पर नियंत्रण भी सुधरता है।

    2. शारीरिक उपचार: स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज, रेंज ऑफ मोशन एक्सरसाइज और विभिन्न मुद्राओं को लेकर दिए जाने वाले ट्रेनिंग से डिस्टोनिया के लक्षणों को कंट्रोल करने में मदद मिल सकती है, जिससे मांसपेशियों के स्थायी रूप से छोटा हो जाने जैसी जटिल स्थितियों से बचा जा सकता है।

    3. बोटूलिनम टॉक्सिन इंजेक्शन: बोटोक्स इंजेक्शन से अक्सर फोकल डिस्टोनिया का सफल इलाज किया जाता है। इस इंजेक्शन के असर से मांसपेशियों में सिकुड़न लाने वाले नसों के संकेतों को रोक दिया जाता है।

    4. डीप ब्रेन स्टीमुलेशन (डीबीएस): गंभीर मामलों में, डीबीएस के अंतर्गत, सर्जरी करके ब्रेन में इलेक्ट्रोड्स लगाए जाते हैं, जिससे ब्रेन की असामान्य गतिविधि को नियंत्रित किया जा सके और डिस्टोनिया के लक्षण कम हो सकें।

    5. सर्जरी: कुछ मामलों में, डिस्टोनिया के लक्षण दूर करने या इसका कारण बनने वाली शारीरिक संरचनाओं में सुधार के लिए सर्जरी की जाती है।

    6. जीवनशैली में बदलाव: तनाव से राहत, नियमित व्यायाम और पर्याप्त नींद से अच्छी सेहत और संपूर्ण कल्याण में मदद मिलती है, जिससे डिस्टोनिया के लक्षण दूर किए जा सकते हैं।

    7. सहयोगी चिकित्सा: स्पीच थेरेपी, ऑक्युपेशनल थेरेपी और साइकोलॉजिकल काउंसिलिंग से मरीज को भावनात्मक और शारीरिक चुनौतियों से निपटने में मदद मिल सकती है।

    डिस्टोनिया से पीड़ित लोगों के लिए जरूरी है कि वे हेल्थकेयर टीम के साथ मिलकर काम करें। इस टीम में न्यूरोलॉजिस्ट्स और मूवमेंट डिसऑर्डर स्पेशलिस्ट्स शामिल होते हैं। इनके सहयोग से इलाज की संपूर्ण योजना तैयार की जा सकती है, जिससे संबंधित मरीज की विशेष जरूरतों और लक्ष्यों को पूरा किया जा सकता है। इसके बाद नियमित रूप से हेल्थकेयर प्रोफेशनल से संपर्क रखना और इलाज की योजना का पूरी तरह पालन करना, सर्वश्रेष्ठ परिणाम पाने के लिए जरूरी हो सकता है।

     

    (Dr Narendra kumar , Neurosurgeon, Ujala Cygnus Group of Hospitals से बातचीत पर आधारित)

    Pic credit- freepik