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    Mental Health के इलाज में रुकावट बनते हैं ये 5 फैक्टर्स, इनकी पहचान कर आज ही करें इन्हें दूर

    Updated: Fri, 19 Jul 2024 09:17 AM (IST)

    इन दिनों लोगों की लाइफस्टाइल काफी भागदौड़ भरी हो चुकी है। इसकी वजह से न सिर्फ शारीरिक बल्कि उनकी मानसिक सेहत भी बिगड़ने लगी है। हालांकि आज भी कई लोग Mental Health को उतना महत्व नहीं देते जितना असल में इसे जरूरत होती है। इसलिए जरूरी है कि उन फैक्टर्स की पहचान करना जो मेंटल हेल्थ के इलाज में रुकावट बनते हैं।

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    मेंटल हेल्थ ठीक करने के रोकते हैं ये फैक्टर्स (Picture Credit- Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। आजकल की भागदौड़ भरी जीवनशैली में शारीरिक थकान के साथ ही मानसिक समस्याएं भी होने लगती हैं। इस दिनों हमारे रहन-सहन और काम का असर हमारी मेंटल हेल्थ पर भी होने लगा है। यही वजह है कि बीते कुछ समय से लोग अपनी मेंटल हेल्थ के प्रति जागरूक हुए हैं और इसे गंभीरता से ले रहे हैं, लेकिन फिर भी समाज का एक बड़ा तबका इसे कोई बीमारी या समस्या मानने को तैयार नहीं है।

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    ऐसे में मेंटल हेल्थ को टैबू समझने वाले लोग अंदर ही अंदर घुट कर अपनी इसे नजरअंदाज करते हैं, जिससे दिमाग के साथ ही शरीर भी बीमारी पड़ने लगता है और फिर अंत में थक कर हॉस्पिटल के चक्कर लगाते हैं। समय से मेंटल हेल्थ के प्रति जागरूक होकर इसे इसके कई बुरे अंजाम से बचा जा सकता है। हालांकि, कई ऐसे फैक्टर्स हैं, जो मेंटल हेल्थ में सुधार करने के लिए रास्ते में कांटा बन कर अड़ी रहते हैं। ऐसे में आज इस आर्टिकल में जानेंगे ऐसे 5 फैक्टर्स, जो मेंटल हेल्थ को ठीक करने से रोकते हैं-

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    पब्लिक स्टिगमा

    समाज का एक तबका मेंटल हेल्थ से जूझने वाले लोगों का मजाक उड़ाता है। समाज मेंटल हेल्थ को हल्के में लेता है और इससे संबंधित किसी बीमारी को बहाने या नखरे का नाम दे कर संबोधित करता है, जिससे मेंटल हेल्थ की समस्या से जूझने वाला व्यक्ति हतोत्साहित होता है और सामाजिक रूप से अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए डॉक्टर से परामर्श लेने में संकोच करता है।

    सेल्फ स्टिगमा

    इंसान समाज से पहले खुद ही इस बात को स्वीकार नहीं कर पाता है कि उसे किसी प्रकार की मेंटल प्रॉब्लम है। इस स्टिगमा से वह खुद भी बाहर नहीं आ पाता है, जिसके कारण वह अकेले ही इसके लक्षणों से जूझता रहता है, लेकिन इस बात की पुष्टि कभी नहीं करता है कि वो किसी रूप में बीमार है। उदासी और डिप्रेशन के बीच मौजूद पतली रेखा को वे देख नहीं पाते हैं। उदासी एक इमोशन है और डिप्रेशन एक बीमारी। इस बात को खुद समझना बहुत जरूरी है, तभी आप इसके प्रति जागरूक हो कर सही इलाज की दिशा में कदम उठा पाएंगे।

    कमजोर होने की निशानी

    कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि मेंटल हेल्थ से जूझने का मतलब है कि आप कमजोर हैं। इस वजह से वे खुद को बहादुर दिखाने की होड़ में मेंटल हेल्थ को गंभीरता से नहीं लेते हैं और इसके इलाज को नजरअंदाज कर देते हैं। ये सोच मेंटल हेल्थ के ट्रीटमेंट में एक बहुत बड़ी रुकावट है। यहां ये समझना चाहिए कि मेंटल हेल्थ के लिए ट्रीटमेंट लेना एक हिम्मत वाला स्टेप है, जिसे उठा कर आप अपना भविष्य सुरक्षित करते हैं।

    ऐसे लोगों को असक्षम समझना

    वर्कप्लेस हो या घर की जिम्मेदारी, लोगों को ऐसा लगता है कि मेंटल हेल्थ से जूझने वाले लोग असक्षम होते हैं। वर्कप्लेस पर उन्हें काम में वरीयता नहीं दी जाती है और घर में भी इज्जत नहीं मिलती है। ये मानसिकता इसके ट्रीटमेंट में एक बहुत बड़ी रुकावट है।

    मेंटल हेल्थ कभी ठीक नहीं हो सकता

    ऐसी बेबुनियाद सोच के कारण कई लोग ट्रीटमेंट ही शुरू नहीं कराते हैं। जबकि सही सपोर्ट और इलाज से मेंटल हेल्थ को पूरी तरह ठीक करना और पहले जैसे स्वस्थ जीवन जीना पूरी तरह से संभव है।

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