Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    अच्छी सेहत का शॉर्टकट नहीं होता, फिर भी क्यों लोग चुन रहे हैं दवाओं का रास्ता?

    सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता फिर इन दिनों अच्छी सेहत के लिए दवा और इंजेक्शन का छोटा रास्ता क्यों पकड़ रहे हैं लोग। फिट इंडिया मूवमेंट के लाइफस्टाइल एंबेसडर व वेलनेस एक्सपर्ट लूक कुटिन्हो मानते हैं कि भले ही इनसे तात्कालिक लाभ दिख जाएं मगर ये समस्या को जड़ से समाप्त नहीं कर सकते। फिर क्या है इसका सही समाधान कैसे मिटाएं मोटापे का नामोनिशान?

    By Jagran News Edited By: Swati Sharma Updated: Mon, 30 Jun 2025 04:51 PM (IST)
    Hero Image
    फिट रहने के लिए लाइफस्टाइल में सुधार जरूरी (Picture Courtesy: Freepik)

    आरती तिवारीनोएडा आजकल लोग वजन कम करने के लिए शॉर्टकट रास्तों को ज्यादा पसंद कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर ऐसे कई इंफ्लूएंसर मिल जाएंगे, जो लोगों की इसी चाह का फायदा उठाते हैं और वजन कम करने के क्विक टिप्स शेयर करते हैं। कई लोग वजन कम करने के लिए बिना जरूरत की दवाओं या सर्जरी का भी रास्ता चुनते हैं। लेकिन आपको बता दें कि अच्छी सेहत के लिए सही लाइफस्टाइल और डाइट जरूरी है, तभी मोटापा और सेहत की अन्य समस्याएं जड़ से खत्म होंगी।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    इन दिनों वजन कम करने वाली दवाओं, इंजेक्शनों (जैसे ओजेंपिक और मौंजारो) यहां तक कि सर्जिकल उपायों की लोकप्रियता में वृद्धि हो रही है। आप इस चलन को किस प्रकार से देखते हैं, विशेषकर जब इसकी तुलना पारंपरिक आहार और जीवनशैली में बदलाव से की जाती है?

    मुझे ऐसा लगता है कि कोई भी निर्णय, चाहे वह दवा हो, इंजेक्शन हो या सर्जरी, अत्यंत व्यक्तिगत होता है। कुछ लोगों के लिए, विशेषकर जो मेडिकल या मेटाबोलिक स्थितियों से जूझ रहे हैं या जहां वजन जीवन की गुणवत्ता पर असर डाल रहा है, यह हस्तक्षेप जरूरी और यहां तक कि जीवन रक्षक हो सकते हैं। लेकिन मैं हर इंसान के लिए इनको ही समाधान समझने के बढ़ते चलन से असहमत हूं। ये मोटापा रोक सकते हैं लेकिन इसके स्थूल कारणों को हल नहीं करते। ये आपको बेहतर आहार, गहरी नींद, नियमित व्यायाम या भावनात्मक उत्प्रेरकों को नियंत्रित करने का तरीका नहीं सिखाते। स्थायी वजन प्रबंधन में शरीर के साथ अनुशासित लेकिन करुणामय संबंध आवश्यक हैं। दवाइयां वजन की मशीन पर नंबर जरूर बदल सकती हैं, लेकिन संपूर्ण स्वास्थ्य जीवनशैली में सचेत बदलाव से ही प्राप्त होता है। इस नींव के बिना सबसे अच्छा उपचार भी असफल हो जाता है।

    यह भी पढ़ें: मोटापा बना देश की नई महामारी: हर 5 में से 1 वयस्क प्रभावित, ₹750 करोड़ पार करने को तैयार बैरिएट्रिक सर्जरी बाजार

    मोटापा घटाने के लिए मेडिकल-सर्जिकल हस्तक्षेप से मन और शरीर के स्तर पर क्या संभावित परिणाम हो सकते हैं, जिनके बारे में लोग पूरी तरह से जागरूक नहीं हैं?

    शारीरिक साइड इफेक्ट्स पहले से ही विस्तृत रूप से दर्ज हैं: मतली, कब्ज, थायरायड जोखिम, पित्ताशय की समस्याएं, और कुछ मामलों में आंतों के कामकाज में गड़बड़ी। पर इसके साथ ही एक मनोवैज्ञानिक लागत भी है जिस पर हम अक्सर बात नहीं करते हैं। जब आप बिना प्रयास या जागरूकता के वजन कम करते हैं, तो मस्तिष्क वह अनुशासन, मनोवृत्ति या भावनात्मक नियंत्रण विकसित नहीं कर पाता, जो इसे बनाए रखने के लिए जरूरी है। वजन तो कम हो सकता है, लेकिन आदतें वही रहती हैं। मतलब यह है कि जैसे ही आप दवाई बंद करते हैं या तनाव का सामना करते हैं, आप पहले से ज्यादा मुसीबत में फंस जाते हैं। जीवनशैली में बदलाव के बिना वजन कम करना ऐसा ही है जैसे डूबती नाव में छेद को ठीक किए बिना पानी निकालना।

    आप स्वास्थ्य के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रचारित करते हैं जिसमें संतुलित पौष्टिकता, पर्याप्त व्यायाम, अच्छी नींद और भावनात्मक सुख-शांति शामिल हैं। इन सभी का वजन नियंत्रित करने में कितना महत्व है?

    आप दवा से वजन घटा सकते हैं, लेकिन उसे स्थिर रखने के लिए शरीर को अच्छी तरह से पाचन, गहरी नींद, प्रभावी शारीरिक गतिविधियां और भावनात्मक स्थिरता की आवश्यकता होती है। मेरी निगाह में संपूर्ण स्वास्थ्य के छह स्तंभ हैं- गहन कोशिकीय पोषण, पर्याप्त गतिशीलता, गुणवत्ता वाली नींद, भावनात्मक स्वास्थ्य, आत्मिक संबंध और श्वास। ये विकल्प नहीं हैं, बल्कि अनिवार्य हैं। ये हार्मोन को नियंत्रित करते हैं, आंत को संतुलित करते हैं, इंसुलिन संवेदीकरण को पुनर्स्थापित करते हैं और शोथ को कम रखते हैं। आखिरकार, यही सब तो शरीर की अतिरिक्त चर्बी का कारण हैं।

    यह धारणा कि स्वास्थ्यप्रद भोजन बेस्वाद होता है, बहुत आम है। बहुत से लोग मानते हैं कि स्वाद अधिक वसा, चीनी और नमक के साथ ही होता है...

    हम स्वाद की गलत धारणा के साथ बड़े हुए हैं। हमने मानना शुरू कर दिया कि खाना चीनी, नमक या मसाले में डूबा होना चाहिए ताकि वह संतोषजनक लगे। लेकिन सच्चाई यह है कि अधिकतर वह डिजाइन किया गया है। शक्कर, नमक और वसा की तिकड़ी को हमारी स्वाद कलिकाओं को जगाने के लिए इंजीनियर किया गया है और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्माता कंपनियां इस फार्मूले को सही रखने में करोड़ों खर्च करती हैं। जब आप लगातार जंक फूड खाते हैं, तो यह आपकी स्वाद कलिकाओं पर काबिज हो जाता है। घर का बना खाना फीका लगने लगता है तो यह इसलिए नहीं कि वह वास्तव में फीका है, बल्कि इसलिए क्योंकि आप किसी और स्वाद के नशीले चंगुल में फंसे हुए हैं!

    स्कूल कैंटीन अक्सर फास्ट फूड, जंक फूड, रेडी टु ईट और पैकेटबंद खाने को प्राथमिकता देते हैं। ऐसे में बच्चों-किशोरों में वजन बढ़ने की समस्या से मुक्ति कैसे मिलेगी?

    इसके लिए हमने ‘भारत स्कूल मेनू एंड लाइफस्टाइल योजना’ शुरू की, जिसमें हमने श्रीअन्न खिचड़ी, मौसमी फल, घर के बने लड्डू, सत्तू शर्बत, वेजीटेबल स्ट्यू आदि खाद्य पदार्थों को स्कूल कैंटीन्स में शामिल करने की मुहिम छेड़ी है। भारतीय परंपरा से परिपूर्ण यह कार्यक्रम अब ‘स्वस्थ भारत’ अभियान का हिस्सा है।

    स्वाद के लिए सेहत से समझौता क्यों?

    अगर खाना आपको सुस्त या नींद आने वाला महसूस कराता है—तो वह मूल्यवान ‘स्वाद’ नहीं है। लेकिन यदि वह आपको ऊर्जा देता है, संतुष्ट करता है और आपके मुस्कुराने का कारण बनता है—तो वही असली ‘स्वाद’ है। आइए कुछ विकल्प देखें, जीवन में नई शुरुआत करेंः -

    • डीप-फ्राइड साबूदाना वड़ा के बदले बेक्ड साबूदाना वड़ा
    • कार्बोनेटेड ड्रिंक्स की जगह गर्मियों में कच्चे आम का पना
    • मैदा रोल के बदले सत्तू का पैनकेक
    • शक्कर वाले डेजर्ट के बदले रागी चाकलेट लड्डू

    आफिस में सेहत के सात मंत्र

    आधुनिक कार्य परिवेश अक्सर लंबे समय तक बैठे रहने और शारीरिक गतिविधि में कमी को जन्म देता है। आपकी दृष्टि में ये माहौल वजन बढ़ाने की बढ़ती दर में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, खासकर कार्पोरेट सेटिंग्स में?

    हम ऐसी दुनिया के लिए नहीं बने हैं कि 8–10 घंटे कृत्रिम प्रकाश में बैठे रहें, डेस्क पर खाएं, बार-बार ईमेल, फोन और नोटिफिकेशन की गूंज में व्यस्त रहें। इससे न सिर्फ वजन बढ़ता है, बल्कि हार्मोन, आंत की गति, ब्लड शुगर और नींद पर भी असर पड़ता है। इसके साथ ही प्राकृतिक प्रकाश और अपने शरीर की लय से अलगाव का यह स्तर स्थायी तनाव का कारक बनता है। यह तनाव पेट की अधिक चर्बी, खाने की अतिरिक्त इच्छा और थकान का कारण बनता है। मैं हर कार्पोरेट क्लाइंट को यह सात सलाहें देता हूं :-

    • टाइमर सेट करें। हर 45 मिनट पर पांच मिनट के लिए खड़े हों या चलें।
    • फोनकाल करते समय या अनौपचारिक मीटिंग में, चलते हुए बात करें।
    • पर्याप्त पानी पिएं। यह क्रेविंग्स कम करता है और तृप्ति बढ़ाता है।
    • अपनी डेस्क पर खाने से बचें। भोजन का 15 मिनट का समय बिना किसी बाधा के बिताएं।
    • सुबह धूप का आनंद लें। यह मेटाबोलिज्म और सर्केडियन रिदम को रीसेट करने में मदद करता है।
    • काम के तनाव के दौरान बाक्स ब्रीथिंग या 4-7-8 ब्रीथिंग करें। यह कोर्टिसोल को कम करता है, जो पेट की चर्बी जमाने में मुख्य भूमिका निभाता है।
    • अपने डेस्क के नीचे सोलस पुश-अप्स करें। यह काफ मसल्स को टारगेट करता है और ब्लड शुगर व फैट मेटाबोलिज्म को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है।

    आज से ही बदलें जीवनशैली

    कोई व्यक्ति वजन कम करने की दवा या सर्जरी पर विचार कर रहा हो, तो इससे पहले जीवनशैली में क्या बुनियादी बदलाव आजमाने चाहिए?

    • आहार, व्यायाम और नींद से जीवनशैली में बदलाव शुरू करें। इसे खुद पर थोपें नहीं, बल्कि धीरे-धीरे अपनाएं।
    • दिन का आखिरी भोजन सोने से तीन-चार घंटे पहले करें।
    • भोजन अंतराल के बीच 10–15 मिनट की सैर का अभ्यास डालें।
    • आहार में परिष्कृत शक्कर कम करें। साबुत खाद्य पदार्थ बढ़ाएं।
    • स्थानीय फल, घी, सब्जियां, मेवे का इस्तेमाल करें।
    • रात 10:30 बजे के बाद सो जाने की आदत बनाएं।
    • भावनात्मक संतुष्टि का भी ध्यान रखें, क्योंकि भूख सिर्फ शारीरिक नहीं होती। अच्छा सोचें, अच्छा देखें, अच्छा पढ़ें, अच्छा व्यवहार करें।

    यह भी पढ़ें: भारत में बढ़ते मोटापे के पीछे की क्या है वजह और कैसे दे सकते हैं इसे मात?