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    Tahira Kashyap को फिर कैंसर; इलाज के बाद भी क्यों लौट आती है ये बीमारी? समझें कारण और बचाव

    Updated: Wed, 09 Apr 2025 04:50 PM (IST)

    एक्टर आयुष्मान खुराना की पत्नी ताहिरा कश्यप (Tahira Kashyap) एक बार फिर कैंसर का शिकार हो गई हैं। इससे वह साल 2018 में ब्रेस्ट कैंसर का शिकार हुई थी जिसके सात साल वह फिर से इस बीमारी की चपेट में आ गई हैं। ऐसे में हमने डॉक्टर से बातचीत में यह जाना कि क्यों कैंसर (Prevent Cancer Recurrence) ठीक होने के बाद दोबारा होता है।

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    इलाज के बाद दोबारा क्यों लौट आता है कैंसर? (Picture Credit- Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। बॉलीवुड अभिनेता और सिंगर आयुष्मान खुराना की पत्नी ताहिरा कश्यप एक बार फिर कैंसर (Why Cancer Returns) की चपेट में आ गई हैं। इस बारे में बीते दिनों उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर पोस्ट शेयर कर जानकारी दी। पहली बार साल 2018 कैंसर का शिकार होने के 7 साल बाद वह दोबारा इस गंभीर बीमारी का शिकार हो गई हैं।

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    ऐसे में इस बारे में जानने के लिए हमने एंड्रोमेडा कैंसर हॉस्पिटल सोनीपत में सर्जिकल ऑनकोलॉजी, ब्रेस्ट ऑनकोलॉजी की डायरेक्टर डॉ. वैशाली जामरे से बातचीत की। इस दौरान हमने डॉक्टर से यह जानने की कोशिश की कि खत्म होने के बाद कैंसर दोबारा (Prevent Cancer Recurrence) क्यों हो जाता है और इस बीमारी को दोबारा होने से कैसे रोक सकते (Cancer Prevention Tips) हैं?

    कैसे विकसित होता है कैंसर?

    डॉक्टर ने बताया कि कैंसर शरीर के किसी भी अंग या हिस्से में विकसित हो सकता है। डीएनए या जीन की संरचना में असामान्य बदलाव या डैमेज कैंसर के विकसित होने की शुरुआत है। ये बदलाव विरासत में मिल सकते हैं या जन्म के बाद शरीर में हो सकते हैं और एबनॉर्मल सेल्स के अनियंत्रित तरीके से बढ़ने का कारण बन सकते हैं। इससे कैंसर होता है। कैंसर वाले सेल्स में शरीर के अन्य भागों में सीधे या ब्लड स्ट्रीम या लिंपैटिक्स के जरिए बढ़ने और फैलने की क्षमता होती है।

    क्यों वापस आता है कैंसर?

    कैंसर सेल्स शरीर के किसी भी हिस्से में फैल सकते हैं, लेकिन लिवर, फेफड़े, हड्डियां, मस्तिष्क या एड्रिनल ग्लैंड्स जैसे अंग आमतौर पर अन्य अंगों की तुलना में कैंसर सेल्स के फैलने से प्रभावित होते हैं। आमतौर पर जितनी देर से कैंसर के लक्षण नजर आते हैं और फिर इसका निदान होता है, कैंसर का स्टेज उतना ही बढ़ चुका होता है। हालांकि, कुछ कैंसर ऐसे होते हैं, जिनका अन्य तरह के कैंसर से ज्यादा एग्रेसिव बिहेवियर होता है। ऐसे में इन कैंसर का पता आमतौर पर एडवांस स्टेज पर होता है या फिर इलाज पूरा होने के बाद उनके वापस लौटने की संभावना ज्यादा होती है।

    अगर इन कैंसर की पहचान और इलाज में देरी हो जाती है, तो ये कैंसर सेल्स शरीर के विभिन्न अंगों में बढ़ते रहते हैं। इसलिए, कई लोगों में कैंसर की पहचान चौथे स्टेज यानी मेटास्टेटिक स्टेज में होती है।

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    कैसे चलता कैंसर का पता?

    इसका पता पूरे शरीर के पीईटी सीटी स्कैन, सीईसीटी स्कैन, एमआरआई स्कैन, अल्ट्रासाउंड स्कैन या हड्डी स्कैन जैसे टेस्ट के जरिए लगाया जा सकता है। हालांकि, कई बार इन टेस्ट की मदद से मेटास्टेसिस के बेहद छोटे कणों (5 मिमी से कम) का पता नहीं चल सकता है। ऐसे में ये सेल्स शरीर में अलग-अलग हिस्सों में निष्क्रिय रह सकते हैं और बाद में एंटी-कैंसर ट्रीटमेंट पूरा होने के बाद गुणा होना शुरू हो जाते हैं, जिससे कैंसर फिर से लौट आता है।

    किन कैंसर के दोबारा होने का होता है खतरा?

    इसोफेगस, पेक्रियाज, गॉल ब्लैडर के कैंसर अन्य की तुलना में ज्यादा अग्रेसिव होते हैं और इनका दोबारा होने का खतरा भी ज्यादा होता है। इसके अलावा सीरस एपिथेलियल कैंसर (serous epithelial cancers) का भी दोबारा होने का खतरा ज्यादा होता है। कैंसर के दोबारा होने का खतरा इस बात पर निर्भर करता है कि निदान के समय कैंसर का स्टेज, कैंसर का ग्रेड, इलाज, उपचार के प्रति सहनशीलता कैसी था। हालांकि, ऊपर बताए गए कुछ कैंसर शुरुआती स्टेज में पता चलने के बाद भी लौटकर आ सकते हैं।

    वहीं, अगर बात करें ब्रेस्ट कैंसर की, तो ट्रिपल नेगेटिव या एचईआर 2 पॉजिटिव कैंसर मरीजों में इसके दोबारा होने का खतरा ज्यादा होता है। ये कैंसर आमतौर पर लिवर, फेपड़ों या ब्रेन में फिर से होता है। जबकि हार्मोन रिसेप्टर पॉजिटिव ब्रेस्ट कैंसर अक्सर देर से लौट कर आता है यानी यह इलाज पूरा होने के कुछ साल बाद लौटकर आता है और हड्डियों में होता है।

    कैंसर को दोबारा लौटने से कैसे रोके?

    भविष्य में कैंसर के दोबारा होने के खतरे को कम करने के लिए यह जरूरी है कि कैंसर का शुरुआती चरण में भी निदान किया जाए। साथ ही निदान के बाद व्यक्ति को जल्दी, सही औप पर्याप्त इलाज मिले।

    इसके अलावा नियमित स्क्रीनिंग होनी चाहिए और पहले दो वर्षों में तीन महीने का फॉलो-अप बिल्कुल भी मिल न करें। साथ ही कैंसर सर्वाइवर्स को लिक्विड बायोप्सी भी करवानी चाहिए। इसमें, स्कैन पर दिखाई देने से पहले ही कैंसर सेल्स का पता लगाया जा सकता है।

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