लिवर के लिए फायदेमंद है गुड प्रोटीन, कैंसर का खतरा टालने में भी हो सकता है मददगार
हाल ही में एक स्टडी में पता चला है कि गुड प्रोटीन कैंसर के खतरे को कम करने में मदद कर सकता है। सेल्स में गुड प्रोटीन की मात्रा बढ़ाकर और बैड प्रोटीन की मात्रा घटाकर कैंसर से बचा जा सकता है। यह खासतौर से लिवर कैंसर से बचाव में कारगर साबित हो सकता है।
जागरण, नई दिल्ली। बीते कुछ दशक में हमारे खान-पान की आदतों में बहुत बदलाव हुए हैं। पिज्जा, बर्गर, समोसा, कचौड़ी, फ्रैंच फ्राई के साथ ही प्रोसेस्ड फूड पर निर्भरता बढ़ी। इस तरह के व्यंजनों के लगातार सेवन से पांच प्रतिशत से ज्यादा फैट लिवर में जमा होने लगता है।
यही फैट लिवर की कोशिकाओं में सूजन, बैलूनिंग और आगे चलकर फाइब्रोसिस की वजह बनता है लिवर फाइब्रोसिस नियंत्रित न होने पर यह सिरोसिस और बाद में लिवर कैंसर में परिवर्तित हो जाता है। एम्स में वर्ष 2022 से 2024 तक पांच ग्रुप में 250 लोगों पर हुए अध्ययन में यह परिणाम सामने आया कि यदि कोशिका के गुड प्रोटीन (प्रोकायनेटिसिन - 1) को बढ़ाया जाए और बैड प्रोटीन (प्रोकायनेटिसिन - 2) को कंट्रोल करें तो इम्यून सिस्टम की टी- रेगुलेट्री (टी-रेग) सेल की संख्या में सुधार होगा।
साथ ही एंटी ऑक्सीडेंट जीन की सुरक्षा भी मजबूत होगी। इससे बीमारी की प्रगति को रोका या धीमा किया जा सकता है, जिससे सिरोसिस या लिवर कैंसर जैसे खतरनाक स्टेज तक पहुंचने से पहले इलाज संभव है।
यह स्टडी नेचर जर्नल के साइंटिफिक रिपोर्ट में 12 अगस्त को प्रकाशित हुई है। नॉन एल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज (एनएएफएलडी) के मामले में पांच प्रतिशत से अधिक फैट जमा होने पर लिवर की कोशिका में सूजन आने लगती है। इसके बाद लिवर के टिश्यू (ऊतक) फूलने लगते हैं, जिसे बैलूनिंग कहते हैं।
कई ऊतकों में बैलूनिंग होने पर आपस में ब्रिजिंग (जुड़ाव ) होने लगता है। आस-पास की सभी कोशिकाएं इससे जुड़कर क्लस्टर बना लेती हैं, जो लिवर फाइब्रोसिस बनाता है। यह स्थिति नॉन एल्कोहलिक स्टीटो हेपेटाइटिस (एनएएसएच) होती है। पर जब ज्यादा फाइब्रोसिस बनने लगता है तो यह सिरोसिस में चला जाता है। इसका इलाज समय पर न हो तो यह लिवर कैंसर यानी हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा में बदल जाता है। इसकी कोई दवा नहीं बनी है।
बैड प्रोटीन कोशिका में बढ़ाते हैं सूजन
एम्स के अध्ययन में पाया गया कि कोशिका में दो तरह के प्रोटीन प्रोकायनेटिसिन-1 (पीके-1) और प्रोकायनेटिसिन -2 (पीके - 2 ) होते हैं। दोनों में ही 40 प्रतिशत समानता होती है। फैटी लिवर के मामले में प्रोटीन पीके - 1 घटा और पीके - 2 बढ़ा मिला। पीके - 1 अच्छा प्रोटीन है, क्योंकि यह शरीर के इम्यून सिस्टम ( प्रतिरक्षा तंत्र) को संतुलित रखता है और सूजन को नियंत्रित करने में मदद करता है। इम्यून सिस्टम में ही टी-रेग (टी- रेगुलेट्री) सेल होते हैं, जिनकी संख्या भी मोटापे से ग्रसित लोगों में घटी मिली। इसके विपरीत पीके - 2 बैड प्रोटीन है, जो बीमारी में कोशिका की सूजन को बढ़ाता है। जब टी-रेग सेल की संख्या घटी तो लिवर का डैमेज भी बढ़ा।
पांच समूहों में मरीजों पर किया गया अध्ययन
मधुमेह, मेटाबोलिक सिंड्रोम, मधुमेह-मेटाबोलिक सिंड्रोम के साथ ही नॉन एल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज में ओबेस एनएएफएलडी और नॉन ओबेस एनएएफएलडी के पांच समूह बनाए गए। डिपार्टमेंट आफ लेबोरेटरी मेडिसन के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. श्याम प्रकाश के नेतृत्व में किए गए अध्ययन में गैस्ट्रोएंटरोलाजी विभाग के डॉ. शालीमार, मेडिसिन विभाग के डॉ. नवल किशोर विक्रम के साथ ही डॉ. मेधा व डॉ. शाहिद आदि ने सहयोग किया।
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