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    Shingles Awareness Week 2024: त्वचा से जुड़ी गंभीर बीमारी है शिंगल्स, इन लोगों को होता है इसका ज्यादा खतरा

    Updated: Thu, 29 Feb 2024 12:17 PM (IST)

    शिंगल्स एक ऐसी बीमारी है जिसमें त्वचा पर रैशेज हो जाते हैं और इनमें तेज दर्द के साथ जलन व चुभन होती रहती है। 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के साथ डायबिटीज हार्ट और किडनी के मरीज इसके ज्यादा शिकार होते हैं। इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने के मकसद से हर साल शिंगल्स जागरूकता सप्ताह मनाया जाता है।

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    Shingles Awareness Week 2024: क्या होती है शिंगल्स की समस्या और किन्हें होता है ज्यादा खतरा

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Shingles Awareness Week 2024 शिंगल्‍स (Shingles) त्वचा से जुड़ी दर्दनाक बीमारियों में से एक है, जो अक्सर कमजोर इम्युनिटी वाले लोगों मे देखने को मिलती है। 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के अलावा हार्ट, किडनी और डायबिटीज की बीमारी से जूझ रहे लोगों में शिंगल्स बीमारी होने का संभावना ज्यादा बनी रहती है, क्योंकि इन बीमारियों में व्यक्ति की इम्युनिटी धीरे-धीरे कमजरो होने लगती है। इस बीमारी को लेकर लोगों में जानकारी और जागरूकताकी दोनों की ही कमी है। जिस वजह से बढ़ते वक्त के साथ ये समस्या गंभीर रूप ले सकती है। इस खतरनाक बीमारी के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने के मकसद से हर साल ‘शिंगल्स जागरूकता सप्ताह’ मनाया जाता है, जो इस साल 26 फरवरी से 3 मार्च तक मनाया जा रहा है।

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    इन वजहों से होती है शिंगल्स की समस्या?

    शिंगल्स बीमारी के लिए वही वायरस जिम्मेदार है, जिससे चिकनपॉक्‍स होता है। चिकनपॉक्‍स का वायरस वेरिसेला ज़ोस्टर (Varicella Zoster) इसके ठीक होने के बाद भी मरीज के नर्व्स में लंबे समय तक बिना कोई नुकसान पहुंचाए पड़ा रहता है। यह दो से पांच दशकों तक या उससे भी ज्यादा समय तक ऐसे ही शरीर में पड़ा रह सकता है, लेकिन जैसे ही शरीर की इम्‍युनिटी कमज़ोर होने लगती है, ये वायरस फिर से जिंदा हो जाता है। जिस वजह से शिंगल्‍स हो जाता है। इसके चलते बॉडी पर रैशेज हो जाते हैं। इन रैशेज में चुभन, जलन के साथ दर्द भी होता रहता है। तनाव, चोट, कुछ दवाओं के रिएक्शन भी इन बीमारी के होने के अन्य कारणों में शामिल हैं। 

    हाल ही में ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन फार्मास्युटिकल्स (GSK Pharma) लिमिटेड ने शिंगल्स बीमारी को लेकर एक ग्लोबल सर्वे के आंकड़े जारी किए। सर्वे में शिंगल्स से जुड़े खतरे को लेकर 50 साल या इससे ज्यादा उम्र के लोगों के बीच जानकारी की कमी पता चला है। इस आयुवर्ग के लोगों में शिंगल्स बीमारी की आशंका ज्यादा रहती है।

    नतीजों में ये भी सामने आया है कि वैश्विक स्तर पर 86 प्रतिशत लोग इससे जुड़े खतरे को कम करके आंकते हैं। दुनियाभर में एक चौथाई (26 प्रतिशत) लोग मानते हैं कि 100 में से किसी एक व्यक्ति को ही उनके जीवन में शिंगल्स का खतरा होता है। 17 प्रतिशत लोग मानते हैं कि 1000 में से किसी 1 को शिंगल्स होने का खतरा है और 49 प्रतिशत मानते हैं कि उन्हें शिंगल्स होने का खतरा नहीं है। 

    सर्वेक्षण में शिंगल्स के कारण होने वाले दर्द के बारे में भी जागरूकता की कमी देखी गई। यह बीमारी आमतौर पर रैशेज़ के रूप में होती है। साथ ही सीने, पेट या चेहरे पर दर्दभरे चकत्ते हो जाते हैं। इसके कारण ऐंठन, जलन, चुभन का एहसास होता है।

    ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन फार्मास्युटिकल्स की एक्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट, मेडिकल अफेयर्स डॉ. रश्मि हेगड़े ने कहा, “सर्वेक्षण में मिले नतीजे 50 साल से ज्यादा उम्र के वयस्कों में शिंगल्स के खतरे को लेकर जागरूकता बढ़ाने की जरूरत को रेखांकित करते हैं। शिंगल्स बड़ी उम्र के लोगों की रोजाना की जिंदगी को बहुत ज्यादा प्रभावित कर सकता है और उन्हें बहुत ज्यादा असहजता का सामना करना पड़ सकता है। शिंगल्स जागरूकता सप्ताह में हम सभी को इस बात के लिए प्रोत्साहित करना चाहते हैं कि वे अपने डॉक्टर से बात करें और इस बीमारी के बारे में तथा इससे बचाव के तरीकों के बारे में विमर्श करें।”

    इन लोगों को होता है शिंगल्स का ज्यादा खतरा?

    जैसे-जैसे इंसान की औसत उम्र बढ़ती है, उसकी इम्युनिटी घटने लगती है जिस वजह से शिंगल्स होने का खतरा बढ़ जाता है। कोविड-19 के बाद वैसे शिंगल्स के मामलों में तेजी देखने को मिली है क्योंकि इस महामारी के चलते लोगों की इम्युनिटी कमजोर हुई है। दूसरा डायबिटीज, एचआईवी, कैंसर और किडनी या लिवर ट्रांसप्लांट मरीजों की भी इम्युनिटी होने लगती है इस वजह से इनमें भी शिंगल्स का खतरा बना रहता है। 

    बढ़ जाता है इन बीमारियों का खतरा

    शिंगल्स के चलते रैशेज वाली जगहों पर नर्व पेन होता है और ऐसा नहीं कि ये तुरंत ठीक हो जाता है, बल्कि रैशज ठीक होने के कई महीनों या सालों तक बना रह सकता है। डॉक्टर इसके लिए मरीज़ों को दवाइयों का सुझाव दे सकते हैं, लेकिन ये दवाइयां महंगी आती हैं। इसके अलावा, शिंगल्‍स के चलते रैशेज़ में सेकेंडरी बैक्‍टीरियल इन्फेक्शन होने की भी संभावना बनी रहती है। समय रहते इलाज न कराने पर मरीज अंधा हो सकता है, सुनने की क्षमता जा सकती है और मानसिक समस्याओं का भी शिकार हो सकता है। 

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    Pic credit- freepik