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    6 महीने से कम उम्र के बच्चों में मिला डायबिटीज का नया टाइप, वैज्ञानिकों ने की चौंकाने वाली खोज

    Updated: Fri, 10 Oct 2025 10:06 AM (IST)

    क्या आपने कभी सोचा है कि छह महीने से भी छोटे बच्चे को डायबिटीज हो सकती है? यह बात पढ़ने में भले ही अजीब लगे, लेकिन वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक ऐसी ही चौंकाने वाली खोज की है। उन्होंने नवजात शिशुओं में एक बिल्कुल ही नए प्रकार के डायबिटीज का पता लगाया है, जिसका कारण कोई बाहरी वजह नहीं, बल्कि खुद उनके डीएनए में छिपा हुआ है।

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    छह माह से कम उम्र के बच्चों में नए प्रकार के डायबिटीज का पता चला (Image Source: Freepik) 

    आइएएनएस, नई दिल्ली। अब तक माना जाता था कि डायबिटीज वयस्कों या बड़े बच्चों की बीमारी है, लेकिन हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक चौंकाने वाली खोज की है। छह महीने से कम उम्र के कुछ शिशुओं में डायबिटीज का एक बिल्कुल नया प्रकार पाया गया है। यह सामान्य कारणों से नहीं, बल्कि उनके डीएनए में हुए खास बदलावों की वजह से होता है।

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    जीन में छिपा है बीमारी का राज

    अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने पाया कि नवजात शिशुओं में होने वाले डायबिटीज के करीब 85 प्रतिशत मामलों के पीछे उनके जीन में गड़बड़ी होती है। इस नई खोज में टीएमईएम167ए नामक जीन को इस बीमारी से जोड़ा गया है। यह वही जीन है जिसमें म्यूटेशन होने पर शिशु के शरीर में इंसुलिन बनाने की प्रक्रिया प्रभावित होती है।

    डॉ. एलिसाडेफ्रैंको और उनकी टीम ने बताया कि इस अध्ययन ने हमें इंसुलिन के निर्माण और उसके स्राव से जुड़े जीनों को समझने का एक नया रास्ता दिखाया है। उन्होंने पाया कि टीएमईएम167जीन में हुए बदलाव केवल डायबिटीज ही नहीं, बल्कि कुछ न्यूरोलॉजिकल समस्याओं जैसे मिर्गी और माइक्रोसेफली (सिर का सामान्य से छोटा होना) से भी जुड़े हैं।

    कैसे हुई यह खोज?

    वैज्ञानिकों ने छह बच्चों पर विस्तृत अध्ययन किया। इन सभी बच्चों में डायबिटीज के लक्षण जन्म के कुछ ही महीनों के भीतर दिखाई देने लगे थे। स्टेम सेल तकनीक और जीनएडिटिंग के जरिए जब उनके डीएनए की जांच की गई, तो टीएमईएम167जीन में असामान्य परिवर्तन पाए गए।

    इसके बाद टीम ने लैब में इन कोशिकाओं पर प्रयोग किए। उन्होंने सामान्य और परिवर्तित जीन वाले दोनों प्रकार के स्टेम सेल्स को अग्न्याशय की बीटा कोशिकाओं में बदला- वही कोशिकाएं जो इंसुलिन बनाती हैं। परिणाम चौंकाने वाले थे: जिन कोशिकाओं में टीएमईएम167जीन बदला हुआ था, वे इंसुलिन बनाने में असमर्थ थीं।

    क्यों खास है यह खोज?

    यह अध्ययन सिर्फ नवजात डायबिटीज को समझने के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण इंसुलिन उत्पादन प्रक्रिया को जानने के लिए भी अहम है। डायबिटीज की अधिकतर दवाएं इंसुलिन के उत्पादन या उसकी क्रिया पर असर डालती हैं। अगर इस नए जीन की भूमिका पूरी तरह समझ ली गई, तो भविष्य में ऐसी दवाएं बनाई जा सकेंगी जो मूल कारण, यानी जीन स्तर पर बीमारी को नियंत्रित कर सकें।

    डॉ. फ्रैंको के अनुसार, “यह खोज हमें न केवल दुर्लभ नवजात डायबिटीज को समझने में मदद करेगी, बल्कि सामान्य टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज की गुत्थियों को सुलझाने में भी उपयोगी साबित हो सकती है।”

    वैज्ञानिक अब टीएमईएम167जीन के कार्य और इसके अन्य स्वास्थ्य प्रभावों पर और गहराई से शोध करने की योजना बना रहे हैं। उनका मानना है कि इस जीन की बेहतर समझ से नवजात शिशुओं के लिए समय पर निदान और प्रभावी इलाज संभव होगा।

    डायबिटीज का यह नया रूप यह साबित करता है कि हमारे जीन हमारे स्वास्थ्य पर कितना गहरा असर डालते हैं। शिशुओं में इतने शुरुआती चरण में इस बीमारी की पहचान न केवल चिकित्सा विज्ञान के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, बल्कि यह आने वाले समय में अनगिनत बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है।

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