देश में हर साल बढ़ रहे Oral Cancer के मामले, डॉक्टर बोले- 70% मरीजों को इलाज मिलने में होती है देर
एक समय था जब Oral Cancer को सिर्फ बुजुर्गों से जोड़ा जाता था लेकिन अब यह युवाओं में भी तेजी से फैल रहा है। डॉक्टर बताते हैं कि 70% मरीजों को सही इलाज तब मिलता है जब बहुत देर हो चुकी होती है। सवाल यह है कि ऐसा क्यों हो रहा है और हम इससे कैसे बच सकते हैं?

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। भारत में मुंह का कैंसर (Oral Cancer) एक बड़ी चुनौती बन चुका है। दुनिया भर में जितने भी ओरल कैंसर के मामले सामने आते हैं, उनमें से लगभग एक-तिहाई भारत में दर्ज होते हैं। यही नहीं, हमारे देश में यह कैंसर सभी तरह के कैंसर मामलों का लगभग 30 से 40 प्रतिशत हिस्सा बनाता है, जबकि पश्चिमी देशों में यह केवल 4 से 5 प्रतिशत तक ही सीमित है। चिंताजनक यह है कि भारत में 60 से 70 प्रतिशत मरीजों में यह बीमारी तब तक सामने नहीं आती, जब तक वह तीसरे या चौथे स्टेज में न पहुंच जाए।
आंकड़े बताते हैं गंभीर हालात
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल लगभग 77,000 नए ओरल कैंसर के मरीज मिलते हैं और इनमें से 52,000 से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है। साल 2018 में ही देश में 1.19 लाख से ज्यादा नए मुंह के कैंसर के मामले दर्ज हुए और 72,000 से ज्यादा लोगों की जान चली गई। यह आंकड़े भारत में कैंसर से होने वाली कुल मौतों का लगभग 9 प्रतिशत हिस्सा हैं।
देर से क्यों होती है पहचान?
ओरल कैंसर के इतने देर से पकड़े जाने के पीछे कई वजहें हैं:
- तंबाकू और सुपारी का सेवन: बिना धुएं वाला तंबाकू, गुटखा, पान-मसाला और सुपारी अभी भी प्रमुख कारण हैं।
- जागरूकता की कमी: लोग शुरुआती लक्षणों जैसे सफेद या लाल धब्बे, लंबे समय तक न भरने वाले छाले या बार-बार गले व जीभ में दर्द को नजरअंदाज कर देते हैं।
- स्वास्थ्य सेवाओं में देरी: जांच और निदान की प्रक्रिया अक्सर लंबी हो जाती है। एक अध्ययन में पाया गया कि केरल में करीब 58% मरीजों को कैंसर की सही पहचान में 30 दिन से भी ज्यादा लग गए।
- कम उम्र में शुरुआत: अब युवा वर्ग में भी ओरल कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।
- स्क्रीनिंग सुविधाओं की कमी: ज्यादातर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में मुंह के कैंसर की नियमित जांच या प्रशिक्षित डॉक्टर उपलब्ध नहीं होते।
क्या है एक्सपर्ट की राय?
डॉ. मनीष सिंघल (सीनियर कंसल्टेंट, मेडिकल ऑन्कोलॉजी, इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स) का कहना है कि "ज्यादातर मरीज तब अस्पताल पहुंचते हैं जब उनका कैंसर तीसरे या चौथे स्टेज में होता है। इस स्थिति में इलाज मुश्किल हो जाता है। अगर शुरुआती अवस्था में कैंसर का पता चल जाए तो पांच साल तक जीवित रहने की संभावना 90% तक होती है, जबकि देर से पकड़ने पर यह केवल 20% रह जाती है।"
डॉक्टर बताते हैं कि महीने में एक बार शीशे के सामने मुंह की जांच करना और किसी भी असामान्य लक्षण को गंभीरता से लेना सही इलाज की दिशा में बेहद मददगार हो सकता है।
क्या हो सकता है समाधान?
- भारत में इस समस्या से निपटने के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी हैं:
- गांव-गांव और शहर-शहर तक जागरूकता अभियान चलाना।
- प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर मानक ओरल स्क्रीनिंग प्रक्रिया को लागू करना।
- तंबाकू और सुपारी जैसी चीजों पर कड़ाई से नियंत्रण और नशा-निवारण सेवाएं उपलब्ध कराना।
- राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री को मजबूत बनाना ताकि समय रहते आंकड़े और डेटा मिलते रहें।
कम लागत वाली नई तकनीक और एआई आधारित समाधान विकसित करना ताकि कैंसर का शुरुआती स्तर पर ही पता लगाया जा सके।
ओरल कैंसर रोका भी जा सकता है और शुरुआती अवस्था में पकड़े जाने पर पूरी तरह ठीक भी किया जा सकता है। जरूरत है जागरूकता, नियमित जांच और तंबाकू से दूरी बनाने की। अगर हम समय रहते कदम उठाए, तो आज जो 70% मामले देर से सामने आते हैं, उन्हें शुरुआती स्टेज पर ही पहचानकर हजारों लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती है।
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