दबे-पांव सेहत को खोखला कर रहे Non-Stick बर्तन! नेशनल न्यूट्रिशन इंस्टिट्यूट ने बताई इनकी काली सच्चाई
ज्यादातर लोग किचन के लिए बर्तन खरीदते समय नॉन-स्टिक कड़ाही या पैन को इसलिए चुनते हैं क्योंकि इनमें कम तेल लगता है ये आसानी से धुल जाते हैं और देखने में भी अच्छे लगते हैं लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये बर्तन हमारी सेहत के लिए किस कदर नुकसानदायक (Non-Stick Cookware Side Effects) साबित हो सकते हैं? आइए इस आर्टिकल में जानते हैं।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Non-Stick Cookware Side Effects: हममें से ज्यादातर लोग जब भी किचन का सामान खरीदने जाते हैं, तो नॉन-स्टिक कड़ाही या पैन को पहली पसंद मानते हैं। वजह साफ है- खाना पकाने के लिए ज्यादा तेल का इस्तेमाल नहीं करना पड़ता और इन्हें धोने में भी काफी आसानी होती है। ऐसे में, क्या आपने कभी सोचा है कि ये चमकते-दमकते बर्तन हमारी सेहत को चुपचाप नुकसान पहुंचा रहे हैं (Dangers of Non-Stick Utensils)?
जी हां, भारत के नेशनल न्यूट्रिशन इंस्टिट्यूट (NIN) ने 2024 की अपनी नई गाइडलाइंस में साफतौर पर कहा है कि नॉन-स्टिक बर्तन अगर ज्यादा तापमान पर इस्तेमाल किए जाएं या उनकी कोटिंग घिस जाए, तो ये हानिकारक रसायन (Teflon Poisoning) छोड़ सकते हैं, जो शरीर के लिए जहर जैसे हो सकते हैं। इसके विपरीत, हमारी परंपराओं में इस्तेमाल होने वाले मिट्टी के बर्तनों को सबसे सुरक्षित और सेहतमंद बताया गया है।
मिट्टी के बर्तन: पुराने हैं, लेकिन सुरक्षित
NIN की रिपोर्ट के अनुसार, मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाना न सिर्फ सुरक्षित है, बल्कि यह खाने के पोषक तत्वों को भी बचाए रखता है। इनमें खाना धीमी आंच पर पकता है, जिससे जरूरत से ज्यादा तेल की जरूरत नहीं पड़ती। साथ ही, मिट्टी की खासियत होती है कि यह खाने में मौजूद स्वाद और पोषण दोनों को बनाए रखती है।
गांवों में आज भी लोग मिट्टी के चूल्हों पर मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाते हैं, और अगर आपने कभी ऐसा खाना खाया है, तो आप जानते होंगे कि उसका स्वाद कितना अलग और लाजवाब होता है। अब विज्ञान भी यही कह रहा है कि मिट्टी के बर्तन सिर्फ स्वाद के लिए नहीं, सेहत के लिए भी बेहतरीन हैं।
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नॉन-स्टिक बर्तन: सुविधा के साथ खतरा भी ज्यादा
नॉन-स्टिक बर्तन पिछले कुछ दशकों में शहरी रसोइयों का हिस्सा बन गए हैं। कम तेल में खाना बनता है, जलता नहीं और साफ भी जल्दी हो जाता है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी कमी है इसका कोटिंग, जिसे टेफ्लॉन कहते हैं। यह कोटिंग अगर ज्यादा तापमान पर गर्म हो जाए या खुरच जाए, तो इससे जहरीले रसायन निकल सकते हैं जो शरीर में पहुंचकर हार्मोनल असंतुलन, थायरॉइड की परेशानी और यहां तक कि कैंसर जैसी बीमारियों की वजह बन सकते हैं।
NIN ने सलाह दी है कि अगर आपके नॉन-स्टिक बर्तन की सतह घिस चुकी है, तो उसे तुरंत बदल देना चाहिए और बिना सोचे-समझे बार-बार इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
धातु के बर्तन – कब सुरक्षित और कब नहीं?
NIN ने यह भी बताया है कि हर धातु का बर्तन खाना पकाने या स्टोर करने के लिए सही नहीं होता:
- एलुमिनियम: हल्का जरूर होता है, लेकिन एसिडिक चीजों (जैसे इमली वाली चटनी या सांभर) को इसमें रखना खतरनाक हो सकता है।
- पीतल या तांबा (बिना टिन की परत के): ऐसे बर्तनों में खट्टी चीजें रखना सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
- लोहे के बर्तन: कुछ चीजों के लिए अच्छे हैं, लेकिन देखरेख की जरूरत होती है।
- स्टेनलेस स्टील: सबसे संतुलित और सुरक्षित विकल्प माना गया है, खासकर रोजमर्रा के इस्तेमाल के लिए।
ग्रेनाइट कोटेड कुकवेयर
NIN के अनुसार, ग्रेनाइट कोटेड बर्तन तब तक सुरक्षित हैं, जब तक उनमें टेफ्लॉन कोटिंग न हो। ऐसे बर्तनों को मध्यम या मध्यम-तेज आंच पर इस्तेमाल करना चाहिए। ये नॉन-स्टिक का थोड़ा बेहतर और सुरक्षित ऑप्शन माने जा सकते हैं, खासकर उन लोगों के लिए जो मॉडर्न बर्तनों को छोड़ना नहीं चाहते।
बता दें, खाना पकाने की प्रक्रिया सिर्फ स्वाद और सुविधा तक सीमित नहीं है। आज के समय में जब मोटापा, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं, इसलिए NIN का मानना है कि हमें अपनी रसोई की आदतों पर भी ध्यान देना चाहिए।
गाइडलाइंस में यह भी कहा गया है:
- चीनी का सेवन दिन में सिर्फ 20-25 ग्राम (यानी 1-1.5 चम्मच) तक सीमित करें।
- तेल का इस्तेमाल कम से कम करें और डीप फ्राई फूड्स से बचें।
- एयर फ्रायर या ग्रेनाइट बर्तनों का यूज करें, ताकि बिना ज्यादा तेल के भी स्वाद बना रहे।
रसोई से होती है सेहत की शुरुआत
NIN की गाइडलाइंस हमें एक अहम बात सिखाती हैं कि हमारी सेहत सिर्फ इस बात पर निर्भर नहीं करती कि हम क्या खा रहे हैं, बल्कि इस पर भी कि हम उसे किस तरह और किस बर्तन में पका रहे हैं।
मिट्टी के बर्तन भले ही पुराने जमाने की चीज लगें, लेकिन आज के वैज्ञानिक और स्वास्थ्य विशेषज्ञ उन्हें फिर से अपनाने की सलाह दे रहे हैं और यही समय है कि हम भी आधुनिकता के नाम पर सेहत से समझौता न करें।
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