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    लक्षण दिखने से 10 साल पहले ही पता चल सकेगा अल्जाइमर का खतरा? वैज्ञानिकों ने बनाया नया मॉडल

    Updated: Sat, 15 Nov 2025 07:35 AM (IST)

    क्या आपने कभी सोचा है कि अगर हमें किसी बड़ी बीमारी के आने का खतरा उसके लक्षण दिखने से पहले ही पता चल जाए, तो कैसा रहेगा? जी हां, मेडिकल साइंस की दुनिया में अब यह संभव होता दिख रहा है, खासकर अल्जाइमर रोग (Alzheimer's Disease) के मामले में। आइए, विस्तार से जानते हैं इसके बारे में।  

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    वैज्ञानिकों ने विकसित किया अल्जाइमर के जोखिम को मापने वाला नया टूल (Image Source: Freepik)

    प्रेट्र, नई दिल्ली। अल्जाइमर जैसी गंभीर बीमारी अक्सर तब तक पता नहीं चलती, जब तक इसके लक्षण सामने न आने लगें- जैसे भूलने की आदत, सोचने की क्षमता का कम होना या रोजमर्रा के कामों में कठिनाई, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने एक ऐसा भविष्यवाणी मॉडल तैयार किया है, जो इन समस्याओं के शुरू होने से लगभग 10 साल पहले ही जोखिम का अनुमान लगा सकता है। यह खोज खास इसलिए है क्योंकि इससे समय रहते सावधानी बरतकर बीमारी की प्रगति को धीमा किया जा सकता है।

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    Alzheimer

    क्या है यह नया उपकरण?

    अमेरिका स्थित मेयो क्लिनिक के शोधकर्ताओं ने एक उन्नत उपकरण विकसित किया है, जिसे एक भविष्यवाणी मॉडल की तरह बनाया गया है। यह उपकरण कई महत्वपूर्ण कारकों को एक साथ जोड़कर यह अंदाजा लगाता है कि किसी व्यक्ति में आगे चलकर हल्का संज्ञानात्मक हानि या डिमेंशिया विकसित होने की संभावना कितनी है।

    मॉडल में मुख्य रूप से ये कारक शामिल किए गए:

    • उम्र और लिंग
    • आनुवंशिक जोखिम, जैसे APOE e4 वेरिएंट
    • मस्तिष्क में एमिलॉयड प्रोटीन का स्तर, जिसे अल्जाइमर का प्राथमिक संकेत माना जाता है

    पीईटी स्कैन से हासिल सूचनाएं

    इन सभी संकेतकों को मिलाकर एक ऐसा जोखिम स्तर तैयार किया जाता है, जो किसी व्यक्ति के 10 वर्षों या पूरे जीवनकाल में संज्ञानात्मक गिरावट की संभावना बताता है।

    5,858 लोगों के डेटा पर आधारित अध्ययन

    यह अध्ययन द लैन्सेट न्यूरोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं ने 5,858 प्रतिभागियों के लंबे समय से एकत्र किए गए डेटा का विश्लेषण किया। ये आंकड़े अमेरिका के मिनेसोटा में चल रहे Mayo Clinic Study of Aging प्रोजेक्ट से लिए गए थे, जिसमें दशकों से मस्तिष्क स्वास्थ्य और उम्र बढ़ने के संबंध को लेकर शोध किया जा रहा है।

    • APOE e4 जीन वाले लोगों- चाहे पुरुष हों या महिलाएं उनमें जीवनभर अल्जाइमर का जोखिम अधिक पाया गया।
    • महिलाएं उम्रभर अल्जाइमर या हल्की संज्ञानात्मक हानि के प्रति पुरुषों की तुलना में अधिक संवेदनशील हो सकती हैं।
    • PET स्कैन में एमिलॉयड स्तर जितना अधिक पाया गया, भविष्य में डिमेंशिया या स्मृति समस्याओं का खतरा उतना ही अधिक देखा गया।

    कैसे करता है मदद?

    पीईटी स्कैन की मदद से मस्तिष्क में जमा एमिलॉयड प्रोटीन को पहचाना जा सकता है। यह वही प्रोटीन है, जो अल्जाइमर से जुड़े शुरुआती बदलावों को दर्शाता है। नया उपकरण इस जानकारी को अन्य कारकों के साथ मिलाकर एक स्पष्ट जोखिम प्रोफाइल तैयार करता है।

    इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि:

    • अगले 10 वर्षों में किसी व्यक्ति में हल्की संज्ञानात्मक हानि विकसित होगी या नहीं
    • या फिर उसके जीवनकाल में डिमेंशिया होने की संभावना कितनी है

    इस तरह यह उपकरण डॉक्टरों और रोगियों, दोनों को यह समझने में मदद करता है कि कब हस्तक्षेप शुरू करना चाहिए- जैसे दवाइयां, नियमित मानसिक व्यायाम, शारीरिक सक्रियता या जीवनशैली में परिवर्तन।

    डॉक्टरों के लिए एक बड़ा कदम

    शोध टीम के अनुसार, यह मॉडल भविष्य में व्यक्तिगत देखभाल को बेहतर बनाने में अहम साबित हो सकता है। जैसे कोलेस्ट्रॉल का स्तर देखकर हार्ट अटैक का खतरा समझा जाता है, उसी तरह यह उपकरण भी व्यक्ति-विशेष के मस्तिष्क स्वास्थ्य का अंदाजा लगाने में मदद करेगा।

    हालांकि यह अभी एक शोध आधारित उपकरण है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह अल्जाइमर की शुरुआती पहचान में एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।

    अल्जाइमर जैसी बीमारी का अभी कोई पूर्ण इलाज नहीं है, लेकिन शुरुआत में जोखिम का पता चल जाए तो इसकी प्रगति को काफी हद तक धीमा किया जा सकता है। मेयो क्लिनिक द्वारा विकसित यह नया उपकरण भविष्य में मस्तिष्क स्वास्थ्य की निगरानी को अधिक सटीक और व्यक्तिगत बना सकता है, जिससे लोगों को समय रहते कदम उठाने में मदद मिलेगी।

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