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    लिवर, दिल और जोड़ों को भारी नुकसान पहुंचाता है मोटापा, डॉक्टर बोले- बन सकता है 5 बीमारियों की जड़

    Updated: Mon, 01 Dec 2025 01:51 PM (IST)

    अक्सर लोग मोटापे को सिर्फ खाने की आदतों या बाहरी रूप-रंग से जोड़ते हैं, लेकिन इसकी असली समस्या शरीर के अंदर धीरे-धीरे होने वाले बदलावों से शुरू होती है। डॉ. विवेक बिंदल बताते हैं कि बढ़ा हुआ बॉडी फैट हार्मोन का संतुलन बिगाड़ता है, सूजन बढ़ाता है, ऊर्जा के उपयोग में रुकावट डालता है और कई बीमारियों का जोखिम पैदा करता है।

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    सिर्फ मोटापे तक सीमित नहीं है बढ़ते वजन का खतरा (Image Source: Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। वजन बढ़ना सिर्फ कुछ किलो बढ़ने भर की बात नहीं, बल्कि यह शरीर के अंदर चल रही एक ऐसी खामोश जंग है, जिसका असर हम देर से समझ पाते हैं। दरअसल, जब पेट के आसपास चर्बी जमा होती है, तो दिखने में भले ही ज्यादा फर्क न पड़े, लेकिन अंदर-ही-अंदर हमारे हार्मोन बदल रहे होते हैं, सूजन बढ़ रही होती है और कई गंभीर बीमारियों की नींव पड़ रही होती है। जी हां, सही पढ़ा आपने! यह एक मेडिकल कंडीशन है जो बिना संकेत दिए शरीर को कई खतरनाक बीमारियों की तरफ धकेल सकती है।

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    डॉ. विवेक बिंदल का कहना है कि मोटापे का असर इतना गहरा है कि कभी-कभी बीमारियों के लक्षण दिखने से कई साल पहले वह शरीर की कार्यप्रणाली को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देता है। इसलिए यह समझना बेहद जरूरी है कि बढ़ते वजन और 5 बड़ी बीमारियों (Obesity Health Risks) के बीच क्या सीधा संबंध है- क्योंकि इससे जुड़े रिस्क फैक्टर्स को समझना ही मोटापे बचने की पहली और सबसे अहम सीढ़ी है।

    obesity risk factors

    (Image Source: Freepik)

    टाइप-2 डायबिटीज

    पेट और कमर के आसपास जमा फैट इंसुलिन के प्रति शरीर की संवेदनशीलता को कम कर देता है। इसका मतलब है कि शरीर इंसुलिन का इस्तेमाल ठीक से नहीं कर पाता, जिससे ब्लड शुगर धीरे-धीरे बढ़ने लगता है। मेडिकल दृष्टि से फैट कोशिकाएं सिर्फ चर्बी का भंडार नहीं होतीं, वे ऐसे रसायन भी छोड़ती हैं जो इंसुलिन के कामकाज को बिगाड़ देते हैं। यही कारण है कि कई लोग भोजन नियंत्रित करने के बावजूद शुगर लेवल में उतार-चढ़ाव महसूस करते हैं।

    हालांकि, अच्छी बात यह है कि सिर्फ 5–10% वजन कम करने से ही ब्लड शुगर कंट्रोल में बड़ा सुधार देखा जा सकता है।

    हार्ट डिजीज

    मोटापा दिल की बीमारियों, हाई ब्लड प्रेशर और हार्ट फेलियर का बड़ा कारण माना जाता है। बॉडी मास इंडेक्स (BMI) बढ़ने के साथ दिल पर दबाव भी बढ़ता जाता है।

    दिल को एक बड़े शरीर में खून पंप करने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। दूसरी तरफ, बॉडी फैट धमनियों में जमा होकर प्लाक बनाता है, जिससे ब्लड फ्लो रुक सकता है। यही वजह है कि आजकल कम उम्र में भी हाई कोलेस्ट्रॉल और हाई BP की समस्या तेजी से बढ़ रही है। समय रहते इलाज न मिले तो यह स्थिति हार्ट अटैक या स्ट्रोक का रूप ले सकती है।

    नियमित ब्लड टेस्ट, ECG और BP मॉनिटरिंग इन जोखिमों को समय पर पहचानने के लिए बेहद जरूरी हैं।

    कैंसर

    कई शोध बताते हैं कि मोटापा कई तरह के कैंसर के जोखिम को बढ़ाता है, जिनमें स्तन, कोलन, गर्भाशय, किडनी और इसोफैगल कैंसर शामिल हैं। इसके पीछे कई कारण होते हैं:

    • शरीर में एस्ट्रोजेन का स्तर बढ़ जाना
    • लगातार होने वाली सूजन
    • कोशिकाओं के विकास पर प्रभाव

    मेनोपॉज के बाद वजन बढ़ने पर महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। वहीं पुरुषों और महिलाओं- दोनों में अंगों के आसपास जमा विसरल फैट खास तौर पर खतरनाक माना जाता है, क्योंकि यह ऐसे हार्मोन और प्रोटीन्स बनाता है जो कैंसर को बढ़ावा देते हैं।

    overweight side effects

    (Image Source: Freepik)

    लिवर डिजीज

    नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज (NAFLD) आज लिवर से जुड़ी सबसे आम समस्याओं में से एक है। यहां तक कि उन लोगों में भी जो शराब को हाथ तक नहीं लगाते हैं। जी हां, डॉक्टर का कहना है कि लिवर कोशिकाओं में ज्यादा फैट जमा होने लगता है, जिससे सूजन और आगे चलकर फाइब्रोसिस यानी स्कारिंग होने लगती है। यदि समय पर ध्यान न दिया जाए तो यह सिर्रोसिस या लिवर फेलियर तक पहुंच सकता है।

    रिपोर्ट्स में पाया गया है कि मोटापे से ग्रस्त 70–90% लोगों में फैटी लिवर पाया जाता है, और लगभग 30% मामलों में यह गंभीर स्टेज तक पहुंच सकता है। चिंताजनक बात यह है कि बच्चों और किशोरों में भी यह समस्या तेजी से बढ़ रही है, जो बदलते लाइफस्टाइल का संकेत है।

    बता दें, वजन कंट्रोल करना NAFLD से बचाव का सबसे प्रभावी तरीका है।

    ऑस्टियोआर्थराइटिस

    जोड़ों का दर्द सिर्फ उम्र या कमजोरी की वजह से नहीं बढ़ता- वजन इसमें बड़ी भूमिका निभाता है। हर एक एक्स्ट्रा किलो वजन घुटनों पर लगभग चार गुना ज्यादा दबाव डालता है। धीरे-धीरे यह कार्टिलेज को घिसने लगता है, जिससे लंबे समय तक दर्द, अकड़न और चलने-फिरने में कठिनाई होने लगती है।

    वजन कम करने के साथ हल्के मसल-हेल्थ वाली एक्सरसाइज शामिल करने से दर्द और ऐंठन में काफी राहत मिल सकती है और कई बार लगातार चलने वाली दवाओं की जरूरत भी कम हो जाती है।

    -डॉ. विवेक बिंदल (वरिष्ठ निदेशक एवं विभागाध्यक्ष - मैक्स इंस्टीट्यूट ऑफ मिनिमल एक्सेस, बेरिएट्रिक एवं रोबोटिक सर्जरी, मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, वैशाली) से बातचीत पर आधारित

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