चलते-फिरते चोरी करने की आदत ‘क्लेप्टोमेनिया’ है, जानें क्या है इसका उपचार
चोरी की लत एक मनोवैज्ञानिक बीमारी है जिसका नाम क्लेप्टोमेनया है। इस बीमारी के लक्षण अक्सर टीनएज में दिखने लगते हैं।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। आपने देखा और सुना होगा कि किस तरह कुछ लोगों में चलते-फिरते चोरी करने की आदत होती है। सुखी-संपन्न परिवार के लोगों को भी यह आदत हो सकती है। दरअसल ये एक मनोवैज्ञानिक बीमारी है, जिसका नाम क्लेप्टोमेनया है और जिसके लक्षण अक्सर टीनएज में दिखने लगते हैं।
इस बीमारी से पीड़ित लोगों को चोरी की लत लग जाती है, और उस चीज को करने में उन्हें काफी खुशी मिलती है। क्लेप्टोमेनिया से ग्रसित व्यक्ति किसी भी छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी चीज को सिर्फ खुशी के लिए चुरा लेते हैं। इस डिसऑर्डर से ग्रसित लोगों की सबसे अच्छी बात ये है कि ये लोग किसी का पर्स, पैसे नहीं चुराते या किसी के घर में जाकर चोरी नहीं करते हैं।
वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि ब्रेन से निकलने वाले सेरोटोनिन और डोपामाइन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर्स व्यक्ति की भावनाओं और व्यवहार को नियंत्रित करते हैं। इन दोनों की कमी के कारण व्यक्ति को ऐसी समस्या हो सकती है। किसी व्यक्ति में पहले से बॉर्डर लाइन पर्सनैलिटी, ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसॉर्डर, बाइपोलर डिसॉर्डर और एंग्ज़ायटी के लक्षण मौज़ूद हों, तो उसमें क्लेप्टोमेनिया की आशंका बढ़ जाती है।
आम चोरों से कैसे अलग होते हैं ये लोग? आम चोरों और क्लेप्टोमैनिक लोगों में एक बड़ा फर्क होता है। दरअसल चोर अपनी जरूरत का सामाना ही चुराता है, लेकिन एक क्लेप्टोमैनिक व्यक्ति बहुत बार ऐसा सामना चुराता है, जो उसकी जरूरत का नहीं होता और बहुत बार वह सामान चुराने के बाद उसे फेंक भी देता है, क्योंकि वह सामान उसने सिर्फ अपने अंदर उठने वाली उस इच्छा को शांत करने के लिए उठाया था, जो उसे चोरी करने के लिए मजबूर करती है।
साइकॉलोजिस्ट बताते हैं कि ऐसे लोगों के मन में चोरी करते हुए पकड़े जाने का डर भी खूब होता है और उन्हें चोरी करने के बाद अपनी हरकत पर शर्मिंदगी भी महसूस होती है। लेकिन कुछ अंतराल के बाद उनके अंदर चोरी की वही इच्छा जाग्रत हो जाती है। होटल से चम्मच और तौलिए जैसा सामान चुराने वाले बहुत लोग किसी लालच में नहीं, बल्कि इस बीमारी से पीड़ित होने के चलते ऐसी हरकतें करते हैं।
किसी भी उम्र में हो सकती है ये बीमारी- यह बीमारी किसी भी आयु में हो सकती है। यह बचपन से लेकर जवानी तक और कम मात्रा में उम्रदराज व्यक्तियों में भी देखने को मिल जाती है। इसकी पहचान केवल बीमारी के लक्षणों के द्वारा ही की जाती है। बीमारी को पहचानने के लिए कोई जांच नहीं होती है। ऐसी स्थितियों की सूची जिनके प्रभाव से क्लैप्टोमेनिया की स्थिति उभर आती है, की समीक्षा करनी चाहिए। यह बिना उपचार के अपने आप ठीक नहीं होती है। यह लंबे समय तक और लगातार चलने वाली स्थिति होती है। इसका उपचार दवाओं एवं मनोचिकित्सा द्वारा किया जाता है। अभी तक इसका एकदम सही उपचार नहीं मिल पाया है।
क्या है उपचार- अगर लक्षणों को पहचान कर सही समय पर उपचार शुरू किया जाए तो इससे मरीज़ को शीघ्र स्वस्थ होने में मदद मिलती है। क्लेप्टोमेनिया एक जटिल मनोरोग है, क्योंकि इसमें डिप्रेशन, बॉर्डर लाइन पर्सनैलिटी, ओसीडी जैसी कई अन्य समस्याओं के भी लक्षण मौज़ूद होते हैं। इसलिए काउंसलिंग और साइकोथैरेपी के साथ मरीज़ को दवाएं भी दी जाती हैं। समस्या दूर होने में एक साल से अधिक समय लग सकता है। उसके बाद भी क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट के सभी निर्देशों का पालन करना चाहिए।
Written By Shahina Noor