बच्चों में बढ़ रहा नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर, कहीं आपका दिया खाना तो नहीं बन रहा बीमारी की वजह?
आजकल बच्चों में एक खतरनाक बीमारी तेजी से फैल रही है जिसका नाम है ‘नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज’ (NAFLD)। नाम पढ़कर चौंकिए मत क्योंकि इसका शराब से कोई लेना-देना नहीं है। यह बीमारी सीधे तौर पर हमारे लाइफस्टाइल और खान-पान से जुड़ी है। आइए एक्सपर्ट की मदद से जानते हैं कि किस तरह का खानपान इसकी वजह बनता है।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। कभी फैटी लिवर को केवल शराब पीने वालों की बीमारी माना जाता था, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। जी हां, आज यह समस्या छोटे बच्चों तक में देखने को मिल रही है। शोध बताते हैं कि लगभग 10% बच्चे नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर (Non-Alcoholic Fatty Liver Disease) से प्रभावित हो रहे हैं। सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?
बच्चों की थाली में छिपा जहर
हम सोचते हैं कि बच्चों को सीरियल्स, दही या ग्रेनोला बार्स खिलाकर हम उन्हें हेल्दी बना रहे हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि इनमें छिपा होता है हाई फ्रक्टोज कॉर्न सिरप, यानी मीठा जहर। यह शरीर में जाते ही सीधे लिवर में पहुंचकर चर्बी में बदल जाता है। धीरे-धीरे लीवर इंसुलिन हार्मोन पर रिएक्शन देना बंद कर देता है और शुगर प्रोसेस करना मुश्किल हो जाता है।
शुरुआती लक्षणों पर ध्यान देना जरूरी
जब लिवर पर ज्यादा दबाव पड़ता है, तो बच्चे थकान महसूस करने लगते हैं। कई बार खाने के तुरंत बाद ही उनींदापन या कमजोरी दिखती है। गर्दन पर काले धब्बे पड़ना भी इसका एक संकेत हो सकता है। अगर इस पर समय रहते ध्यान न दिया गया, तो आगे चलकर बच्चों में डायबिटीज, पीसीओडी/पीसीओएस, थायरॉयड और अन्य हार्मोनल समस्याएं विकसित हो सकती हैं।
फैटी लिवर से बचाव के आसान तरीके
- पैक्ड जूस से दूरी बनाइए: बच्चों को बोतलबंद जूस की जगह असली फल खिलाइए। असली फलों में फाइबर और प्राकृतिक शुगर होती है, जो सेहतमंद है।
- फाइबर से भरपूर भोजन दें: साबुत अनाज, सब्जियां और दालें बच्चों की थाली का हिस्सा बनाइए। फाइबर ब्लड शुगर को संतुलित रखने और भूख पर काबू करने में मदद करता है।
- सही खानपान की आदत डालें: हर दो घंटे पर बार-बार स्नैक देने की जगह पौष्टिक और बैलेंस डाइट पर ध्यान दें।
क्यों जरूरी है जागरूकता?
दुर्भाग्य से फैटी लिवर जैसी गंभीर समस्या पर कई डॉक्टर शुरुआती स्तर पर ध्यान ही नहीं देते। यही कारण है कि परिवार और माता-पिता को खुद सतर्क रहना होगा। अगर आज से ही बच्चों के खाने की आदतों को सुधारा जाए, तो कल वे गंभीर बीमारियों से बच सकते हैं।
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