इनएक्टिव लाइफस्टाइल के कारण बढ़ रहे हैं डिमेंशिया के मामले, केवल 10% को ही मिलता है वक्त पर इलाज
हर साल 21 सितंबर को वर्ल्ड अल्जाइमर डे (World Alzheimers Day 2025) मनाया जाता है। यह दिमाग से जुड़ी एक बीमारी है जो ज्यादातर बुजुर्गों को होती है। हालांकि अब इसके मामले और ज्यादा बढ़ने लगे हैं। दुनियाभर में लगभग 88 लाख लोग अल्जाइमर से पीड़ित हैं। हालांकि खतरनाक बात यह है कि समय पर इसका इलाज नहीं मिल पाता है।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। सेवानिवृत्ति के बाद निष्क्रिय जीवन और बदलती जीवनशैली की वजह से देश में डिमेंशिया के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के न्यूरोलाजी एवं एनाटमी विभाग के विशेषज्ञों का कहना है कि वर्तमान में भारत में तकरीबन 88 लाख से ज्यादा लोग डिमेंशिया से प्रभावित हैं, लेकिन इनमें से केवल 10 प्रतिशत मामलों का ही सही समय पर निदान हो पाता है।
विश्व अल्जाइमर दिवस पर एम्स और अल्जाइमर एंड रिलेटेड डिसआर्डर सोसायटी आफ इंडिया की ओर से आयोजित जागरूकता कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने कहा कि यह समस्या अब सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का रूप ले रही है। एम्स न्यूरोलाजी विभाग की प्रोफेसर डा. मंजरी त्रिपाठी ने बताया कि डिमेंशिया कई प्रकार का होता है। इसमें अल्जाइमर रोग सबसे आम है, जो 60 से 70 प्रतिशत मरीजों में पाया जाता है।
अन्य प्रकारों में वैस्कुलर डिमेंशिया, लेवी बाडी डिमेंशिया, फ्रंटोटेम्पोरल डिमेंशिया, पार्किंसंस रोग से संबंधित डिमेंशिया और सिफलिस शामिल हैं। शुरूआत में यह रोग बिना लक्षण के बढ़ता है, लेकिन धीरे-धीरे व्यवहार में परिवर्तन नजर आने लगते हैं। किसी बात को बार- बार दोहराना, खाने के बाद भूल जाना, सामान्य व्यवहार से अलग प्रतिक्रिया देना इसके प्रमुख संकेत हैं। यदि ऐसे लक्षण दिखें तो परिजनों को तुरंत विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। देर होने पर मरीज कपड़े गंदे करने तक को महसूस नहीं कर पाते हैं।
बीमारी बढ़ने के कारण
शोध से पता चला है कि धूमपान, शराब, जंक फूड, व्यायाम न करना, मधुमेह और उच्च रक्तचाप डिमेंशिया का खतरा बढ़ाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जीवनशैली सुधारकर इस खतरे को लगभग 40 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है।
एम्स विशेषज्ञों ने बताया कि यह बीमारी ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक देखने को मिलती है। वहां एक उम्र के बाद लोग सक्रिय नहीं रहते और नई चीजें सीखने में रुचि नहीं दिखाते। इसके अलावा सामाजिक अलगाव और अकेलापन भी बड़ा कारण है।
योग से मिल सकता है बचाव
एम्स एनाटामी विभाग की प्रोफेसर एवं योग विशेषज्ञ डा. रीमा दादा ने कहा कि योग और प्राणायाम डिमेंशिया के खतरे को कम करने में प्रभावी हो सकते हैं। योग से नींद की गुणवत्ता बेहतर होती है और तनाव बढ़ाने वाले कार्टिसोल हार्मोन की मात्रा घटती है।
वहीं, मेलानिन हार्मोन का स्तर बढ़ने से दिमाग की कोशिकाओं को नुकसान से बचाया जा सकता है। उन्होंने सलाह दी कि लोग प्रतिदिन कम से कम 45 मिनट प्राणायाम, अनुलोम-विलोम और विशेषज्ञ की देखरेख में अन्य योगासन करें।
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